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लॉकडाउन: सोनू सूद जैसा काम सरकारें क्यों नहीं कर पा रही हैं?

sonu sood helping people during lockdown

सोनू सूद से सीख सकती है सरकार

कोरोना संकट पूरी दुनिया के लिए मुश्किल बना हुआ है। दुनिया के लगभग सभी देश इस संकट से उबरने की कोशिश कर रहे हैं। कई सामाजिक संस्थाएं भी इस काम में अपना योगदान दे रही हैं। इस बीच लोकप्रिय अभिनेता सोनू सूद भी इस संकट में लोगों की मदद कर रहे हैं। इस समय जब राजनेता कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं, हालांकि कुछ लोग हैं जो मदद कर रहे हैं लेकिन वह इतनी भी नहीं है कि मीडिया में जगह बन सके। ऐसे में सोनू सूद के प्रयासों को लेकर विस्तार से बात करना ज़रूरी हो जाता हैं।

मज़दूरों के महानायक बने सोनू सूद

लॉकडाउन के चलते देश में प्रवासी मज़दूरों का जो हाल हुआ है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। मज़दूरों के तकलीफ को देखते हुए अभिनेता सोनू सूद ने अपनी तरफ से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और गुलबर्गा के साथ-साथ अन्य कई जगहों पर मुंबई से बसें चलवाई हैं। खास बात है कि सफर के दौरान किसी को भूखा ना रहना पड़े इसलिए भोजन का भी प्रबंध किया गया है।

अब तक हज़ारों की तादाद में मज़दूर सोनू सूद की मदद के चलते अपने गाँव बिना किसी परेशानी पहुंच पाए हैं। ऐसे ही बिहार में अपने गाँव गए कुछ मज़दूर सोनू सूद का पुतला बनवाने की तैयारी में हैं। सोनू सूद का स्टैच्यू बनना चाहिए या नहीं इस बहस में हमें नहीं पड़ना चाहिए, बल्कि सोनू सूद जो कर रहे हैं वह काफी आश्वासक और ज़रूरी है।

अभिनेता सोनू सूद

डॉक्टरों की भी कर चुके हैं सहायता

ऐसा नहीं है कि सोनू सूद सिर्फ प्रवासी मज़दूरों की ही मदद कर रहे हैं, उन्होंने डॉक्टरों की भी काफी हद तक मदद की हैं और अभी भी कर रहे हैं। मुंबई में इनका खुद का होटल है जो कोरोना पेशेंट का इलाज कर रहे डॉक्टरों के लिए खोल दिया गया है। कुछ डॉक्टरों के रहने की व्यवस्था वहां पर कर दी गई है। वहीं दूसरी ओर सोनू सूद पंजाब में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए 1500 पीपीई किट भी दे चुके हैं।

कुछ दिन पहले न्यूज़ एजेंसी पीटीआई द्वारा हुए इंटरव्यू में सोनू सूद ने कहा था कि उनसे मज़दूरों का दुख देखा नहीं जा रहा है और वो उन्हें घर पहुंचाने के लिए पूरी कोशिश करेंगे।

शुरू हो गई राजनीति

सोनू सूद प्रवासी मज़दूरों की मदद कर रहे हैं इसको लेकर राजनीतिक पार्टियां भी मैदान में हैं। काँग्रेस ने ट्वीट करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार पर तंज कसा है कि अगर अभिनेता उत्तर प्रदेश में होते तो जेल की सलाखों के पीछे डाल दिए जाते।

दरअसल इससे पहले प्रियंका गाँधी ने उत्तर प्रदेश सरकार से अनुरोध किया था कि उन्हें प्रदेश सरकार प्रवासी मज़दूरों के लिए 1000 बसें चलाने का परमिशन दें। शुरुआत में सरकार द्वारा इसकी अनुमति दी गई लेकिन बाद में यह कहकर मना कर दिया कि इन गाड़ियों में सभी ऑटो रिक्शा, फोर व्हीलर के ही नंबर हैं। जबकि वास्तव में 800 से अधिक बसें उपलब्ध थीं। जिनका इस्तेमाल किया जा सकता था लेकिन 500 बसें बिना किसी उपयोग के वापस चली गईं।

सोनू सूद से सीख सकती है सरकार

राजनेताओं को सोनू सूद से कुछ सीखना चाहिए

इस संकट की घड़ी में अगर कुछ गिने-चुने राजनेताओं को छोड़ दें तो सभी विधायक, सांसद, पार्षद अपनी बड़ी-बड़ी हवेली के अंदर छिपे हुए हैं। इसमें खास जिक्र उनका है जो मुंबई में अपनी राजनीति कर रहे हैं। उत्तर भारतीय राजनेताओं को भी कुछ करना चाहिए जो राजनेता मुंबई और महाराष्ट्र में इन्हीं प्रवासी मज़दूरों के दम पर अपनी राजनीति चमकाते हैं। क्या इन नेताओं का कोई फर्ज़ नहीं था कि वे इन असहाय लोगों की मदद करें?

प्रधानमंत्री राहत कोष पीएम केयर फंड निष्क्रिय क्यों है?

कोरोना के संकट से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पीएम केयर का गठन किया गया जिसमें आम लोग परेशान लोगों की मदद के लिए कुछ कर सकें। पीएम केयर के भी पहले से मौजूद प्रधानमंत्री राहत कोष ऐसी ही एक पहल है। इसका कितना फायदा देश को हुआ? आंकड़ों के मुताबिक पिछले 10 साल में प्रधानमंत्री राहत कोष का सिर्फ 50% हिस्सा ही खर्च हो पाया है।

पीएम केयर को लेकर भी कई सवाल खड़े हुए हैं। पीएमओ ने इसकी जानकारी देने से मना कर दिया। एसबीआई पीएम केयर को लेकर जानकारी नहीं दे रहा है। पीएम केयर संसद के दायरे से बाहर है। ऐसे में इसको लेकर संशय और भी गहरा हो जाता है, तो फिर क्या यह कहा जा सकता है कि जितनी हो सके किसी भी ज़रूरत की मदद व्यक्तिगत तौर पर ही करें?

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