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“सफूरा का चरित्र हनन करने वाले लोगों में मुझे पोटेंशियल रेपिस्ट्स दिखते हैं”

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प्रोटेस्ट के दौरान सफूरा ज़रगर

आज जब पूरी दुनिया कोरोना जैसी महामारी का आतंक झेल रही है, ऐसे समय में भारत में एक अलग मुद्दे ने सोशल मीडिया से लेकर जमीन पर तक कोरोना महामारी से लोगों का ध्यान भटका दिया है। मुद्दा हैं सफूरा ज़रगर का। सफूरा जामिया मिलिया इस्लामिया में एम. फिल की छात्रा हैं। इन दिनों पुलिस द्वारा यूएपीए जैसा कड़ा कानून लगाए जाने के कारण वह न्यायिक हिरासत में हैं।

क्या है पूरा मामला

दरअसल दिल्ली पुलिस ने फरवरी में हुए दिल्ली दंगों को प्रायोजित बताया है। उमर खालिद, मीरान हैदर और सफूरा ज़रगर पर दिल्ली दंगे को भड़काने का आरोप लगाते हुए दिल्ली पुलिस ने इन तीनों पर यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम)  सहित हत्या, हत्या के प्रयास, राजद्रोह, धार्मिक आधार पर शत्रुता फैलाने और दंगे कराने का मामला दर्ज किया है।

पुलिस का दावा है कि दिल्ली में हुई साम्प्रदायिक हिंसा की साजिश इन्हीं तीनों लोगों ने मिलकर रची थी।

सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा ज़हर

इन आरोपों के बाद पुलिस ने सफूरा ज़रगर और मीरान हैदर को गिरफ्तार कर लिया। ये सभी लोग अभी न्यायिक हिरासत में हैं। इसी दौरान ये खबर आई की सफूरा गर्भवती हैं। इसके बाद सोशल मीडिया पर सफूरा को ट्रोल किया जाने लगा। इस बीच सोशल मीडिया पर आईटी सेल एक्टिव हो गया। इसके बाद सफूरा का चरित्र हनन शुरू हुआ। उन पर अभद्र टिप्पणियां की जाने लगी।

बिना सफूरा के परिवार, रिश्ते, शादी आदि के बारे में जाने आईटी सेल ने सफूरा का चरित्र हनन हाता रहा। उनकी निजी ज़िंदगी को लेकर बवाल मचाया जाने लगा। हद दर्जे़ की घटिया बातें ट्विटर और फेसबुक पर फैलाई जाने लगीं।

सफूरा के चरित्र से लेकर, शाहीन बाग के आंदोलन, जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के आंदोलन, सीएए-एनआरसी के खिलाफ होने वाले आंदोलनों को लेकर पूरे सोशल मीडिया पर अभद्र बातें कही जाने लगीं।

प्रोटेस्ट के दौरान सफूरा ज़रगर

आखिर सवाल क्या है?

सफूरा शादीशुदा है या नहीं यह उनका निजी मामला है लेकिन जानकारी के लिए जान लीजिए कि सफूरा शादीशुदा है। उनकी शादी 2018 में हुई थी लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यह तर्क पितृसत्तात्मक समाज के मानसिकता की उपज भर है कि सफूरा शादी के बाद गर्भवती हुई है या पहले। हमें इस पितृसत्तात्मक बहस में जाना ही नहीं चाहिए।

यह सफूरा या किसी भी महिला की मर्ज़ी है कि वह शादी करके बच्चे पैदा करना चाहती है या बिना शादी किए। एक बड़ा सवाल ये भी है कि इससे शाहीन बाग से लेकर जामिया तक के आंदोलनों का चरित्र कैसे निश्चित किया जा रहा है?

आज हम इक्कीसवीं सदी में रह रहे हैं और खुद को सभ्य और विकसित मानकर फुले नहीं समाते हैं। लेकिन इस दौर में भी महिला की अपनी सहमति से किसी के साथ सेक्स करने पर सीधे उसके चरित्र पर सवाल खड़े करने लगते हैं? क्या इतिहास में ऐसा नहीं हुआ है? बहुत बार हुआ है।

उदाहरणों और तर्कों की झड़ी लग जाएगी लेकिन चूंकि फिर यही आईटी सेल वाले धार्मिक भावनाएं आहत होने लगेंगी। हालांकि यह उचित भी नहीं है।

आज हम मानवाधिकारों की बात करते हैं। कहा जाता है कि हर मानव के कुछ प्राकृतिक अधिकार होते हैं। यदि कल्याणकारी राज्य के स्थापना के सामाजिक समझौते के सिद्धांत की बात की जाए तो जॉन लॉक ने तीन प्राकृतिक अधिकारों को महत्वपूर्ण बताया हैं। जिसमें जीवन का, स्वतंत्रता का और सम्पत्ति का अधिकार शामिल है। इसके साथ ही संवैधानिक तौर पर भी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को आवश्यकताओं में रखा गया है।

ऐसे में जब यह पता है कि सफूरा गर्भवती हैं। उनके पेट में एक नन्हीं-सी जान है तो क्या उस नन्हीं-सी जान के अधिकारों को नहीं छीना जा रहा है? क्या इस तरह से उस बच्चे के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं हो रहा है?

सोशल मीडिया पर होने वाली बातें दर्शाती हैं समाज की मानसिकता

सोशल मीडिया पर सफूरा को लेकर जिस तरह के घटिया बातें हो रही हैं वो इस समाज की सड़ चुकी मानसिकता को दिखाती है। इस मानसिकता के झंड़ाबरदारों को चिन्हित करके उनसे महिलाओं को सावधान रहने के लिए आगाह भी करती है।

सफूरा से लेकर उसके समर्थन में लिखने वाले व्यक्तियों के लिए जिस तरह की भाषा का प्रयोग आईटी सेल और भीड़ में तब्दील कर दिए गए लोग कर रहे हैं, उससे हमें अपने समाज को लेकर चिंता होनी चाहिए।

हमें चिंता होनी चाहिए कि हमारा समाज पोटेंशियल रेपिस्टों के झुंड में तब्दील न हो जाए। आज महिलाओं के प्राइवेट पार्ट और उनके व्यक्तिगत जीवन के आधार पर उनका चरित्र हनन किया जा रहा है और तमाम तरह की घटिया बातें की जा रही हैं।

समाज के युवा बहुत चटखारे लेकर इन बहसों में हिस्सा ले रहा हैं और तर्कहीन और चरित्रहनन की बातें कर रहे हैं। यह समाज में महिलाओं के लिए खतरनाक स्थिति है।

सरकार अपना रही है दोहरा रवैया

हम उस राज्य का हिस्सा हैं जो खुद ही पितृसत्तात्मक है। जहां ट्रोलिंग करने वाले, किसी महिला के सम्मान के साथ सोशल मीडिया पर खिलवाड़ करने वालों पर कोई कारवाई नहीं हो रही है।

हमको ये देखना होगा कि सफूरा का शाहीन बाग के प्रोटेस्ट से कोई संपर्क नहीं था। वो जामिया छात्रों पर हुई बर्बरता के खिलाफ बनी जामिया को-आर्डिनेशन कमेटी की हिस्सा थीं।

इन आंदोलनों में जहां आपको अभिव्यक्ति की आजादी दिखेगी, जहां लोग सरकार के किसी कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं आईटी सेल इन आंदोलनों में शामिल महिलाओं का चरित्र हनन करने का काम कर रहा है लेकिन पुलिस और सरकार कोई कारवाई नहीं कर रही है।

एक तरफ सफूरा और हैदर जैसे जामिया के छात्रों पर यूएपीए लगा दिया गया है लेकिन जामिया के छात्रों पर गोली चलाने वालों पर यूएपीए नहीं लगाया गया। भड़काऊ भाषण देने वाले कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर पर कोई कारवाई नहीं की गई।

ये बातें साफ तौर पर ये इशारा कर रही हैं कि सरकार किन लोगों को निशाना बना रही है। इस महामारी के समय का इस्तेमाल सरकार महामारी से लड़ने में नहीं बल्कि अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए कर रही है।

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