Site icon Youth Ki Awaaz

मै कुछ न कर सका !

स्पष्ट है कि मन की पीड़ा को व्यक्त करने का सबसे सरल एवं सहज माध्यम लेखन है,लेखन माध्यम से हम अपने मन के भावों को जो हम वाणी माध्यम से नहीं व्यक्त कर पाते उन्हें भी सरलता से व्यक्त कर सकते हैं । उपर्युक्त शीर्षक कुछ ऐसे ही भावों को व्यक्त करता है जिन्हे व्यक्त करने में सहजता महसूस नहीं हो पा रही। परिस्थितियां मनुष्य के जीवन में कुछ भी करा सकती हैं परन्तु कभी कभी परिस्थितियां ऐसी भी बन जाती है कि मनुष्य करना तो बहुत कुछ चाहता है लेकिन विवशता के अधीन वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता ।ऐसी ही विवशता को आज मै शिक्षक होकर जीवन के इस पड़ाव में महसूस करता हूं। घटना दो दिसंबर सन् दो हजार उन्नीस की है ,घटना के कुछ ही दिन पहले हमारे विकासखंड में ब्लाक स्तरीय खेल कूद प्रतियोगिता का आयोजन होता है जिसकी तैयारी हमने बीस दिन पूर्व ही शुरु कर दी थी । विद्यालय के प्रतिभावान बच्चो की खेल प्रतियोगिता में भाग लेने हेतु सूची तैयार की गई ।सूची में कक्षा आठ के होनहार छात्र विशाल का नाम भी शामिल था । विशाल हमारे विद्यालय का खेल एवं पुस्तकालय मंत्री भी नियुक्त है,अवगत हो कि विशाल विद्यालय के सभी कार्यकलापों में अग्रणी रहने वाला छात्र है जो मेरे विद्यालय पहुंचने के पहले ही आ जाता है बड़ों का आदर तथा छोटों से प्यार मानो उसकी आदत सी बन गई हो। खेल प्रतियोगिता वाले दिन सभी बच्चे प्रत्येक खेलो में प्रतिभाग करते है और अव्वल अंक प्राप्त करते है।सभी अध्यापकों को भी वह पल गौरवपूर्ण महसूस हो रहा था,बच्चे भी अत्यंत खुश थे उन्हें पुरस्कृत भी किया गया उन्हीं बच्चो में शामिल था विशाल जिसने दो खेलो में प्रतिभाग कर विद्यालय एवं न्यायंचायत का नाम रोशन किया था। सब यथावत चल रहा था सभी अपने अपने घर गए विद्यालय भी यथावत चलता रहा।हमने विद्यालय में बच्चो का सम्मान समारोह आयोजित करने की चेष्टा की अकस्मात कक्षा आठ का छात्र विशाल का सहपाठी मेरे पास आकर कहता है कि सर कल से विशाल विद्यालय नहीं आ सकेगा अचानक मानो मै पूर्णतया स्तब्ध हो गया था परन्तु बात की पुष्टि हेतु मैने विशाल को बुलवाया उससे जानकारी ली तो पता चला यह सच है वास्तव में वह एक महीने के लिए अपने चाचा के पास जा रहा है, पर उसके जाने का कारण जानकर मेरे पैरो तले जमीन खिसक गई कारण था रोजगार।दरअसल विशाल अपने बाबा के साथ ही रहता है उसके घर में उसका एक भाई और बहन भी है ।विशाल और उसके भाई बहन भी विद्यालय में पढ़ते है उनकी जीविका खेती पर ही निर्भर है इसलिए या तो पढ़ने विशाल आ पाता है या उसका भाई। बाबा के वृद्ध होने से घर की जिम्मेदारी विशाल पर ही थी ,सब कुछ पता चलने पर मेरी आंखे सजल हो गई ।मैंने विशाल को समझाने का प्रयत्न किया की अभी उसकी पढ़ने की उम्र है परन्तु मै उसकी दशा से भी अवगत था ।मैंने उसके बाबा से बात करनी चाही पर वह नहीं माना कुछ आर्थिक रूप से मदद करने का प्रयास भी किया परन्तु विशाल एक स्वाभिमानी लड़का है उसने आदर पूर्वक मेरे भावों को समझा परन्तु माना नहीं उसके ना मानने पर मैने जीवन में अपने आप को ऐसी स्थिति में पाया जैसे कि मै चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा हूं ,वह समय ऐसा था जिसने मेरी अंतरात्मा को हिला कर रख दिया था ।रास्ते भर मै यही सोचता रहा कि क्या करू कि वह रुक जाए ,मैंने अपने मित्रो से भी बताया वे भी मुझे मेरी ही स्थिति में नजर आए।मै रात भर नीद से अनभिज्ञ रहा एक अजीब सा दर्द महसूस होता रहा । सच में महसूस हुआ की मनुष्य चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता परिस्थितियां उसके हाथ में नहीं होती वह तो विधाता के हाथ की कठपुतली मात्र ही है।

प्रत्येक दिन की भांति अगले दिन भी विद्यालय पहुंचा एक अजीब सा खालीपन महसूस हो रहा था विद्यालय पहुंचा तो था पर विशाल नहीं नजर आया हृदय कुपित था तभी मैने लेखनी उठाई और अपने कार्यालय में अपने भावों को लिखने बैठ गया ,तभी अचानक कार्यालय में एक लड़का प्रवेश करता है मै उसे देखता भी नहीं बस लिखने में व्यस्त था वह मेरे पैरो को स्पर्श करता है सिर ऊपर करता है तो मै अचंभित हो जाता हूं ,वह लड़का और कोई नहीं विशाल ही था ,मै इतना प्रसन्न हुआ मानो मुझे बहुत कीमती वस्तु मिल गई हो एक बार मेरी आंखे पुनः सजल हो गई पर इसबार आंखो में खुशी के आंसू थे । आज मै विशाल के बाबा से मिलने भी जाऊंगा जिन्होंने मेरे आग्रह से उसे जाने नहीं दिया और शिक्षा को महत्ता दी ।।

    मै निवेदन करता हूं सभी शिक्षक व शिक्षिकाओं से कि कोई भी विशाल हमारे विद्यालयों में  शिक्षा से दूर नहीं जाना चाहिए ये हमारा कर्तव्य है ।

 

अध्यापक की कलम से !

सजल मिश्रा

नवाबगंज, बहराइच

 

Exit mobile version