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कैसे ज्योति और उसके जैसे तमाम लोगों की मजबूरी को गर्व में बदल देती हैं सरकारें?

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लॉकडाउन से परेशान बिहार के प्रवासी मज़दूर

कोरोना तुमने कमाल कर दिया! तुम्हारी वजह से आज बिहार पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोर रहा है। इससे पहले हमारी हिम्मत की कोई अहमियत नहीं थी। कोई हमारी सराहना नहीं करता था। मगर आज किसी ऐरे-गैरे की नहीं, दुनिया की महाशक्ति की नज़रों में बिहार की इज्जत रातों-रात बढ़ गई है!

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने बिहार की बेटी ज्योति के हौसले को सराहा है। बिहार के दरभंगा की 15 साल की ज्योति अपने बीमार पिता को साईकिल पर बैठाकर 7 दिनों में 1200 किलोमीटर की दूरी तय कर हरियाणा के गुड़गांव से दरभंगा के अपने घर पहुंच गई।

कोरोना, सच कहता हूं यह सब तुम्हारी बदौलत हुआ है। हम तो सालोंसाल सड़कों पर मारे-मारे फिरते हैं। कहीं पैदल तो कहीं साईकिल से महानगरों की खाक छानते हैं। कभी कोई तारीफ नहीं मिली। हम बिहारी जहां जाते हैं गाली सुनते हैं, अपमानित होते हैं। जब हंसी के पात्र बनते हैं तो रक्षा कवच के रूप में यूपीएससी और दूसरी प्रतियोगिता परीक्षाओं में बिहारियों द्वारा लहराए गए परचम को ओढ़ लेते हैं।

आज तुमने हमारा रूतबा बनाया है। तुम्हारी वजह से देश के राष्ट्रीय राजमार्गों पर हमारी मैराथन यात्राओं को दुनिया सलाम कर रही है। जिसने आज़ादी के बाद के वर्षो में हमारा यह हाल कर रखा है।

मैं इस झमेले में नहीं पडूंगा कि आजादी के बाद बिहार व बिहारियों का मान बढ़ाने में किसका कितना योगदान है। यहां तो सोहरत बटोरने की छीना-झपटी चल रही है। कोई श्री बाबू की शासन शैली से अपनी तुलना करता है तो कोई पिछले 30 वर्षों की समाजवादी सरकारों को इवांका ट्रंप की शाबाशी का हकदार मानता है।

वास्तव में इस सम्मान की हकदार सिर्फ दरभंगा की बेटी ज्योति ही नहीं है। हमारी सरकारों ने माहौल बनाया। ऐसे हालात पैदा किए, जिनसे हमारी बेटियों को सड़कों पर हौसला दिखाने का मौका मिला है।

कोरोना आज तुम चाहो तो देश के किसी भी हाईवे पर गिनती कर लो, हमारी बेटी अकेली नहीं है। आज हम बिहारी सड़कों पर संख्या बल में भी आगे हैं। कोरोना, तुमने हमारा मान बढ़ाया तो हमारा भी कुछ दायित्व बनता है। हमें कुछ कर दिखाना है। मेरी एक नेक सलाह है, हमें बिहार में कोरोना मैराथन को राजकीय गेम घोषित करना चाहिए। ज्योति बिटिया की तरह आज हम कई और करतब दिखा सकते हैं।

ज्योति अपने पिता के साथ तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

भगवान भरोसे चल रहे हैं क्वारंटाइन सेंटर

अगर किसी दिन बिल गेट्स या स्वयं डोनाल्ड ट्रंप हमारे क्वारंटाइन सेंटर का हाल देख लें तो दांतों तले उंगली दबा लेंगे। हां, हम दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि कैसे चलता है क्वारंटाइन सेंटर। कोई पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी नहीं, हमारे चौकीदार और नीरीह शिक्षक अपने बूते क्वारंटाइन सेंटर चला ले रहे हैं।

कहीं-कहीं तो चौकीदार भी नहीं है। हमारे शिक्षकों के पास अनुभव और तजुर्बा है। खिचड़ी बनवानी हो, जनगणना करानी हो, वोटर लिस्ट बनाना हो या सोशल सर्वे कराना हो, ये शिक्षक पढ़ाई छोड़कर हर मर्ज़ की दवा हैं। हमने क्वारंटाइन सेंटर के दरवाजे खोल रखे हैं। जब चाहो आओ -जाओ। हमारे नौजवानों को बाढ़ में चार महीने छत, स्कूल और तटबंधों पर क्वारंटाइन रहने का अनुभव है।

वे जानते हैं कि क्वारंटाइन सेंटर में कैसे रहना चाहिए। जब तक चाहो, जैसे चाहो रह लो, लेकिन शाम में शराब पीने और पत्नी के पास जाने की छूट मिलनी ही चाहिए। सुबह होते ही प्रवासियों की गिनती के समय सेंटर में फिर क्वारंटाइन दिखेंगे। शर्त यह है कि जैसे ससुराल में खातिरदारी की जाती है, वैसी ही आवभगत क्वारंटाइन सेंटर में भी होनी चाहिए। नहीं करेंगे तो मेहमान रूठ जाएंगे, हंगामा करेंगे।

प्रतीकात्मक तस्वीर

लोगों को दिया गया बासी खाना

खैर, व्यवस्था टंच है। खाने का मेन्यू इस तरह से बना कि मैनुपुलेट किया जा सके। हम अनाज का एक दाना बर्बाद नहीं होने दे रहे हैं। मुजफ्फरपुर जंक्शन पर रात में बिरियानी के पैकेट बचे तो सुबह की ट्रेन से आए प्रवासियों को परोस दिया गया। बासी बिरयानी से ऊबकाई हुई तो दूसरे दिन गुड़-चूड़ा की पोटली थमाई गई, तीसरे दिन हाथ जोड़कर राम-राम।

भोजन की क्वालिटी पर सवाल उठाने का मौका देने से बेहतर है कि उन्हें खाली पेट प्रखंड क्वारंटाइन सेंटर भेज दें। भगवान भरोसे चल रहे क्वारंटाइन सेंटर के अर्थशास्त्र में जिस-जिस की हिस्सेदारी है, सब खुश हैं। नाराज़ वही हैं, जिन्हें हिस्सेदारी नहीं मिल रही है। लेकिन सिस्टम की नज़रों में ऐसे लोगों की परवाह करना बेकार है। सिस्टम समझता है कि वे फूफा जी की तरह सदाबहार नाराज़ हैं। शिकायतें करना और कमियां निकालना इनकी फितरत है। हमें किसी तरह लूंगी-गमछा थमाकर मेहमानों का मुंह बंद करना है।

हम राष्ट्रीयता के प्रहरी हैं। हमारे लिए पहले देश है, उसके बाद पार्टी है और इंसान सबसे अंत में है। हमे देश बचाना है। अर्थव्यवस्था बचानी है। आदमी की जान बचाने के चक्कर में अर्थव्यवस्था नहीं डूबने देंगे। जब ज़्यादा लोग कोरोना पाज़िटिव नहीं थे तो हमने लॉकडाउन लगाया और अब जब कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या बढ़ने लगी है, तो हमने सारे दरवाजे खोल दिए हैं।

सुशासन बाबू ने घोषणा तो कर दी लेकिन जुगाड़ नहीं किया

हमारे यहां वर्तमान सरकार को सुशासन बाबू कहा जाता है। कल ही सुशासन बाबू यानी बिहार सरकार ने बड़ी जोर-जोर से घोषणा किया है कि जो मजदूर आएं हैं वे वापस अब बाहर ना जाएं। कहीं ये घोषणा चुनावी चाल तो नहीं है?

खैर, नीतीश बाबू हम बहुत सारी बातें कहना चाहते हैं। आज बिहार की जनसंख्या 12 करोड़ से ऊपर है। यदि इसे उपयोग करने का विज़न हो तो दस करोड़ का मानव संसाधन विकास के लिए किसी भी दूसरे ज़रूरी संसाधन से कम नहीं है। हमारे यहां के लोग रोज़गार के अभाव में दूसरे राज्य मज़दूर बनकर पलायन कर रहे हैं, यदि सरकार की मंशा हो तो बिहार मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर का हब बन सकता है।

हमारा ट्रेंड और स्किल्ड वर्क फोर्स बैंगलोर, पुणे, हैदराबाद के आईटी पार्क्स में खप रहा है। गया, दरभंगा, भागलपुर, मुज़फ्फरपुर जैसे शहरों में आईटी एन्ड टेक्नोलॉजी हब बनने की भरपूर क्षमता थी।

मानते हैं कि हमारे यहां खनिज नहीं है लेकिन खेती तो है, हमारे यहां एग्रीकल्चरल बेस्ड इंडस्ट्री की अगाध सम्भावना है। हमारे पुराने चीनी, पेपर, जुट, सूत और खाद के मील, सिल्क-खाद्य प्रशंस्करण उद्योग बंद और वीरान पड़े हैं। सिर्फ पुराने उद्योग धंधे और मील दोबारा खुल जाएंगे तो लाखों लोगों को रोज़गार मिले जाएगा। इससे राज्य की आमदनी भी बढ़ेगी। इसके अलावा मखाना, लीची, आम, केला आदि अनेक नगदी फसलों के दमपर दर्जनों फूड प्रोसेसिंग प्लांट्स लग सकते हैं।

नीतीश कुमार सिर्फ कर रहें हैं घोषणा

सरकार की गड़बड़ नीतियोंं का शिकार है बिहार

नदी और बाढ़ जो हमारे लिए वरदान हो सकता था लेकिन सरकार के विज़नलेस प्रशासनिक तौर-तरीकों ने उसे हमारे लिए श्राप बना दिया है। जल संसाधन संरक्षण और प्रबंधन से बिहार ना केवल अपने हर एक खेत मे सिंचाई के लिए जल पहुंचा सकता है बल्कि जल प्रबंधन से विकास के सैकड़ों नए रास्ते खुलेंगे।

तमाम ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के पर्यटन स्थल होने के बावजूद बिहार कभी अपने पर्यटन उद्योग को सुदृढ़ नहीं कर पाया, लाखों रोज़गार की सम्भावना वाला क्षेत्र भी सरकारी ध्यान के अभाव में कुप्रबंधन का शिकार है। कला, भाषा, इतिहास, संस्कृति अपने आप में एक बड़ी इंडस्ट्री बन सकती है लेकिन सरकार के पास इसके लिए प्रयास करने की विज़न और इच्छाशक्ति ही नहीं है।

बिहार में खेती जो आज एक बीमारू क्षेत्र बना हुआ है, उसी क्षेत्र में उन्नत तरीकों की मदद से पंजाब ने अपने विकास की गाथा लिखी है। यदि हर एक खेत तक पानी पहुंचाया जाए, उन्नत बीज खाद उपकरण की जानकारी किसानों तक पहुंचाई जाए और कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए तो बिहार सिर्फ कृषि के दमपर विकसित बनने की क्षमता रखता है। पशुपालन, डेयरी, मत्स्यपालन, कुक्कुट पालन जैसे क्षेत्र अथाह सम्भावनाओं वाले क्षेत्र थे जिन पर कभी ठीक से सरकारी प्रयास हुआ ही नहीं।

10 करोड़ की जनसंख्या सर्विस सेक्टर के लिए एक बड़ा बाज़ार है, यहां सस्ते मज़दूरों और वर्कफोर्स की उपलब्धता है। यदि इस पर ठीक से ध्यान दिया जाए तो बिहार अगले दस सालों में भारत का सर्विस सेक्टर हब बन सकता है।

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