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टिड्डियों का एक छोटा-सा झुंड दिनभर में लगभग 35 हज़ार लोगों का खाना चट कर जाता है

टिड्डी दल का हमला

टिड्डी दल का एक पेड़ हमला फोटो साभार: गेटी इमेज़ेज

लोकस्ट अटैक, वैश्विक महामारी, भयानक चक्रवात, घातक हीट वेव और भीषण जंगल की आग इन सबने भारत को पटरी पर लाने के प्रयासों को ऐसे समय में विफल कर दिया है, जब भारत आज़ादी के बाद सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है।

किसानों की मुश्किल बढ़ाता ‘टिड्डियों का हमला’

कोरोना वायरस की मार झेल रहे किसानों की फसलें बर्बाद करता ये टिड्डियों का हमला बड़ी परेशानी का सबब बन रहा है।

टिड्डियों का हमला किसानों के लिए सामान्य बात है, जिसका वे प्रत्येक वर्ष जुलाई-नवंबर के महीने में सामना करते हैं लेकिन इसका समय से पहले और विशाल-भयंकर रूप में आना किसानों और आमजन दोनों के लिए खतरा पैदा करता है।

समय से पहले और विनाशकारी रूप में इसका आना अधिक चिंता का कारण इसलिए भी है क्योंकि कोरोना वायरस महामारी के चलते लॉकडाउन की वजह से ना ही किसान और ना ही सरकार इसको लेकर पहले से कोई तैयारी कर पाई है।

टिड्डी दल के हमले से परेशान किसान

देश में कहां-कहां है इसका प्रभाव?

टिड्डी दल ने भारत में पाकिस्तान की ओर से आगमन किया जिसके बाद टिड्डी दल का हमला राजस्थान के गंगानगर से शुरू हुआ और बाद में जयपुर और आस-पास के इलाकों में किसानों की फसलों में तबाही मचाकर कुछ रिहायशी इलाकों में भी इस दल ने हमला किया।

आमतौर पर ये टिड्डी दल सिर्फ गुजरात या राजस्थान तक ही सीमित रहते हैं लेकिन इस बार ये मध्य प्रदेश और अब उत्तर प्रदेश की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। मध्य प्रदेश में मालवा निमाड़ होते हुए अब यह टिड्डी दल बुंदेलखंड के छतरपुर तक पहुंच चुका है, यहां से अब ये उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर रहा है।

दशकों में सबसे खतरनाक स्थिति

जोधुपर के Locust waring organisation (LWO) के अनुसार, 1964 से लेकर 1997 तक 13 बार टिड्डाडियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई लेकिन 2010 के बाद संख्या में बढ़ोत्तरी की कोई खबर सामने नहीं आई। LWO के अधिकारियों का कहना है कि झुंड का इतनी बड़ी संख्या में बढ़ना ‘दशकों’ में सबसे खराब स्थिति है।

टिड्डियों के छोटे से झुंड में कम-से-कम लाखों की संख्या में टिड्डियां होती हैं और बड़े झुंड की बात करें तो यह संख्या करोड़ों को पार कर जाती है। टिड्डी झुंड एक दिन में लगभग 150 किमी तक हवा की दिशा में उड़ सकता है। इनका एक छोटा झुंड भी एक दिन में लगभग 35,000 लोगों जितना खाना खा लेता है।

इनके नियंत्रण के लिए सरकार की तरफ से मैलाथियान का छिड़काव किया जाता है। इनके प्रकोप से भारत ही परेशान नहीं रहता है, बल्कि अफ्रीकी देश भी इनसे हर साल ही लड़ाई लड़ते हैं। फसलों की इस बर्बादी के कारण लाखों-करोड़ों गरीबों का भोजन का अधिकार खतरे में पड़ सकता है जिस कारण उनके भूखे मरने जैसी नौबत भी आ सकती है।

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