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क्या राष्ट्रवाद धर्म की राजनीति के आगे हार गया है?

सन् 1827 में मशहूर शायर मिर्ज़ा असदुल्ला खान गालिब ने कहा था, “चूंकि संख्या में वे इतने ज़्यादा हैं और इतने अलग- अलग प्रकार के हैं कि हिंन्दुस्तान के लोग स्वाभाविक तौर पर बंटे हुए हैं। लगता है ऐसा हमेशा से रहा है।”

राष्ट्रवाद की सही परिभाषा क्या है?

भारत अपनी भाषा, धर्म ,जाति, संस्कृति, रंग-रूप की वजह से हमेशा भिन्न रहा है। इस कारण कुछ लोग इसे विवादित देश भी कहते हैं फिर राष्ट्रवाद का सही परिभाषा क्या है?

दरअसल, राष्ट्रवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसमें राष्ट्र को पहले प्राथमिकता दिया जाता है। राष्ट्रवाद ही एकमात्र धारा है जो विभिन्न लोगों को एक सूत्र में बांधता है। हमारे राष्ट्रगान में भी भारत के एकता और अखंडता का वर्णन किया गया है।

आज के समय में धर्म राष्ट्र से बड़ा हो गया है

प्रतीकात्मक तस्वीर।

आज के आधुनिक समय में राष्ट्रवादी होने का मतलब अपने आप को किसी धर्म मात्र में यकीन करना हो गया है। अब सवाल यह है कि राष्ट्र और धर्म है क्या?

एक राष्ट्र का कोई धर्म नहीं होता है लेकिन आज के समय में धर्म राष्ट्र से बड़ा हो गया है। अब तो सच्चा राष्ट्रवादी वही है जिसने खुद को किसी धर्म विशेष से जोड़े रखा है।

आखिर समाज में ज़हर फैलाने का ज़िम्मेदार कौन है?

यह बीमारी इस देश में ज़हर की तरह फैलती जा रही है जिसके कारण देश पहले से भी ज़्यादा बंट चुका है। आखिर समाज़ में ज़हर फैलाने का ज़िम्मेदार कौन है?

वो नेता जो अपने धर्म विशेष को सबसे ऊंचा दिखाने के लिए पार्टी का गठन किया है या वो मीडिया जो सच जानते हुए भी चीख-चीखकर झूठ बोल रही है? हमलोग खुद जो इतने पढ़े-लिखे होकर भी दिमाग और आंखें बंद करके मूर्ख बने हुए है।

हमको अधर्मी सियासत ने बनाया है या स्वयं बन गए हैं?

क्या हम सियासत और धर्म के नाम पर हो रहे षड्यंत्र में इस कदर फंस गए हैं कि अब हमें अंधभक्ति और राष्ट्रवादी में कोई भेद नहीं दिखता है?

क्या किसी पार्टी की गुलामी हमारे लिए इतना ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है कि हमारे सामने कुछ गलत होता देखकर भी हम उसे गलत ना कह सकें? सवाल यह है कि इतना निर्बल और अधर्मी हमें सियासत ने बनाया या हम खुद बन गए?

आज़ादी के 70 साल बाद भी हम स्वयं में बदलाव नहीं ला पाएं

महात्मा गाँधी। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज़ादी के 70 साल बाद भी हम भारतीय अब भी धर्मनिरपेक्ष और पंथनिरपेक्ष में भ्रमित हैं। गाँधी जी ने अपने अंतिम दिनों में उपवास करते हुए कहा था, “मैं स्वीकारता हूं कि यह उपवास भारत के मुसलमानों के लिए और पाकिस्तान के हिंदुओं-सिखों के लिए कर रहां हूं।”

कोई देश तभी सच्चा राष्ट्रवाद कहलाता है जब सभी लोग बराबर की हिस्सेदारी अनुभव करें लेकिन इस देश में ऐसा कुछ भी नहीं है।

फिलहाल, ये राष्ट्र वो नहीं है जो राष्ट्रपिता ने बनाया और सोचा था। धर्म सही को सही और गलत कहता है, वहीं राष्ट्रवाद सभी को एक साथ लेकर चलने को कहता है लेकिन इस देश में राष्ट्रवाद का सही अर्थ धर्म के नाम पर सियासत के आगे कहीं खो गया है।

धर्म के नाम पर लोग एक-दूसरे से नफरत करने और लड़ने लगे हैं। देश को बांटने वाले हमारी वजह से सफल भी हो रहे हैं। अंत में पेश है देश को बांटनें वालों पर कुछ शब्द।

दुश्मन तो खोद निकालेंगे हम सात समन्दर पार से

लेकिन कैसे बच पाएंगे अपने घर के गद्दार से।

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