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“पीरियड्स में मैं अपने पैड्स को भाई से क्यों छिपाऊं?”

Periods, society, problem

पीरियड्स का दर्द से परेशान महिला की प्रतीकात्मक तस्वीर

वैसे तो अब पीरियड्स की आदत हो गयी है। हर महीने चार-पांच दिन दर्द में ही कटते हैं और उनके खत्म होते ही अगले दिन मैं भूल जाती हूँ कि ये चार-पांच दिन आते रहेंगे।

मुझे याद है जब मुझे पहली बार ब्लीडिंग हुई थी, उस वक्त मैं अपने नानी के घर थी। मेरी नानी ने मुझे समझाने का काम मेरी मामी को सौंप दिया था। मामी ने मुझे पैड दिया और उसे यूज़ करना सिखाया।

मैं इतना सहम चुकी थी कि सबकी नजरों पर नज़र रखने लगी थी। मुझे ये लग रहा था कि घर मे सबको पता है तो सब मुझे अजीब तरीके से देख रहे हैं। मुझे खाना खाने में भी घिन आ रही थी इसलिए दोपहर का खाना मुझसे नहीं खाया गया था।

पिछले महीने की ही बात है, मैं अपने कमरे से एक पैड निकाल कर आंगन में बने वाशरूम की ओर जाने लगी। तभी माँ की आवाज़ आई,

“शर्म करो उसे हाथ में लेकर क्या जा रही हो? न्यूज़पेपर में छिपा कर नहीं जा सकती?” मैने माँ को जवाब में बताया कि मैं पहले भी भाई से पैड्स मंगा चुकी हूं। अब वो भी इन बातों को समझता है। इस उन्होंने मुझे चार बातें और सुनायीं।

अब सवाल ये है कि क्यों मैं पैड को छिपा कर ले जाऊं? मेरे भाई को पीरियड्स के बारे पता क्यों नहीं होना चाहिए? उसे क्यों नहीं पता होना चाहिए कि मैं जब महीने एक बार आचानक से चिड़चिड़ी हो जाती हूं तो उसका कारण पारियड्स होता है।

इसमें क्या बुराई है? या फिर शर्म जैसी कौन-सी बात है?

दो महीने पहले मैं एक हफ़्ते के लिए अपनी एक दोस्त के घर रहने जा रही थी। उसने मुझसे पूछा कि तुम्हारे पीरियड्स तो नहीं आने वाले अभी? क्यों पूछने पर उसने बताया कि उसके घर पर पीरियड्स के समय औरतों को एकदम सबसे अलग रहना होता है।

उसका बिस्तर से लेकर उसके सारे सामान जो भी वो इस्तेमाल कर रही हो, वो सब कोई नहीं छूता है। उसने मुझे यह सब पहले ही बता दिया जिससे मुझे अजीब नहीं लगे।

उसने बताया कि वो चाह कर भी अपने घर वालों की सोच को नहीं बदल सकती है और इस बात का उसे बहुत दुख होता है।

बहुत चाहकर भी जब वो असहनीय शारीरिक और मानसिक तनाव से गुज़र रही होती है, उसे सबसे अलग रहना होता है। वह अपना दर्द किसी से बांट भी नहीं सकती है।

क्या कभी किसी ने सोचा है कि ये सब कितना कठिन होता होगा? उसके लिए और उसकी जैसी तमाम लड़कियों के लिए जिन्हें असहनीय दर्द को छिपाना पड़ता है।

पीरियड्स का दर्द से परेशान महिला की प्रतीकात्मक तस्वीर

माँ जब पीरियड्स के दिनों में चाय बनाने को कहती है तब आज भी मैं आँगन में लगी तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ पाती हूं। क्योंकि माँ कहती है उसकी पूजा होती है, उसे हाथ भी मत लगाना।

ना चाहते हुए भी हमारे दिमाग की जड़ों में ये बातें भर दी गई हैं जो रूढ़िवादी और खोखली हैं। इसे हमारी कंडिशनिंग में इस तरह से जोड़ा गया है कि ये हमारी आदत में तब्दील हो गया है।

आज मेरे पीरियड्स का ग्यारवां दिन है और अभी भी ब्लीडिंग जारी है। चाची ने कहा कि कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि पीरियड्स ज्यादा दिनों तक चलते हैं।

मैंने ऐसा भी सुना है कि मानसिक तनाव की स्थिति में भी पीरियड्स प्रभावित हो जाते हैं। लॉकडाउन की वजह से मैं किसी हॉस्पिटल जाने से भी कतरा रही हूं क्योंकि हॉस्पिटल मेरे गांव से करीब पंद्रह किलो मीटर दूर है।

पिछले ग्यारह दिनों से ब्लीडिंग के साथ पेट दर्द, शरीर दर्द यह सब सहन कर रही हूं। लेकिन अब भी घर में मां और चाची को मेरे दर्द से ज्यादा चिंता मेरे पीरियड्स के बारे में किसी को पता न चले इस बात की हो रही है।

ऐसा आखिर कब तक चलेगा? लड़कियों को शारीरिक दर्द के साथ-साथ ये मानसिक तनाव कब तक झेलना पड़ेगा।

एकता सिंह

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