सर-ए-मिम्बर वो ख़्वाबों के महल तामीर करते हैं
इलाज-ए-ग़म नहीं करते फ़क़त तक़रीर करते हैं~हबीब जालिब
12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया और उससे पहले तमाम योजनाओं के अंतर्गत एक लाख करोड़ का ऐलान किया गया तो कुल मिलाकर यह पकैज 21 लाख करोड़ का हो गया।
कई दिनों तक लोगों के बीच चर्चा यह का विषय बना रहा और पहली नज़र में देखा जाए तो सरकार की ये घोषणा सुनने में बहुत ही सराहनीय भी लगी, जब यह बताया गया कि इस आपदा में सरकार देश की GDP का 10% इस पैकेज के माध्यम से खर्च करेगी। लेकिन असल में क्या सरकार ने आर्थिक पैकेज के नाम पर इतने पैसे खर्च किए हैं?
आर्थिक पैकेज की प्रमुख बातें
इस पूरे आर्थिक पैकेज से जुड़े सभी भ्रमों में स्पष्टता तब आई जब दो दिन पहले वित्त मंत्री ने इससे संबंधी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बातें रखी और उन्हीं बातों को अगर सरल शब्दों में समझा जाए तो,
- पहला, सरकार ने RBI लिक्विडिटी के नाम पर RBI को 8 लाख करोड़ का पैकेज आवंटित किया कि लोग कम ब्याज़ दर के नाम पर लोन लेंगे जिससे पैसे का फ्लो बढ़ेगा। देश मे लोग लोन कई कारणों से लेते हैं जिसमें कारोबार में बढ़ोत्तरी के लिए, घर खरीदने के लिए या फिर मोटर वाहन खरीदने के लिए, मगर आज लॉकडाउन के वक्त जहां सारा देश ठप पड़ा है। लोगो की कमाई बंद है तो इस परिस्थिति में आमलोग लोन लेने में सतर्कता बरतेंगे क्योंकि लोन की भरपाई के लिए अभी कोई कमाई का ज़रिया ही नहीं है।
- दूसरा, सरकार ने 11.50 लाख करोड़ का आवंटन MSME लोन सेक्टर को किया गया जिसमें छोटे कारोबारियों, स्टार्टअप बिज़नेस को लोन दिया जाएगा। इसमें भी सरकार के खजाने से पैसा खर्च नहीं होगा। यहां भी लोन बैंक एवं फाइनेंस कंपनी द्वारा दिया जाएगा।
- तीसरा, सरकार ने 1.50 लाख करोड़ के पैकेज का आवंटन मनरेगा और जन-धन जैसी योजनाओं को दिया है। इस पैकेज से पहले मनरेगा को सरकार ने 61 हज़ार करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। इस पैकेज से मनरेगा में 40 हज़ार करोड़ रुपए की वृद्धि कर दी गई। इसके अंतर्गत जहां मनरेगा मज़दूरों को पहले 182 रुपए प्रतिदिन मिलते थे अब 202 रुपए प्रतिदिन मिलेगा और दूसरी तरफ जन-धन योजना के अंतर्गत 20 करोड़ महिलाओं के खाते में तीन महीने तक 500 रुपया डाला जाएगा।
कुल मिला कर सरकार द्वारा ऐलान किए गए 20 लाख करोड़ और पहले के एक लाख करोड़ के पैकेज में से सिर्फ 1.50 लाख करोड़ ही सरकारी खजाने से खर्च हुए। तो जहां सरकार ने GDP का 10℅ खर्च करने की बात कही थी, वहीं GDP का मात्र 0.75% ही अपने खजाने से खर्च कर रही है।
सरकार के दांवों और ज़मीनी हकीकत में है फर्क
मतलब जितने की उम्मीद जनता सरकार से कर रही थी उतनी राहत सरकार ने सिर्फ कागज़ों पर दी है ना कि ज़मीनी स्तर पर। जहां तक बात है मनरेगा के अंतर्गत मज़दूरों की प्रतिदिन मज़दूरी बढ़ाने की है, तो मैं आपको बताना चाहूंगा कि ये वही लोग होते हैं जो किसानी करते हैं और ज़्यादा पैसो की ज़रूरत के कारण मनरेगा के अंतर्गत काम करते हैं।
जैसा कि लॉकडाउन में खेती में भी किसानों को परेशानियां झेलनी पड़ी है जिससे आने वाले वक्त में फसल पर भी असर पड़ेगा। अगर सरकार सच में गरीब किसानों एवं मज़दूर का भला करना चाहती है तो किसानी को मनरेगा के अंतर्गत लाए।
इसके दो फायदे हैं एक तो किसानों को किसानी करते हुए भी उस मनरेगा की राशि से रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी हो जाएंगी और दूसरा उनके द्वारा उपजायी गई फसल तय कीमत पर सरकार को बेच कर वो उससे भी पैसे अर्जित कर सकेंगे और दूसरी तरफ मनरेगा के माध्यम से सरकार किसानी को एक प्रोफेशन के तौर पर उभार सकेगी जिससे सरकार निचले स्तर से विकास कर सकती है। खास करके बिहार जैसे प्रदेश में इसका पूर्ण फायदा देखने को मिल सकता है क्योंकि झारखंड से अलग होने के बाद बिहार में रिसोर्सेज अब ना के बराबर रह गए हैं।
न सवाल बन के मिला करो, न जवाब बन के मिला करो मेरी ज़िंदगी मेरे ख़्वाब हैं मुझे ख़्वाब बन के मिला करो
यह लेख लिखते समय ये शेर मेरी ज़हन से गुज़रा और तब मुझे यही ख्याल आया कि लगता है सरकार ने इस शेर को कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से ले लिया है। जहां देश पहले से आर्थिक संकट से गुज़र रहा था और उस पर भी यह कोरोना आपदा से उत्पन्न परिस्थिति में सरकार का रवैया भी कुछ इसी तरह का है जहां या तो सरकार के सारे दावों को सच मान लो या फिर बस इसे एक हसीन ख्वाब समझ लो जिससे दिल को सुकून मिल सके।