This post is a part of Periodपाठ, a campaign by Youth Ki Awaaz in collaboration with WSSCC to highlight the need for better menstrual hygiene management in India. Click here to find out more.
This post is a part of Periodपाठ, a campaign by Youth Ki Awaaz in collaboration with WSSCC to highlight the need for better menstrual hygiene management in India. Click here to find out more.
लॉकडाउन के दौर में सरकारों का सैनिटरी पैड्स की अनुपलब्धता पर देरी से जागना कोई नहीं बात नहीं है। इससे पहले भी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत सामग्रियों की घोषणाओं के समय महिलाओं की ज़रूरत की चीज़ों की अनदेखी का लंबा इतिहास रहा है।
महिलाओं की ज़रूरत की चीज़ों पर ध्यान तब जाता है, जब वे स्वयं सामने आकर अपनी मांग करती हैं, तब प्रशासन को इन ज़रूरत की चीज़ों की पूर्ति का ख्याल आता है मगर आपात स्थिति में इसका फायदा ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होता है।
लॉकडाउन के दौर में भी यही हुआ। आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए किराना स्टोर और मेडिकल स्टोर खुले हुए हैं लेकिन दूर-दराज़ के गाँवों में महिलाओं तक ये सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं जिससे उनके सामने समस्याएं पैदा हो रही हैं।
कुछ लड़कियों द्वारा सरकार को पत्र लिखे जाने और स्वयंसेवी संस्थाओं से फोन पर मदद मांगने के बाद जब यह मामला सोशल मीडिया पर वायरल होने लगा तब जाकर सरकारों ने इस दिशा में सोचना शुरू किया।
लॉकडाउन के दौर में आधी आबादी की माहवारी की समस्या पर मानुषी छिल्लर ने सरकार को सैनिटरी पैड को ज़रूरी चीज़ों की लिस्ट में शामिल करने की अपील की। साथ ही राज्य सरकारों से गरीबों को फ्री सैनिटरी पैड्स वितरण करने की भी बात कही।
इन प्रयासों के बाद कई राज्य सरकारों द्वारा उन लड़कियों या महिलाओं तक सैनिटरी पैड्स पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
पीरियड्स को लेकर हमने समाज में एक ऐसा माहौल बनाया कि है लड़कियां या महिलाएं इस पर खुलकर बात नहीं करती हैं। यही वजह है कि लॉकडाउन के दौरान भी तमाम असुविधाओं के बावजूद वे इस बारे में बात करने से संकोच कर रही हैं। सैनिटरी पैड्स को लेकर आर्थिक मसले पर संघर्ष करने से कहीं ज़्यादा यह मुद्दा महिलाओं के लिए अब सोशल टैबूज़ से लड़ने-भिड़ने जैसा हो गया है।
कई राज्यों में स्कूलों में हर महीने सैनिटरी पैड्स मिलते हैं लेकिन लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हैं। बाज़ार दूर होने और परिवहन बंद होने की वजह से लड़कियां मेडिकल स्टोर तक नहीं पहुंच पा रही हैं। सम्पन्न परिवारों की लड़कियों या महिलाओं के लिए यह परेशानी का सबब नहीं हो सकता है मगर जिन लड़कियों के लिए सैनिटरी पैड का इस्तेमाल आर्थिक चुनौती है, उन तक इसकी उपलब्धता हर आपात स्थिति में ज़रूरी है।
ज़रूरत इस बात की है कि सरकार लॉकडाउन या किसी भी आपात स्थिति में सैनिटरी पैड्स को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में रखे। तभी सरकार का ध्यान महिलाओं की इस ज़रूरत पर जा पाएगा और इससे संबंधित नीतियों का निर्माण हो पाएगा।
दिलचस्प यह है कि जिन ज़िलों में उच्च पदों पर महिलाएं हैं, वहां इस मसले को गंभीरता से लिया गया है। मसलन, इस दिशा में ज़िलाधिकारी रामपुर का यह कदम शानदार है। उन्होंने एक सूचना जारी करते हुए कहा, ” महिालएं कुछ चीज़ों के बारे में बोलने से हिचकती हैं। जैसे कि एक बहुत ही ज़्यादा महत्वपूर्ण विषय है मासिक धर्म। यदि सैनिटरी पैड घर मंगाने के लिए पोन पर किसी पुरुष से बात करनी पड़े तो?”
वो आगे लिखती हैं, “लॉकडाउन के दौरान इस निहायत ही ज़रूर वस्तु को महिलाओं तक बिना किसी असुविधा के पहुंचाने के लिए एवं महिलाओं की इस प्रकार की अन्य समस्याओं के समाधान के लिए एक डेडिकेटेड महिला हेल्पलाइन शुरू की जा रही है। यह हेल्पलनाइन नंबर महिलाओं द्वारा ही ऑपरेट किए जाएंगे। आप बेफिक्र होकर बिना किसी संकोच हमें अपनी समस्याएं निम्न हेल्पलाइन नंबर पर बताएं।”
गौरतलब है कि इस तरह के निर्देश कई जगहों पर जारी किए गए हैं। बहरहाल, आज ज़रूरत यह है कि सैनिटरी पैड्स को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी में रखा जाए ताकि किसी भी आपात स्थिति में सरकार सैनिटरी पैड्स के संबंध मे ज़रूरी दिशा-निर्देश केवल राज्य स्तर पर नहीं, बल्कि पंचायत स्तर तक जारी कर सके।
Youth Ki Awaaz के बेहतरीन लेख हर हफ्ते ईमेल के ज़रिए पाने के लिए रजिस्टर करें