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ड्रामा, एक्शन और इमोशन से भरपूर है पाताल लोक वेब सीरीज़

Paatal Lok Review In Hindi

Paatal Lok Review In Hindi

अमेज़न प्राइम की वेब सीरीज़ ‘पाताल लोक’ में किरदारों को कहानियों से जोड़ने के साथ-साथ यह भी दिखाया गया है कि समाज में आखिर फेक न्यूज़ किस तरह से काम करता है।

“यह जो दुनिया है ना दुनिया, यह एक नहीं तीन दुनिया है। सबसे ऊपर स्वर्ग लोक, जिसमें देवता रहते हैं, बीच में धरती लोक जहां आदमी रहते हैं और सबसे नीचे पाताल लोक जिसमें कीड़े रहते हैं। वैसे तो यह शास्त्रों में लिखा हुआ है मगर मैंने व्हाट्सएप पर पढ़ा है।”

इस डायलॉग से शुरू होती है अमेज़न प्राइम पर रिलीज हुई वेब सीरीज़ पाताल लोक, जो पहले एपिसोड से ही आपको इस तरह बांध लेती है कि आप लगातार पाताल लोक में घुसते चले जाते हैं।

क्या संकेत देती है कहानी?

पूरी सीरीज़ देखने के बाद महसूस होता है कि कहानी तो शुरुआत के डायलॉग में ही कह दी गई है। फेक न्यूज़, जो हाल के दिनों में एक जाना-पहचाना शब्द बन गया है, जिसके गढ़े जाने से फैल जाने तक कितने लोगों की रोटी सेंकी जाती है या इसका इस्तेमाल समाज के शक्त्तिशाली लोग और संस्थान अपने हित में किस तरह से करते हैं और कितनी ही सच्चाई दबकर रह जाती है, इन्हीं चीज़ों के इर्द-गिर्द है पाताल लोक की कहानी।

इन तथ्यों को अपनी कहानी द्वारा समाज के सामने लाने में निर्देशक सुदीप शर्मा बहुत ही शानदार तरीके से कामयाब हुए हैं। वह इसलिए क्योंकि निर्देशक को हर किसी की एक्टिंग का जबरदस्त सहयोग मिला है।

पातल लोक सीरीज़ में एक साथ कई लोगों की कहानी चलती है

पाताल लोक वेब सीरीज का पोस्टर।

पूरी सीरीज़ में एक साथ कई लोगों की कहानी चलती है। पहली कहानी एक पुलिस वाले की है, नाम है हाथीराम चौधरी (जयदीप अहलावत)। दिल्ली के आउटर जमुनापार थाने में इनकी पोस्टिंग है। दूसरी कहानी है टीवी पत्रकार संजीव मेहरा (नीरज काबी) की, जो एक समय का हीरो और आज टीआरपी में ज़ीरो है।

तीसरी कहानी है विनोद त्यागी उर्फ हथौड़ा त्यागी (अभिषेक बनर्जी) की, जो क्रिमिनल है। चौथी कहानी है इमरान अंसारी (इश्वाक सिंह) की, जो दरोगा है और आईएएस की तैयारी में लगा है। वह नए हिंदुस्तान में बात-बेबात अपने मुसलमान होने के ताने सुनता रहता है।

इन कहानियों के साथ टोप सिंह, चीनी और कबीर एम की कहानी जुड़ती चली जाती है। ऐसे में फेक न्यूज़ कैसे समाज में काम करता है, इसकी कहानी परत-दर-परत सामने आती है।

कहानी की बात

पाताल लोक वेब सीरीज़ का एक दृष्य।

दिल्ली पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन में दिल्ली ब्रिज पर चार क्रिमिनल गिरफ्तार होते हैं। हथौड़ा त्यागी, टोप सिंह, चीनी और कबीर एम। इन पर मीडिया टाईकून संजीव मेहरा (नीरज काबी) की हत्या की साज़िश का आरोप है।

यह केस हाथीराम के पास जाता है। हाथीराम को ना सिर्फ पुलिस डिपार्टमेंट को बताना है, बल्कि अपने परिवार को भी समझना है कि वह हीरो है। क्या वह केस सुलझा पाता है? यह जानने के लिए आपको वेब सीरीज़ देखनी होगी।

हाथीराम, टीवी पत्रकार संजीव मेहरा को मारने की साज़िश के मामले की तह तक जाने के लिए चारों हमलावरों की हिस्ट्री शीट खोजना शुरू करता है। शुरू होती है हिस्ट्री बदलते भारत की।

यह कहानी है पंजाब में दलितों पर अगड़ों के अत्याचार की, एक दलित के बागी होने के बाद उसकी माँ के साथ सामूहिक बलात्कार की, दिल्ली में निज़ामुद्दीन स्टेशन के आसपास पनपते बाल यौन उत्पीड़न की, एक मुसलमान की जेब में अपना सर्टिफिकेट लेकर घूमने की और कहानी है उस इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जिसे सिर्फ चटखारे लेने की आदत पड़ चुकी है।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सच बताती वेब सीरीज़

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, जहां दीन, धर्म, ईमान सब पैसा है। सामाजिक मुद्दों की फटी जेबें टटोलती यह कहानी बीच चौराहे पर सिस्टम के कपड़े उतारकर उसको नंगा कर देती है।

इस सीरीज़ में दिखाया गया है कि अपनी बहनों के बलात्कार का बदला लेने के लिए विपिन त्यागी किस तरह से हथौड़ा त्यागी बनता है और कैसे सूबे की राजनीति में उसका इस्तेमाल किया जाता है।

हर सही झूठी बात पर अपने बाप से पिटता दलित तोप सिंह, जो एक दिन अपनी बेइज़्जती का बदला लेने की ठान बैठता है।

पाताल लोक की कहानी अंतिम एपिसोड तक धीमी नहीं पड़ती है

अनुष्का शर्मा।

कहानी इस सीरीज़ की इतनी सी है कि एक बड़े टीवी पत्रकार की कथित तौर पर हत्या करने निकले चार अपराधी स्पेशल सेल के निशाने पर होते हैं। चारों का जहां एनकाउंटर होना तय होता है, वहां किसी टीवी चैनल की एक ओबी वैन खड़ी होती है।

मामला उल्टा पड़ जाता है। स्पेशल सेल वाले नज़दीकी थाने के निहायत गऊ टाइप इंस्पेक्टर को यह केस देकर मामला क्लोज़ कर देना चाहते हैं लेकिन गाय का अगर मूड ना हो तो बड़े-बड़े बाहुबली उसका दूध नहीं निकाल सकते हैं। बस वैसा ही कुछ हाथीराम के साथ हो गया।

टीवी जर्नलिस्ट संजीव मेहरा के कत्ल की साज़िश कहानी के रूप में गोली की तरह छूटती पाताल लोक की कहानी अंतिम एपिसोड तक धीमी नहीं पड़ती है। हर एपिसोड में ड्रामा है, एक्शन है, इमोशन है और है बस एक थप्पड़।

वो थप्पड़ जो इंस्पेक्टर अपनी बीवी को मारता है और बीवी उसके घर लौटते ही उसे सड़क पर ही एक करारा थप्पड़ जड़कर हिसाब बराबर कर देती है, हाथ के हाथ। पूरी फिल्म का यही एक क्षण हल्का सा सुकून देता है। पाताल लोक की हकीकत के करीब बने रहने की यही कोशिश इसकी संजीवनी है।


नोट: YKA यूज़र प्रशांत प्रत्युष द्वारा यह लेख इससे पहले वुमेन्स वेब पर प्रकाशित किया जा चुका है।

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