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मज़दूरों के मुद्दे पर इतनी मजबूर क्यों है बिहार सरकार?

Problems Of The Migrant Labourers Of Bihar

Problems Of The Migrant Labourers Of Bihar

बिहार में हर रोज़ औसतन पचास हज़ार मज़दूर पैदल अपने घरों को लौट रहे हैं। रोज़गार की आशा लिए बड़े शहरों में पलायन कर गए इन मज़दूरों को जब उन शहरों ने इस त्रासदी के समय नकार दिया तो ये मज़दूर अब अपने-अपने घरों की ओर लौट रहे हैं।

बिहार सरकार ने कहने के लिए तो प्रवासी मज़दूरों के लिए कई सारी योजनाएं बनाई हैं मगर धरातल पर ये योजनाएं कहीं नज़र नहीं आती हैं। कुछ योजनाएं और उनका सच:

हेल्पलाइन सेवा

बिहार में 25 मार्च को ही हेल्पलाइन सेवा आरंभ कर दी गई थी मगर पांच-सात दिनों के अंदर ही यह हेल्पलाइन सेवा तकनीकी कारणों से बंद पड़ गई।

उसके बाद भी बिहार सरकार द्वारा कहा जाता रहा कि ये सेवाएं चालू हैं जबकि फोन लगाने पर हमेशा हेल्पलाइन नंबर व्यस्त पाए जाते हैं। ज़िला नियंत्रण कक्ष के भी फोन नंबर जारी किए गए मगर वे नंबर भी हमेशा व्यस्त ही पाए जाते रहे हैं।

रजिस्ट्रेशन लिंक

बिहार सरकार द्वारा प्रवासी मज़दूरों के लिए जारी किए गए रजिस्ट्रेशन लिंक का पोर्टल पिछले कई हफ्तों से बंद पड़ा हुआ है। इसमें साफ तौर पर लिखा हुआ है कि तकनीकी कारणों के कारण यह सेवा अस्थायी रूप से अनुपलब्ध है।

ऐसे में हमारे श्रमिक मज़दूर अपना पंजीकरण भी नहीं करा पा रहे हैं। निराश होकर इन मजदूरों के पास पैदल अपने घरों को लौटने का ही विकल्प नज़र आता है।

स्क्रीनिंग सुविधा

बिहार सरकार द्वारा कहा गया कि दूसरे राज्यों से लौटने वाले हर मज़दूर की स्क्रीनिंग करवाई जाएगी। अधिकांश जगहों पर स्क्रीनिंग नहीं हुई है।

हालांकि बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय काफी दिन पहले से ही ट्वीट के ज़रिये यह दावा करते आ रहे थे कि लगभग दस करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग हो चुकी है। बहरहाल, ज़मीनी हकीकत यह है कि कुछेक जगहों को छोड़कर कहीं भी स्क्रीनिंग नहीं हो रही है।

क्वारंटाइन सेंटर

नीतीश कुमार। फोटो साभार- सोशल मीडिया

सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के हिसाब से किन्हीं अन्य राज्यों अथवा ज़िलों से आने वाले हर प्रवासी को चौदह दिन के अनिवार्य क्वारंटाइन का पालन करना है।

इस आशय से हर ज़िले में क्वारंटाइन सेंटर भी बनाए गए हैं लेकिन आए दिन सोशल मीडिया पर इन क्वारंटाइन सेंटरों की बदहाली की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। कई ज़िलों के क्वारंटाइन सेंटरों में तो एक वक्त का भोजन भी नहीं मुहैया करवाया जा रहा है।

यह कोई पहली बार नहीं हैं कि बिहार पर किसी प्रकार का संकट आया हो और बिहार सरकार ने हाथ खड़े कर दिए हों

मुज़फ्फरपुर में जब पिछले साल की गर्मियों में चमकी बुखार से बच्चों की मौत हो रही थी तब भी बिहार सरकार इस छोटे से ज़िले के हर बच्चे को ज़रूरत के हिसाब से दवाइयां और अस्पताल तो दूर, ओआरएस भी उपलब्ध नहीं करवा पाई थी।

लगभग 250 से अधिक बच्चे इस बिमारी से मारे गए थे। इसी तरह जब पिछले साल अक्टूबर माह में पटना में जलजमाव की समस्या हुई थी तब भी बिहार सरकार हर मोर्चे पर विफल दिखाई दे रही थी और आज जब देश के अलग-अलग हिस्सों में बिहार के लगभग 20 लाख से भी ज्यादा मज़दूर फंसे हुए हैं, तब भी बिहार सरकार हमेशा की तरह मजबूर और असफल दिखाई दे रही है।


संदर्भ- इंडियन एक्सप्रेस

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