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#MyPeriodStory: राज़ धब्बों का

taboos around periods in india

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खून का रंग तो लाल ही है पर उससे लगे उन धब्बों को देखने का नजरिया अलग कैसे हो जाता है? योनि से निकलने वाले खून से अकस्मात लगे धब्बे किसी भी लड़की या महिला को इतना डरा क्यों जाते हैं?
इन धब्बों से ही जुड़ी है मेरी माहवारी की शुरुआत,जब मुझे पहली बार माहवारी शुरू हुई तब मैं उसके बारे में सब जानती थी और क्या करना है, कैसे करना है,यह भी पता था कुछ भी समझने के लिए मुझे किसी की भी जरूरत नहीं पड़ी थी मगर उस समय प्रयोग करने के लिए सेनेटरी नैपकिन नहीं थे तो मुझे भी कपड़े का ही प्रयोग करना पड़ा कपड़ा महावारी के अधिक प्रभाव को झेल नहीं पाया था और मैं अचानक लगे कपड़ों पर उन धब्बों से अनजान रह गई! धब्बों को देख मेरी बड़ी बहन ने मुझे ऐसे टोका था जैसे कि मुझसे कोई गुनाह हो गया हो, मेरा वो कपड़ा मेरे उस राज़ को छिपा ना पाया था और उस टोक से अचानक मेरे आसपास का सुहावना मौसम उस उजाड़ देने वाले बवंडर में बदल गया जो अपने साथ मेरे आत्मविश्वास और लड़की होने के गर्व को उड़ाकर ले जाना चाहता था! मैं सिहरन के साथ धीरे से कपड़ों और खुद को समेटते हुए उठी मगर खुद पर बहुत शर्म आ रही थी लगा कि खुद को कोसु कि बड़ी जानकार बन रही थी एक धब्बा न छिपा पाई! क्या यह कारण था खुद को कोसने का मगर किस ने मजबूर किया? इस समाज ने जो हर महीने होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया को अभिशाप बना दे रहा था उन थोड़े से लाल धब्बों ने मेरे आत्मविश्वास को हिला दिया था उस हिचक को मेरे अंदर पैदा कर दिया था जो कि महावारी से जुड़ी भ्रांतियों की जड़ों को मेरे अंदर गहरा करने वाली थी !माहवारी पर यह धारणाएं एक चक्र के अनुसार है जो कि नानी से मां को, मां से बेटी को और बेटी को उसकी बेटी को मिलती है शायद इसीलिए ही अचानक मेरी बहन ने उसमें बनी धारणा को भी मेरे सामने ला दिया था!बहुत जरूरी है इन धारणाओं और भ्रांतियों पर बात करने की ताकि इनसे जुड़ी कोई भी हिचक किसी भी लड़की के अंदर पैदा ना हो! हर लड़की स्वतंत्र और खुले पन के साथ इस पर बात करने को तैयार हो अगर अभी भी इन सब पर बातें नहीं हुई तो हर जागरूक और आत्मविश्वास से भरी लड़की आज भी माहवारी के समय ऑफिस से बुखार का बहाना करके ही छुट्टी मांगेगी!

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