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आखिर क्यों हुई श्रमिक ट्रेनों में 18 दिनों में 80 मज़दूरों की मौत?

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ट्रेन में बैठने के लिए लाइन में लगे प्रवासी मज़दूर

जब मज़दूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर शहर से गांव की तरफ जा रहे थे तब सरकार ऐसे सो रही थी मानो मज़दूर तो सरकार के लिए मायने ही नहीं रखते।

जब दबाव बढ़ा तो सरकार ने श्रमिक ट्रेनें चलाने का फैसला किया गया लेकिन जो तस्वीरें आए दिन उभर कर सामने आ रही हैं वह श्रमिक ट्रेनों में फैली अव्यवस्था को बयान कर रही हैं।

श्रमिक ट्रेनों में लोग भूखे-प्यासे कर रहे हैं सफर

कभी ट्रेन मज़दूरों को उनके गंतव्य के बजाय किसी और शहर या राज्य पहुंचा दे रही हैं, तो कभी मज़दूरों की यात्राओं में भूख-प्यास से मरने की खबरें आ रही हैं।

गौरतलब है कि रेलवे अधिकारियों द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, 9 मई से 27 मई के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 80 प्रवासी मज़दूरों की मौत हुई है।

अभी हाल ही में सबसे वीभत्स तस्वीर सामने आई जिसमें एक बच्चा अपनी माँ को जगाने की कोशिश कर रहा था। अफसोस कि माँ जग नहीं सकी, क्योंकि उसकी मौत हो चुकी थी। यह घटना बिहार के मुज़फ्फरपुर रेलवे स्टेशन की थी। उस औरत की इसलिए मौत हुई क्योंकि वह ट्रेन में ही बिमार पड़ ग‌ई थी और उसे देखने वाला कोई भी नहीं था।

उसी दिन उसी रेलवे स्टेशन पर घटी एक और घटना घटी। दरअसल एक बच्चे की मौत हो गई क्योंकि उसके परिवार के पास कुछ भी खाने के लिए नहीं था। इस वजह से वह बच्चा क‌ई दिनों से भूख के साथ ही सफर कर रहा था। यह दोनों ‌‌घटनाएं अकेली नहीं हैं। सोचने की बात यह है कि ऐसी ही न जाने कितनी घटनाएं होंगी जो मीडिया के कैमरों और रिपोर्टरों से बच ग‌ई होंगी?

आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

क्या ऐसे हालात की कोई गंभीर वजह है? इस स्थिति की वजह है गृह मंत्रालय का 19 म‌ई का नोटिफिकेशन, दरअसल इस नोटिफिकेशन के पहले जिन राज्यों से श्रमिक ट्रेनें खुलती थीं और जिन राज्यों के लिए यह ट्रेनें चलती थीं, उन दोनों राज्यों को इन ट्रेनों के बारे में पहले से जानकारी होती थी। इसलिए यह ट्रेन समय पर अपने गंतव्य तक पहुंच जाती थीं।

गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन के बाद अब रेलवे खुद इन ट्रेनों का संचालन कर रहा है। हद तो तब हो गई है जब राज्यों को सूचना देने की जहमत रेलवे नहीं उठा रहा है और ट्रेन बिना किसी निर्धारित समय के पहुंच रही हैं। ऐसे में राज्यों की तरफ से भी किसी तरह का इंतज़ाम स्टेशनों पर नहीं दिख रहा। इसी का परिणाम है कि आज दो दिनों की भी यात्राएं नौ दिनों की बन जा रही हैं।

ट्रेन में चढ़ने के लिए लाइन में लगे प्रवासी मज़दूर

लेट-लतीफी के लिए कन्जेशन को बताया जा रहा है कारण

इस लेट लतीफी के लिए रेलवे कन्जेशन को कारण बता रहा है, तो इस कन्जेशन के लिए भी कौन ज़िम्मेदार है? खुद रेलवे, क्योंकि जब बिना किसी निश्चित समय के ट्रेनें चलेंगी तो कन्जेशन तो होगा ही। जब तक राज्यों से ट्रेनों के लिए अनुमति ली जा रही थी और जब तक राज्य ट्रेनों को लेकर आपस में समन्वय बिठा रहे थे तब तक ट्रेनें अपने रूट से नहीं भटक रही थीं।

ट्रेन समय पर चल भी रही थीं और साथ ही साथ ट्रेनों में और स्टेशनों पर मज़दूरों के लिए थोड़ी बहुत सुविधाएं भी दिख रही थीं। जब से केंद्र सरकार ने श्रमिक ट्रेनों के संचालन की व्यवस्था को पूरी तरीके से अपने हाथों में लिया है तब से मज़दूरों की यात्राएं और मुश्किल हो गई हैं।

ट्रेन की तस्वीर

ट्रेनों का संचालन क्यों नहीं कर पा रहा है रेलवे?

सबसे बड़ा कारण यही है कि रेलवे मज़दूरों के लिए संवेदनशील नहीं है। रेलवे मज़दूरों के साथ ऐसा बर्ताव कर रहा है जैसे कि मज़दूर नहीं कोई बोझ हों। जिन्हें रेलवे को ढोना पड़ रहा है।

दूसरा कारण यह है कि श्रमिक ट्रेनें पहले आधी कैपेसिटी पर चल रही थीं जिससे कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जा रहा था लेकिन अब ट्रेनें अपनी फुल कैपेसिटी पर चल रही हैं। यानी ट्रेनें भरी हुई हैं जिससे कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी नहीं हो रहा और लोग बिमार भी पड़ रहे हैं।

खाने पीने की व्यवस्था भी ट्रेनों में नहीं है क्योंकि श्रमिक ट्रेनों में पैंट्रीकार की व्यवस्था नहींं है जो कि होनी चाहिए थी। केंद्र सरकार को चाहिए कि फिर से राज्यों को ट्रेनों के संचालन में शामिल करे क्योंकि अभी जैसे इमरजेंसी वाले हालातों में ट्रेनों के संचालन के लिए रेलवे दक्ष नहीं है। वैसे भी रेलवे हमेशा से ही अपनी अव्यवस्था के लिए जाना जाता है लेकिन रेलवे आजकल अव्यवस्था के भी न‌ए-न‌ए किर्तिमान स्थापित कर रहा है जो कि मज़दूरों के लिए घातक है।

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