“जब लॉकडाउन कर रहे थे तभी सबको घर भेजने के इंतजाम करने चाहिये थे”
ना!! नहीं कर सकते थे। अगर तब मजदूरों को घर भेज दिया जाता तो हालात नॉर्मल होने पर ये वापस भी आ जाते। सरकारें यही नहीं चाहती थी।
दो तीन महीने अच्छे से संसवाया गया। मजदूरों- गरीबों ने 15 की चीज़ 25 में खरीद कर खाई। जब मौत और भूख साफ साफ थोड़ी दूरी पर खड़े नज़र आने लगे तब घर से निकल लिए…साथ ही कसम भी खाली की वापस नहीं आएंगे।
पूंजीवाद के पोषकों को ‘अवसर’ मिल गया था। दिल्ली गुजरात महाराष्ट्र तक में सड़कों के किनारे खाली हो चुकी रेहड़ी झोपड़ी और स्टालों को हटाने का काम शुरू कर दिया गया है। जो जो झुग्गियां खाली हुई हैं उनको भी जल्द ही हटवाने के आसार हैं। शहर साफ कराए जा रहे हैं..ताकि आने वाली कंपनियों का स्वागत किया जा सके..और चमकते दफ्तरों के लिये जमीनें मुहैया करवाई जा सकें।
सरकार ने विदेश दौरे कर कर के विदेशी निवेश का जो ढिंढोरा पीटा था…जहां जहां से कमीशन उठाया गया था यह आपदा उसे ही अदा करने का ‘अवसर’ है। आगरा के जूतों के बाजार से शुरुआत हो चुकी है। क्या कोंग्रेस क्या बीजेपी सभी का ईमान शामिल है इस दलाली में।
मजदूरों का क्या है आज जो 500 में काम करते थे कल गांवो घरों में भूखे मरेंगे तो 50 रुपये में भी काम करने के लिये नाक रगड़ते हुए वापस आएंगे। और बस जाएंगे किसी और नदी नाले पुलों के आस पास।
शहर स्मार्ट बनने वाले हैं!..यही तो चाहते थे न आप!
Thanks to Corona