पीआईबी यानी कि प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो, सरकार के तमाम फैसलों के वेरिफ़ाइड अपडेट को आम लोगों तक लाने का सबसे विश्वसनीय प्लेटफार्म माना जाता है। पीआईबी का फैक्ट चेक संबंधी एक प्लेटफार्म है। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर, नाम है ‘पीआईबी फैक्ट चेक’। ट्विटर पर 1 लाख फॉलोवर वाले इस पेज के बायो में लिखा है ‘Countering misinformation on government policies/schemes’.
आसान भाषा में समझें तो इसे सरकार के खिलाफ किसी भी भ्रामक या झूठी खबर का पर्दाफाश करने के इरादे से बनाया गया है। मतलब अगर सरकार पर कोई आरोप लगेगा, तो एक सरकारी संस्था हीं सरकार को ईमानदारी का सर्टिफिकेट दे देगी।
खैर, उदाहरण से समझते हैं कि यह संस्था किस तरह की खबरें पिक कर रही है और कैसा फैक्ट चेक कर रही है।
पहला उदाहरण, देश में पिछले कुछ दिनों में चली सबसे बड़ी फ़ेक न्यूज़/भ्रामक खबर क्या है? आपके अनुसार जो भी हो, मेरे अनुसार वो ’20 लाख करोड़’ के पैकेज की घोषणा है।
14 मई को प्रधानमंत्री कहते हैं,
“मैं आज एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा कर रहा हूं। साथियों, हाल ही में सरकार ने कोरोना संकट से जुड़ी जो आर्थिक घोषणाएं की थी, जो रिजर्व बैंक के फैसले थे और आज जिस आर्थिक पैकेज का एलान हो रहा है, उसे जोड़ दें तो यह करीब-करीब 20 लाख करोड़ रुपये का पैकेज है।”
अगले ही मिनट टीवी पर टिकर आता हैं ‘प्रधानमंत्री ने 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान किया’। अगले दिन अखबारों में ’20 लाख करोड़’ से फ्रंट पेज रंग दिए जाते हैं। देश का प्रधानमंत्री स्पष्ट कह रहे हैं कि अब तक हुए कुल ऐलान, रिजर्व बैंक के ऐलान और 14 मई वाले पैकेज को जोड़ दें तो यह करीब-करीब 20 लाख करोड़ होगा, पर खबर कुछ और ही चलती है। ये खबरें प्रधानमंत्री को ही झुठला रही थीं।
लेकिन इस पर ‘पीआईबी फैक्ट चेक’ ने अब तक कोई भी फैक्ट चेक नहीं किया। क्यों?
दूसरा उदाहरण लेते हैं, दो-तीन दिन पहले बिहार के मुज़फ्फरपुर स्टेशन का एक वीडियो वायरल होता है। वहां एक बच्चा अपनी मरी हुई माँ को कफन के बदले ओढ़ाए गए चादर को खींच रहा है, उससे खेल रहा है, उसे जगाने की कोशिश कर रहा है। वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल होता है तो सरकार की किरकिरी शुरू होती है और यहीं से पीआईबी फैक्ट चेक की मेहनत शुरू होती है।
#दावा: वायरल वीडियो में मुजफ्फरपुर स्टेशन पर एक महिला की भूख-प्यास से हुई मौत को दिखाया जा रहा है#factcheck: गलत और भ्रामक है। महिला के पहले से ही बीमार होने की पुष्टि उसके परिवार ने की है। pic.twitter.com/XIsP9c8Esm
— PIB In Bihar ??#stayhome#staysafe (@PIB_Patna) May 27, 2020
दो दिन बाद यानी बुधवार को पीआईबी फैक्ट चेक का ट्विटर पोस्ट बताता है की यह खबर फेक है, उनके अनुसार यह औरत 23 मई को अहमदाबाद से कटिहार के लिए ट्रेन में चढ़ी थी लेकिन 25 मई को मृत्यु के बाद उसे मुज़फ्फरपुर उतारा गया था।
लेकिन यह सरकारी माउथपीस यह नहीं बताता कि महिला की लाश फुटओवर ब्रिज के नीचे प्लेटफार्म पर क्यों रखी है? इसके अनुसार महिला पहले से बीमार थी, मगर यह खबर परिवार के किस सदस्य ने पीआईबी की टीम को बताया? और कब बताया? औरत को कौन-सी बीमारी थी? ये सारी जानकारियां गायब हैं। बस पीआईबी ने कह दिया और हो गई पड़ताल। ना सबूत, ना गवाह, ना कोई प्रत्यक्षदर्शी, एत लाइन लिखकर खबर को फेक न्यूज़ बता दिया गया।
तीसरी उदाहरण देखते हैं, भाष्कर अखबार में एक खबर छपी कि ट्रेनों के तय समय से अधिक वक्त वाले सफर में लोगों की जान जा रही हैं, एक ट्रेन तो 9 दिन की देरी से पहुंची है। जवाब में रेलवे के स्पोक्सपर्सन का ट्वीट आया उसकी पहली लाइन थी। “The report is filled with errors & half truths” यानी रिपोर्ट आधे सच और गलतियों से भरी हुई है।
The report is filled with errors and half-truths.
The 2 trains from Surat reached Siwan on 25th in two days time instead as reported 9 days. The Child was ill & returning from Delhi after treatment. The cause of death can’t be determined without post mortem. https://t.co/YhfM7Cvlxx— Spokesperson Railways (@SpokespersonIR) May 26, 2020
अब ‘हाफ ट्रूथ’ का क्या मतलब है? आधा सच? रेलवे के प्रवक्ता जिसे आधा सच कह रहे हैं पीआईबी की फैक्ट चेक ने उसे ‘फेक न्यूज़’ करार दे दिया। अब एक सरकारी फैक्ट चेक एजेंसी और एक सरकारी अफसर के बयान में एकरूपता क्यों नहीं है?
चौथा उदाहरण देखिए, कारवां मैगज़ीन में खबर छपी की प्रधानमंत्री ने 21 सदस्यीय साइंटिफिक कोरोना टास्क फोर्स से चर्चा किए बिना लॉकडाउन को एक्सटेंड करने का फैसला लिया।
Claim : Caravan magazine has claimed that PM @narendramodi did not consult the 21-member scientific #COVID taskforce before extending the lockdown
Reality : All decisions were taken after consulting the taskforce.
Read: https://t.co/VymHJz1AEB pic.twitter.com/1BIwa3YcCr
— PIB Fact Check (@PIBFactCheck) April 15, 2020
जवाब में पीआईबी फैक्ट चेक ने इसे तुरंत अफवाह बताते हुए कहा कि सारे फैसले चर्चा के बाद ही लिए गए हैं। फिर इसके जवाब में कारवां के लिए यह लेख लिखने वाली रिपोर्टर विद्या कृष्णन ने ट्वीटर और मेल के माध्यम से पीआईबी से इस मीटिंग के मिनट्स मांग लिए तब से अब तक पीआईबी ने कोई जवाब ही नहीं दिया है।
अहमदाबाद वेंटिलेटर केस में भी भ्रामक फैक्ट चेक हो या टारगेटेड रूप से इंडियन एक्सप्रेस, वायर, स्क्रॉल, इम्फाल टाइम्स आदि संस्थाओं के खबरों का बेसलेस आकलन, पीआईबी फैक्ट चेक एक कवर-अप टूल की तरह काम कर रहा है।
फैक्ट चेक के कुछ टेस्टेड मेथड हैं। आप जब किसी खबर को फेक बताते हैं तो आपको यह साबित करना होता है कि वह खबर गलत क्यों है? साथ ही आपको जो सच है उसे भी प्रमाण के साथ पेश करना होता है, मगर पीआईबी का तरीका इससे बिल्कुल उलट है ।
“A news published in this newspaper is fake & misleading
Reality: This hasn’t happened…”
यह है पीआईबी के फैक्ट चेक का तरीका। आखिर पीआईबी द्वारा अपने ही ऊपर केस में अपने आप को जज बना कर जनता को बेवकूफ कब तक बनाया जाएगा।