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#My Period Story: GEP में आकर तोड़ी धारणाएं

Periods, society, problem

पीरियड्स का दर्द से परेशान महिला की प्रतीकात्मक तस्वीर

मैं काली गाँव सुहावा से 4 किलोमीटर दूर डेबरा बावड़ी नामक एक बाडिया है वहां कि रहने वाली हूँ माहवारी के विषय में कुछ बताना चाहती हूँ  हमारे यहाँ पर भी माहवारी से सम्बंधित धारणाए प्रचलित है ये गन्दा खून है, पुरुषो के सामने इसका नाम न लेना, मंदिर-मज्जिद न जाना,आचार को न छूना आदि माहवारी के कपडे या पेड को पुरुषों से छुपा के रखना और स्कूल में जाते तो भी असहज महसूस होता था डर रहता था कि कही कपडे गंदे न हो जाए डर के मरे स्कूल कि छुट्टियाँ कर लेती थी लेकिन जब से कक्षा 6 से रूम टू रीड बालिका शिक्षा कार्यक्रम में जुडी हूँ इसमें सोसल मोबिलाईजर दीदी ने बताया कि ये कोई गन्दा खून नही है ये सामान्य प्रक्रिया है और इसका होना जरुरी है तब से मेरी सोच में बदलाव आया है अब मै स्कूल की छुट्टी नही करती हूँ बस साफ सफाई का ध्यान रखती हूँ नहा लेती हूँ और फिर आचार छू लेती हूँ मंदिर भी चली जाती हूँ और खाने पिने का भी ध्यान रखती हूँ अभी लोक डाउन है इसलिए मेरे पास पेड नही है और इधर दुकानों पे नही मिलते ब्यावर जाके ही लाना पड़ता है पहले तो स्कूल में मिल जाते थे वो सम्भाल के रख रखे थे पर अब खत्म हो गए मैं दुकान पर लेने भी गई पर नही मिले इसलिए मैं अभी सूती कपड़ा का उपयोग करती हूँ और उसको धुप में सुखाती हूँ ताकि उसमे कीटाणु न रहे मै माहवारी के बारे में घर वालो को भी बताती हूँ कि हमे कपडे को धूप में सुखाना चाहिए वरना उसमे से कीटाणु नही जाते और ये भी बताती हूँ कि इस समय आचार छूने व मंदिर जाने से कोई प्रॉब्लम नही होती हम जा सकते है और अब में स्कूल में टीचर से पेड भी मांग लेती हूँ मुझे अब शर्म नही आती ये सारी जानकारी मैंने रूम टू रीड बालिका शिक्षा कार्यक्रम से सीखी है |

धन्यवाद |

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