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“लॉकडाउन ने जहां मेरी सैलरी होल्ड पर रखवा दी वहीं, मुझे मेरे परिवार से भी मिलवाया”

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परिवार

22 मार्च 2020, को एक राहत मिली जब सुना एक दिन का जनता कर्फ्यू लगा है, और घर पर रहने को मिलेगा। घर पर परिवार भी खुश और मैं भी खुशियां मना रहा था, उस एक दिन के लिए। क्या पता था यह एक दिन पहले 14 दिन होगा फिर 1 महीना, और यही एक महीना फिर 2 महीने में तब्दील हो जाएगा।

वर्क फ्रॉम होम कुछ दिनों के लिए तो बहुत अच्छा लगा, लेट कर बैठ कर, किसी भी तरह काम करने का अपना अलग ही मज़ा आ रहा था। दिन बीतते गए और हालात बदलते गए, आलस और कामचोरी शायद मेरे ऊपर हावी होने लगी थी। कुछ दिनों तक बड़े आराम से बार-बार चाय या कॉफी की चुस्की लेते हुए काम करने का अनुभव बड़ा आनंदित था, मगर कुछ ही समय बाद यह आनंद, विषाद में बदल गया और मेरा मन काम से उकताने लगा।

मैं काम को टालने लगा और अंत में मैं अपने तय समय की सीमा तक अपना काम नहीं दे पाया जिस वजह से मेरी सैलरी होल्ड हो गई। वैसे भी कम्पनी वालों को तो सैलरी होल्ड करने का बहाना चाहिए ही होता है, और लॉकडाउन में तो यह और ज़रूरी ही हो गया है। मेरी सैलरी होल्ड पर रुकने का सारा जिम्मा मैं अपने ऊपर ही लेता हूं। घर में पड़े-पड़े मैं अलसी हो गया और मेरा वजन भी बढ़ गया।

बात आती है परिवार की, तो सभी को एक साथ अपनों के साथ समय बिताना अच्छा लगता है, एक साथ नाश्ता एक साथ खाना फिर एक ही साथ गपशप फिर पुराने बचपन के दिनों को याद करके अभी भी मम्मी के पल्लू में छिप जाना, और पापा के आने पर अपनी हंसी रोक लेना, इस दौरान यही सब घर में हो रहा है।

ऐसा माहौल शायद पांच-छह साल बाद ही आया होगा, जब हम सब साथ हैं अम्मी, पापा जी और भाईजान, भाभी और उनके बच्चे। लॉकडाउन से पहले हम सिर्फ संडे को मिला करते थे, वो भी बस सुबह के नाश्ते के समय, उसके बाद मैं फोटोग्राफी करने बाहर चला जाता और फिर शाम को लौटता। तब तक भतीजे-भतीजी भी थक कर टीवी देखने लगते थे। मैं भी थक कर अपने रूम में चला जाता था, मगर इस लॉकडाउन ने कईयों के लिए तो बहुत दुखदायी परिणाम दिए मगर कुछ के लिए यह अच्छा भी रहा है।

इस लॉकडाउन के दौरान बेशक हमारे पास मोबाइल होता है और पब्जी भी होता है। साथ ही साथ टाइम पास करने के लिए टिक-टॉक के मस्ती भरे वीडिओज़, मगर कहीं न कहीं ऐसा नहीं लगता था जैसे हम बस ऑफिस और मोबाइल के ही हो कर रह गए हैं। ऐसा लगता था जैसे परिवार भी है कुछ?

माँ बाप, भाई, बहन की जगह यूट्यूब, टिक-टॉक ने ली थी और रही सही बची कसर पब्जी ने पूरी कर दी थी। अब कुछ दिनों से घर में रुककर एहसास हो रहा है कि हमारा एक जीता जागता परिवार है। यहां अब हमको किसी टिक-टॉक या किसी गेम की लत नहीं लगी है। अब ऐसा लगता है, हम सब कितने सिक्योर हैं, परिवार का महत्व समझ आने लगा। लगने लगा परिवार का होना कितना ज़रूरी है।

हमारे समाज की संस्कृति और हमारे परिवार की सांठ-गांठ अब समझ आने लगी। अब इस बात का इंतज़ार नहीं रहता के इस शुक्रवार कौन-सी मूवी रिलीज़ होगी। कल कौन-सा टास्क मिलेगा। बॉस से कल अकेले में कौन मिलने वाला है। किसके नंबर आगे रहेंगे।

अब बस याद रहता है अम्मी के हाथ का पहला निवाला जो मैं दिन और रात के खाने के वक्त खाता हूं। याद रहता है आज किसका नंबर होगा किचन में कुकिंग का? आज स्नैक्स कौन बनाएगा? आज लूडो में किसको हराना है। पापा जी की पीठ पर पाउडर लगाने का समय भी याद है शार्प 9 बजे रात।

लॉकडाउन ने जहां मेरी सैलरी होल्ड पर रखवा दी वहीं, मुझे मेरे परिवार से भी मिलवाया। मुझे यकीन दिलवाया के मैं कितना सुरक्षित हूं। हम सबके पास निस्वार्थ प्रेम का अंबार है और साथ-के-साथ उस माँ के आंचल की खुशबू जिसने तुमको जन्म दिया। कुल मिलाकर यह पल आगे जाकर याद आने वाले हैं, तो इस लम्हे को जी भर जी लो, हां मगर सोशल डिस्टेनसिंग का ख्याल भी रखिए।

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