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‘जिहाद’ और ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ के बीच फंसा हुआ है समाज?

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भारतीय सेना ने हिजबुल मुजाहिद्दीन के कमांडर रियाज़ नाइकू को मार दिया। सोशल मीडिया पर इसकी खुशी नज़र आ रही है लेकिन मैं बहुत खुश नहीं हूं। आतंकवादी की उम्र कुछ महीने की ही होती है। उसका मरना निश्चित था। अब उसकी जगह कोई और आ जाएगा, ये भी निश्चित है क्योंकि आतंक की विचारधारा अभी भी ज़िंदा है। एक अदने से आतंकी की मौत पर जश्न मनाने के लिए मेरे पास कोई वजह नहीं है।

जिहाद के असल मतलब को ही दिया गया है बदल

कुरान में जिहाद का मतलब ‘शांतिपूर्ण वैचारिक लड़ाई’ है लेकिन आज के समय में इस्लामिक लीडर्स ने अलग किस्म का जिहाद चला रखा है। आज जिहाद आतंक का पर्यायवाची बन गया है। किताब की दुहाई देकर जिहाद को डिफेंड करना, इनोसेंट बताने की कोशिश करना सिर्फ आपको धूर्त साबित करता है, और कुछ नहीं।

प्राचीन काल में हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार लाई गई थी। धीरे-धीरे यह विकृत होकर जन्म के आधार पर हो गई, जिसने भेदभाव और शोषण को वंशागत कर दिया। कालांतर में ज्योतिराव फुले और डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर जैसे समाज सुधारकों का प्रादुर्भाव हुआ जिन्होंने इसके खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी, जो आज भी जारी है।

यह स्वीकार किया गया कि जाति व्यवस्था हानिकारक है और इसका उन्मूलन ही एकमात्र उपाय है। मुस्लिम समाज को भी यह समझना होगा कि जिहाद विकृत हो चुका है। इसके किताबी स्वरूप की वकालत सिर्फ मूर्खता होगी क्योंकि यह विकार फिर आ जाएगा। अतः इसका उन्मूलन ही एकमात्र उपाय है।

इस्लाम की दिक्कतों के खुद इस्लाम को भी समझना होगा

किसी भी समाज की तरह इस्लामिक समाज में भी बहुत-सी बुराइयां हैं। इस्लाम को रिफॉर्म की ज़रूरत है। इसके लिए इस्लामिक समाज के लोगों को अपनी विकृतियों को पहचान कर उसे सुधारने के लिए खुद आगे आना होगा। अगर आप ऐसा नहीं करते तो ‘इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है’ का राग अलापते रह जाइए और लोगों की आपके प्रति नफरत बढ़ती जाएगी।

आपको टॉलरेंट बनना होगा। आपको स्वीकार करना होगा कि इस्लाम इस समय धरती का सबसे इन्टॉलरेंट रिलिजन है। मैं विकिपीडिया पर भारत में प्रतिबंधित किताबों की लिस्ट देख रहा था। इन किताबों में अलग-अलग राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक विचारधाराओं की आलोचना करने और मजाक उड़ाने वाली पुस्तकें शामिल हैं। किताब के लेखक की हत्या सिर्फ इस्लाम से संबंधित किताबों के लेखकों के साथ ही वर्णित है।

कुछ समय पहले की चार्ली हेब्दो की घटना को ही याद कर लीजिए। इस तरह की घटनाओं पर इस्लाम को भी खुद से विचार करना होगा वरना स्थिति बदतर होती जाएगी। नहीं! मैं कोई धमकी नहीं दे रहा, मैं जफरुल इस्लाम नहीं हूं। मैं बस एक कड़वी सच्चाई बयान करने की कोशिश कर रहा जिसे इस्लाम को भी समझने की कोशिश करनी होगी।

हिंदू धर्म को भी करना होगा आलोचनाओं को स्वीकार

हिंदू धर्म को भी नफरत छोड़कर आलोचनाओं को अपनाना होगा। अफवाहों के आधार पर किसी की पीट-पीटकर हत्या कर देने से बचना होगा। आतंक की फैक्ट्री चलाने वाले हाफ़िज़ सईद जैसे मौलाना सिर्फ़ इसी तरह की बातों से मूर्ख नौजवानों को बहकाकर हथियार थमा देते हैं कि दुनिया में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है। इस्लाम खतरे में है, और वो लोग इस्लाम को बचाने निकल पड़ते हैं। हिंदुओं द्वारा मॉब लिंचिंग और दूसरी हेट क्राइम जैसी घटनाओं में शामिल रहना उन मौलानाओं का काम और आसान कर देता है।

हिंदू धर्म के लोग  सोशल मीडिया पर “जय श्री राम” के नारे के साथ भगवा झंडे वाली इमोजी लगा मुसलमानों के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहते हैं। तुम्हें तो यह भी पता नहीं कि युद्ध के पहले संहार के देवता महादेव की जय-जयकार करते हैं, हर-हर महादेव का उद्घोष करते हैं जय श्री राम का नहीं। ऐसे हिंदबओं को समझना होगा कि पहले खुद तो हिन्दू बन जाए, फिर भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के सपना देखें।

समाज को नफरत से बचाना होगा

गरीब डिलीवरी बॉय जो अपने परिवार का पेट पालने के लिए अमेज़ॉन, जोमैटो, स्विग्गी से लोगों के यहां समान पहुंचाता है धर्म के आधार पर उस से सामान लेने से मना कर देना कहां तक ज़ायज है। गरीबों और मज़दूरों से नफरत करके आतंकियों का क्या बिगाड़ जा सकता है?

बहिष्कार करना है तो उन लोगों का किया जाना चाहिए जो बुद्धिजीविता का लबादा ओढ़ वैचारिक आतंकवाद फैलाते हैं। जिनके हाथ मे संविधान और दिमाग मे मज़हबी कट्टरता है। आतंकियों को कवर फायर देने वाले इन पत्रकारों और कथित एक्टिविस्टों पर तथ्यों के साथ वैचारिक हमला किया जाना चाहिए। गलत को गलत बोला जाना चाहिए, सिर्फ धर्म के कारण हर चीज़ को गलत बोल देना ठीक नहीं है।

समस्याएं धार्मिक नहीं सामाजिक होती हैं

मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उछनी चाहिए लेकिन मुस्लिम पुरुष समाज से नफरत के आधार पर नहीं, बल्कि इसलिए कि सच में महिलाओं की बेहतरी के बारे में सोचा जाए। साथ ही उनके अधिकारों पर बोलने से पहले हिंदुओं को अपने घरों में भी मां-बहनों को हर चीज़ में बराबरी का अधिकार है या नहीं ये देखना चाहिए।

हिंदुओं, मस्जिदों से लाउड स्पीकर उतारने की बात करो क्योंकि यह पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है लेकिन तभी जब तुम अपने मंदिरों में भजन कीर्तन के लिए लाउड स्पीकर का उपयोग करना बंद कर दो। मुसलमानों के ‘गजवा-ए-हिन्द’ को बुरा बोलने से पहले आत्मावलोकन कर लो कि तुम्हारा मुसलमानों को मारकर हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना कितना अलग है।

समाज में सुधारने को बहुत कुछ है। सबको अपनी खामियों को खुद से सुधारना होगा तभी समाज का भला होगा। वरना आरोपों और कुतर्कों का तो कोई अंत नहीं है।

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