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प्रियंका गाँधी और UP सरकार की बसों की राजनीति की क्या ज़रूरत थी?

priyanka gandhi and yogi adityanath

priyanka gandhi and yogi adityanath

सियासत की रंगत में ना डूबो इतना
कि वीरों की शहादत भी नज़र ना आए,
ज़रा सा याद कर लो अपने वायदे ज़ुबां को
गर तुम्हे अपनी ज़ुबां का कहा याद आए।

चिलचिलाती धुप, लू के गर्म थपेड़े और बर्दाश्त ना करने वाली गर्मी। अपने घरों की ओर जाने वाले ये गरीब मज़दूर ना जाने क्या-क्या सह रहे होंगे। मज़दूर कितनी दिक्कतों का सामना कर रहे होंगे, यह तो बाहर सड़कों पर वे ही समझ रहे होंगे।

एसी में ठाठ से बैठे राजनेता इनकी तकलीफ देखते हुए भी आंखें मूंदे हुए हैं। इनको मतलब है तो बस राजनीति से और अपनी पार्टी को सबसे अच्छा और बड़ा दिखाने से।

प्रियंका गाँधी द्वारा दी गई बसें। फोटो साभार- सोशल मीडिया

कोरोना काल में बसों को लेकर हो रही राजनीति बहुत ही निंदनीय और निराशाजनक है। हज़ार बसों को लेकर काँग्रेस और बीजेपी में जो राजनीतिक लड़ाई छिड़ी हुई है, उसे देखकर देश दंग है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में मज़दूरों को भूल ही गए हैं।

चाहे प्रियंका गाँधी की बात हो या योगी आदित्यनाथ की, दोनों ही एक-दूसरे के सामने हैं लेकिन क्या येह सही समय है राजनीति करने का? जवाब है नहीं। यह समय है कि सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों को समझे। किसी को मतलब नहीं है कि कौन राजनीति कर रहा है और कौन नहीं कर रहा है। अगर अभी लोगों की किसी चीज़ से मतलब है, तो वो यह कि बस ये गरीब मज़दूर सही-सलामत अपने घर पहुंच जाएं।

स्कूलों और कॉलेजों की खाली बसों को सरकारें क्यों नहीं चला रही हैं?

कौन सी पार्टी बसों के ज़रिये मज़दूरों को राज्य लाएगी या नहीं लाएगी वाले सवाल के बीच बेबस गरीब मज़दूर पिस रहे हैं। कोई यह नहीं सोच रहा है कि झुलसती धुप में सड़को पर मज़दूर बसों के आने के इंतज़ार में आश लगाए बैठे हैं।

इनको केवल एसी की हवा में मस्त बैठकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से मतलब है और बड़ा सवाल यह है कि स्कूलों और कॉलेजों आदि की जो बसें खाली खड़ी हैं, उनको सरकारे क्यों नहीं चला रही हैं।

ये सब बसें अभी किस काम की होंगी? अभी सारे स्कूल कॉलेज बंद हैं तो आखिर बसों का उपयोग सरकारें क्यों नहीं कर रही हैं?

यूपी सरकार का आरोप है कि आधे से ज़्यादा वाहन अनफिट हैं

तीन दिनों की रस्साकशी के बाद काँग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने अपने कहे अनुसार एक हज़ार बसों की सूची भेजी लेकिन योगी सरकार का आरोप है कि सूची की जांच करने पर जानकारी मिली कि बसों के साथ बाइक, कार, ऑटो और एम्बुलेंस आदि के नंबर भी शामिल हैं।

यूपी सरकार का यह भी आरोप है कि आधे से ज़्यादा वाहन अनफिट हैं। यूपी सरकार के परिवाहन विभाग के जांच में सामने आया कि कुल 1049 वाहनों की सूची में 879 बसें, 31 ऑटो और तीन पहिया समेत 69 अन्य वाहन हैं।

यूपी सरकार ने अच्छी स्थिति वाली 879 बसों को बॉर्डर पर क्यों रोक दिया?

अगर मान लिया जाए कि काँग्रेस की वाहन सूची में पूरी की पूरी बस नहीं है तो जो 879 बसें हैं, आखिर यूपी सरकार ने उन बसों को क्यों रोक दिया? क्यों इन सारी बसों को यूपी बॉर्डर के अंदर नहीं आने दे रही है योगी सरकार?

कम-से-कम इन बसों को तो चलाना चाहिए। इन सब चीज़ों को देखने और परखने के बाद यह साफ है कि राजनीति बीजेपी भी कर रही है। इन राजनीतिक दलों की राजनीति के चक्कर में गरीब सड़को पर मर रहे हैं लेकिन किसको फर्क पड़ता है! सबको तो गरीबों की लचारी पर अपनी रोटियां सेकनी हैं।

एक नेता बनकर नहीं, बल्कि एक आम आदमी बनकर इन लचारों की लाठी बनिए

इस संकटकाल में राजनीतिक दल जिस कदर प्रवासी श्रमिकों को उनके घर पहुंचाने के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, उसे कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है।

इस वक्त यही राजनीतिक दल इन मज़दूरों के लिए कर्ता-धर्ता हैं। इसलिए इस संकट में इनकी बेबसी का इस कदर फायदा उठाना कहीं से भी इंसानियत तो बिल्कुल नहीं है।

आज ज़रूरत है कि ये राजनेता हमदर्दी का दिखावा ना करके हमदर्द बनकर इन गरीबों की मदद करते हुए देश की एकता की मिशाल पेश करें। इस विपत्ति के समय एक नेता बनकर नहीं, बल्कि एक आम आदमी बनकर इन लचारों का लाठी बनना चाहिए।

ना मस्जिद को जानते हैं
ना मंंदिरों को जानते हैं,
वे भूखे पेट हैं साहब
वे सिर्फ निवालों को ही जानते हैं।


संदर्भ- नवभारत टाइम्स

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