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स्टूडेंट्स और पत्रकारों को जेल में डालने वाला UAPA क्या है?

UAPA

UAPA

लोकतंत्र में बोलना ही सबसे बड़ी क्रिया और कर्म है। जिस दिन आपने बोलना बंद कर दिया, समझ लीजिए लोकतंत्र का व्याकरण बिगड़ गया।

हमारे देश के संविधान के आर्टिकल-19 में “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” की बात की गई है जिसके तहत आप और हम दोनों को बोलने और अपने आप को अभिव्यक्त करने की आज़ादी है लेकिन क्या इतना काफी है?

संविधान और उसका आदर

भारत का संविधान। फोटो साभार- सोशल मीडिया

लोकतंत्र को स्थापित करने एवं उसे बनाए रखने के लिए कुछ नियम-कायदे एक मोटी सी किताब में लिख दिए गए जिसे “संविधान” का नाम दे दिया गया लेकिन हमारे देश के नेता और सरकार उस संविधान से भी ऊंचे हैं।

वे जब चाहें, जैसे चाहें इन कायदों के मुंह पर स्याही फेंककर इन्हें बदल सकते हैं। आपकी सहूलियत के लिए नहीं, बल्कि खुद की आसानी के अनुरूप!

पिछले दिनों एक खबर आंखों के सामने से गुज़री कि उमर खालिद, मीरान हैदर एवं शरजील इमाम पर UAPA लगाया गया है। जबकि इसे लगाने के पीछे के कारण व इसका आधार नहीं बताया गया।

उमर खालिद पर दिल्ली के दंगे भड़काने का आरोप है एवं जिस भाषण के लिए उन पर UAPA लगाया गया है, उसमें उमर ने कहा था, “हम नफरत का जवाब नफरत से नहीं देंगे। अगर वे नफरत फैलाएंगे, हम इसका जवाब प्यार से देंगे। अगर वे हमें लाठियों से पीटेंगे, तो हम तिरंगा थामे रहेंगे।”

UAPA कानून है क्या?

अमित शाह और नरेन्द मोदी। फोटो साभार- Getty Images

पहले यह समझने की ज़रूरत है कि आखिरकार UAPA है किस चिड़िया का नाम? गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) कानून 1967 में काँग्रेस सरकार द्वारा लाया गया था।

2019 में इसको संशोधित किया गया, जिसके बाद विशेष संस्थाओं ही नहीं, बल्कि व्यक्तियों को भी इसके ज़रिये आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। इतना ही नहीं, किसी पर शक होने से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकेगा। फिलहाल सिर्फ संगठनों को ही आतंकवादी संगठन घोषित किया जा सकता था।

UAPA की खास बात यह है कि इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी ज़रूरी नहीं है।

आतंकी होने का कलंक हटवाने के लिए भी कोर्ट जैसी स्वतंत्र संस्था उनके लिए नहीं हैं, बल्कि सरकार की बनाई रिव्यू कमेटी के पास ही जाना होगा। इसके बाद ही कोर्ट में अपील की जा सकती है।

UAPA के प्रावधान

यहां दो प्रावधान हैं जिसे समझते हैं कि कैसे किसकी खटिया खड़ी की जा सकती है।

प्रावधानों का‌ तात्पर्य क्या है

इसका सीधा और सटीक अर्थ यही है कि जो हमारे खिलाफ मुंह खोलेगा, उसको कुचल दिया जाएगा। आप भले अपने घर में बैठकर मटर छील रहे हों लेकिन सरकार की आंखों में चुभ गए तो नेताजी सीधा नाप देंगे आपको।

आप भी नपने के अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं, क्योंकि समीक्षा समिति भी उन्हीं नेताजी की है जिन्होंने आपको नापा है।

कोरोना की आड़ में UAPA

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- सोशल मीडिया

कोरोना की आड़ में यूएपीए का भूत धीमे-धीमे बोतल से निकाला गया और दिल्ली व कश्मीर जैसे इलाकों में छोड़ दिया गया। पिछले दिनों कश्मीर के तीन पत्रकारों पर यूएपीए लगाया गया।

अनुच्छेद 370 (2) व (3) को निरस्त किए जाने के बाद से ही कश्मीर से ज़मीनी रिपोर्ट आनी बंद हो गई थी। इससे भी डरावना यह है कि पत्रकारों की आज़ादी पर ताले लगा दिए गए। बिना सरकार की इजाज़त के कश्मीर में “परिंदा भी पर नहीं मार सकता है।”

कश्मीर में पत्रकारों के साथ होने वाली बर्बरता कई सवाल खड़े करती है लेकिन मीडिया के बाबू लोग जब सवाल पूछते ही नहीं हैं, तो सवालों का कोई मतलब नहीं रह जाता है।

वे घटनाएं जो आपके दिमाग में चौंधिया रही होंगी

20 फरवरी को बेंगलुरु में असद्दुदीन ओवैसी की सीएए के खिलाफ रैली होती है जिसमें 19 साल की एक लड़की अमूल्या लियोना “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” का नारा लगाती है, इसके बाद उसे मंच से खींचकर हटा दिया जाता है।

हालांकि किसी ने भी उस लड़की की पूरी बात नहीं सुनी एवं उसके द्वारा लगाए गर हिंदुस्तान ज़िंदाबाद के नारे भी अनसुने कर दिए गए।

इसके बाद पुलिस ने अमूल्या को धारा 124 ‘ए’ के तहत हिरासत में लिया लेकिन यहां पर विचार करने वाली बात यह है कि “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” के नारा लगने से राजद्रोह कैसे हो सकता है?

कुछ ऐतिहासिक पहलू

इंदिरा गाँधी। फोटो साभार- Getty Images

31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद पंजाब सरकार के दो कर्मचारियों, बलवंत सिंह और भूपिंदर सिंह को “खालिस्तान ज़िंदाबाद” और “राज करेगा खालसा” का नारा लगाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

बलंवत और भूपिंदर ने इंदिरा गाँधी की हत्या के कुछ घंटे बाद ही चंडीगढ़ में नीलम सिनेमा के पास ये नारे लगाए थे।

इन पर भी आईपीसी की धारा 124-‘A’ के तहत राजद्रोह का केस दर्ज़ हुआ था, मामले ने तूल पकड़ा और सुप्रीम कोर्ट में गया। 1995 में जस्टिस एएस आनंद और जस्टिस फैज़ानुद्दीन की बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस तरह से एक दो लोगों का नारा लगाना राजद्रोह बिल्कुल नहीं है।

सरकारी वकील ने यह भी कहा कि इन्होंने “हिन्दुस्तान मुर्दाबाद” के भी नारे लगाए थे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इक्के-दुक्के लोगों के इस तरह के नारे लगाने से इंडियन स्टेट को खतरा नहीं हो सकता है।

यानी अप्रत्यक्ष रूप से कहा जाए तो हिंदुस्तान की बिसात इतनी छोटी नहीं है जो इन छोटे-मोटे बयानों से हिल जाए। अदालत ने बलवंत सिंह और भूपिंदर सिंह के ऊपर से राजद्रोह का मामला हटा लिया था।

अब इस फैसले का हवाला देते हुए यह जग ज़ाहिर है कि अमूल्या निर्दोष है लेकिन टीवी जगत के एंकरों ने कोर्ट से पहले फैसला सुनाते हुए उस 19 साल की लड़की को देशद्रोही और गद्दार जैसी उपाधियों से सम्मानित कर दिया था।

यह मात्र विडम्बना के अलावा कुछ भी नहीं है कि जिस देश के संविधान ने आपको और हमको अभिव्यक्ति का अधिकार दिया है, उसी संविधान में 124 ‘ए’ व UAPA जैसे कानून हम पर थोपे गए हैं।

एक 19 साल की लड़की पड़ोसी देश के ज़िंदाबाद होने के नारे लगाती है, तो वह देशद्रोही बन जाती है। जो लोग उसे देशद्रोही अथवा राजद्रोही के रूप में देख रहे हैं, वे इस बात से वाकिफ नहीं हैं कि भारत एक राष्ट्र राज्य (नेशन स्टेट) है।

संविधान में यह साफ कहा गया है कि पड़ोसी देशों से अच्छे सम्बन्ध होने चाहिए लेकिन आजकल फैसले संविधान के आधार पर नहीं, बल्कि भावुकता के आधार पर लिए जाते हैं। या यूं कहें कि अपने हितों के आधार पर लिए जाते हैं।

अत: कथित राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को कट्टर बनाने की प्रक्रिया चल रही है, जिसमें संविधान को दरकिनार किया जा चुका है। राष्ट्रवाद व देशभक्ति की दुकान चुनाव जीतने व लोगों को दंगाई बनाने के लिए काफी है।


संदर्भ- आउटलुक

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