“Expectation Always Hurts” यानी कि उम्मीद हमेशा निराश करती है। नेटफ्लिक्स ने भी इस बार अपने सब्सक्राइबर्स के साथ ऐसा ही किया है।
सेक्रेड गेम्स, बार्ड ऑफ ब्लड और दिल्ली क्राइम जैसी वेब सीरीज़ के ज़रिये दर्शकों का लबालब मनोरंजन करने बाद नेटफ्लिक्स ने ‘गिल्टी’ के माध्यम से अपने दर्शकों को ठगने की ज़ुर्रत की है।
नेटफ्लिक्स ने तेज़ गति के साथ अपने पैर भारतीय मनोरंजन जगत में ज़रूर जमाया है मगर शुरुआती सफलता के बाद ‘गिल्टी’ जैसा कंटेंट परोसना समझ से परे है। हर बार की तरह एडल्ट कंटेंट, फूहड़ भाषा को सब कुछ समझने की भूल नेटफ्लिक्स को भारी पड़ सकती है।
कहानी की बात
वैलेनटाइन की रात सैंट मार्टिन कॉलेज के लड़के-लड़की शराब पीकर एकदम टुल हैं। उसी में से एक तनु कुमार (आकांक्षा रंजन कपूर) नाम की लड़की जो धनबाद के एक ‘छोटे’ से घर से ताल्लुक रखती है, विजय प्रताप सिंह पर रेप का आरोप लगाती है, जो कि एक अमीर बाप की बिगड़ी औलाद है।
अब इस कथित रेप की सच्चाई क्या है? क्या विजय ने सचमुच वैलेंटाइन की रात तनु के साथ रेप किया था? क्या तनु किसी प्रकार का बदला लेने के लिए विजय पर रेप का आरोप लगाती है? इन सब सवालों का जवाब गिल्टी देखने बाद पता चलता है। इतना सब कुछ देखने के बाद आप सोचिएगा कि दिक्कत क्या है? दिक्कत अब है जो बताने जा रहा हूं।
कियारा आडवाणी का छोटे पर्दे पर आकर रायता फैलाना समझ से परे
लीड रोल में हैं कियारा आडवाणी यानी नानकी दत्ता मगर वो मुख्य भूमिका में क्यों हैं, यह समझ से परे है! सिर्फ इसलिए कि वो विजय प्रताप सिंह की गर्लफ्रैंड है या इसलिए कि वो कियारा आडवाणी हैं। कथित रेप विक्टिम हैं तनु कुमार मगर पूरी फिल्म में फोकस उनको ना के बराबर किया गया है।
ऐसा लगता है जैसे कियारा आडवाणी को ज़बरदस्ती कुछ ज़्यादा सीन दिए गए हों। एक महिला होने के बावजूद वो तनु की बात ना सुनकर पूरे फिल्म में अपने बॉयफ्रेंड को बचाती नज़र आती है। यह थोड़ा सा ज़्यादा लगता है। ऊपर से उनकी एक्टिंग सुभानल्लाह!
मैं ये कहता हूं कि जब बड़े पर्दे पर दर्शक आपको ठीक-ठाक प्यार दे रहे हों, तो क्या ज़रूरत है छोटे पर्दे पर रायता फैलाने की? कियारा आडवाणी को ऐसा लगता है मानो वो अभी भी कबीर सिंह के प्रीति वाले किरदार से बाहर ही नहीं निकल पाई हैं।
कमज़ोर कहानी, बेदम एक्टिंग और मज़ाकिया स्क्रीनप्ले
इस पूरे कवायद को #metoo मूवमेंट से जोड़ा गया है मगर इस मूवमेंट का जो हाल वास्तविक दुनिया में है, वही हाल गिल्टी में भी है। एक तो इस मूवमेंट में से एक भी केस अभी अपने मुकाम तक नहीं पहुंचा और इस फिल्म में पहुंचाया भी गया है तो आधी-अधूरी इंसाफ के साथ। पता नहीं स्पष्टता से दिखाने में निर्देशक रुचि नारायण ने रुचि क्यों नहीं दिखाई!
कमज़ोर कहानी, बेदम एक्टिंग और ऊपर से मज़ाकिया स्क्रीनप्ले के कॉम्बिनेशन से पता ही नहीं चलता कि कहानी कब पास्ट में है और कब प्रेज़ेंट में!
यह बॉलीवुड का एक नया ट्रेंड बन चुका है, कहानी कमज़ोर रहे तो चीज़ों को इतना घुमाओ कि दर्शक उसमें उलझ जाएं और ये समझें कि क्या थ्रिल है! अगर इसी कहानी को एक धारा में दिखाया जाता तो शायद दर्शकों को कुछ पल्ले भी पड़ता कि क्या दिखाने की कोशिश की गई है!
एक कथित रेप विक्टिम के प्रति जो हमारे समाज का रवैया है, वही बॉलीवुड का भी है! फिल्म में विक्टिम के कंधे को इतना कमज़ोर दिखाया गया है कि लड़ाई ना लड़ पाने के काबिल समझकर सीन से गायब किया जा सके। उसे इस काबिल भी नहीं समझा गया कि वो अपनी लड़ाई लड़ सके।
नानकी दत्ता पूरे फिल्म में अपने बॉयफ्रेंड विजय प्रताप सिंह को बचाने में व्यस्त रहती है और अंत में तनु कुमार की ओर सहानुभूति जताते हुए कहती है कि किसी को इंसाफ ना मिलने के लिए हम सब गिल्टी हैं। एक तो आकांक्षा रंजन कपूर को रेप विक्टिम दिखाया गया है और ऊपर से एक असहाय औरत जिसे इतनी भी हिम्मत नहीं दी गई कि वो अपनी लड़ाई खुद लड़ते हुए कम-से-कम दिखाई प्रतीत तो हो।
माँ-बहन की गाली, थोड़ा-बहुत एडल्ट सीन बस हो गया काम? Come on नेटफ्लिक्स! ये फूहड़ता तभी चलती है जब उसमें तगड़ा कंटेंट हो, जैसा सेक्रेड गेम्स में था मगर नेटफ्लिक्स वालों ने यह समझ रखा है कि लोग केवल माँ-बहन की गाली सुनने के लिए इतने महंगे सब्स्क्रिप्शन लेते हैं, तो वे मुगालते में हैं।