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छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की कलश यात्रा का इतिहास

कलश यात्रा

कलश यात्रा

छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में स्थित ग्राम बिंझरा में हर वर्ष कलश यात्रा समारोह आयोजित किया जाता है। इस यात्रा में केवल महिलाएं ही भाग लेती हैं।

परंपरानुसार गाँव की सभी लड़कियां कलश को अपने सिर पर रखकर पूरे गाँव में घूमती हैं फिर अपने-अपने कलश की विधिवत स्थापना करती हैं। लड़कियों द्वारा मंगल कलश की स्थापना का कारण भी है।

हिंदू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। ऐसा माना जाता है कि यह कलश ब्रह्माण्ड का प्रतीक है और इसे रखना वातावरण को शुद्ध एवं दिव्य बनाता है।

कलश यात्रा मुख्यतः स्त्रियां ही करती हैं मगर इस पूरे समारोह में सभी आदिवासी भाग लेते हैं। भारत की हिंदू संस्कृति में जीवन के हर क्षेत्र में धार्मिक कार्य का शुभारंभ मंगल कलश की स्थापना से किया जाता है और छोटे अनुष्ठानों से लेकर बड़े-बड़े धार्मिक कार्यों में कलश का उपयोग होता है।

कलश पूजा के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं

कलश यात्रा। फोटो साभार- वर्षा पुलस्त

शोभयात्रा के अंत में सब महिलाएं सारे कलश देवालय में रख देती हैं और पांच दिन तक प्रतिदिन उसकी पूजा करती हैं। कलश पूजन करने के लिए बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं और हर दिन चावल और फूल  कलश पर चढ़ाते हैं। इसके अलावा गीत गायन कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

पांचवें यानी अंतिम दिन पुरुषों की वेशभूषा अलग होती है। इस पूरे कार्यक्रम के समापन के लिए आदिवासी लोगों  के गुरु को भी आमंत्रित किया जाता है। गुरुजी का भव्य स्वागत और बहुत आदर-सत्कार किया जाता है। आदिवासी गुरु सफेद रंग का धोती-कुर्ता और पगड़ी पहनते हैं।

इस कार्यक्रम में वह बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी को अमृतवाणी सुनाते हैं और साथ ही कलश पूजा का इतिहास बताते हैं।गाँव की महिलाओं से लेकर सभी पुरुष, बुज़ुर्ग और बच्चे अपने गुरु के सम्मान में उनकी आरती गाकर उनका गुणगान भी करते हैं।

कलश का इतिहास

हिन्दू धर्म के प्राचीन साहित्य में कलश पूजन का वर्णन है। जैसे कि अथर्ववेद में अमृतपुरी कलश का वर्णन है, वहीं  ऋग्वेद में सोमपुरी कलश के बारे में बताया गया है।

जैन धर्म में भी अष्ट-मांगलिक अर्थात आठ प्रकार की शुभकारी वस्तुओं में कलश को भी गिना जाता है।

कलश में सामग्री

पूजा हेतु कलश बनाने के लिए इसमें जल और चुटकीभर हल्दी डालते हैं। कलश में भरा पवित्र जल इस बात का संकेत है कि हमारा मन भी जल की तरह हमेशा ही शीतल, स्वच्छ और निर्मल बना रहे।

एक नारियल पर एक रुपये का सिक्का रखकर इसके चारों ओर मौली धागा बांध देते हैं। इस नारियल को कलश पर ही रखा जाता है।

कलश यात्रा का महत्व

हिंदू धर्म में कलश पूजन का विशेष महत्व होता है। धर्म शास्त्र के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है।

हिंदू धर्म में कई शुभ अवसरों, जैसेृ गृह प्रवेश और व्यापार आदि में नए खातों के आरंभ, नवरात्र एवं दीपावली पूजन के समय कलश स्थापना की जाती है। यह माना जाता है कि कलश स्थापना से कार्य सिद्धि प्राप्त होती है।


लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती हैं। पेड़-पौधों की जानकारी रखने के साथ-साथ वो उनके बारे में सीखना भी पसंद करती हैं। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।

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