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अबोध की आवाज रश्मि

बचपन एक ऐसी उम्र होती हैँ, जब बगैर किसी तनाव के मस्ती से जीवन का आनंद लिया जाता हैँ !नन्हें होटों पर फूल सी खिलाती हंसी वो शरारत, रूठना, मनाना वो अठखेलियां, जिद करना.., ये सब बचपन की पहचान होती हैँ, सच कहे तो ये ये बचपन का समय वह वक्त होता हैँ जब आप दुनिया दरी के झमेलों से दूर अपनी हि मस्ती में मस्त रहते हैँ…… आज हम बात कर रहें हैँ बिहार की संघर्ष और अबोध बच्चों की आवाज बिहार की बेटी रश्मि श्रीवास्तव की….. बिहार के पटना में जन्मी रश्मि पटना शहर में अनाथ और अबोध बच्चों के लिये संघर्ष करती हैँ,  रश्मि का बचपन काफ़ी संघर्षो भरा रहा हैँ, पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने ठाना की पटना की सड़कों को अनाथ और अबोध बच्चों को एक दिशा दि जाये.. और वह सोच एक सपना और वह जिद जागो अबोध संस्था के रूप में उसकी नींव रखी गई !रश्मि ने ठाना की पटना में छोटे बच्चों को पढ़या जाये और वो इस काम को दिनचर्या में परिवर्तित कर ली !पटना की सड़कों पर छोटे बच्चों को उनके अधिकरों को और उनके स्वास्थ्य से जुडी बातों को बच्चों को क्रिया सील में लग गई !आज पुरे विश्व में कोरोना वैश्विक बीमरी में रश्मि ने छोटे बच्चों को उनके स्वास्थ्य सम्बंधित जानकारियां और मास्क, साबुन निशुल्क वितरण सामजिक दुरी और साफ सुथरी जीवन शैली जीने के तरीकों को बच्चों के बिच लगातार रखती रही !रश्मि का जीवन एक सामजिक जीवन हैँ और वो अपने जीवन में इसे बखूबी निभाती हैँ खासतोर पे अनाथ और अबोध बच्चों को वो लगतार उनके अधिकारों से रूबरू करवाती हैँ !रश्मि उन बच्चों के खोते बचपन को संभलती हुई कहती हैँ की बचपन की खुशी गुम होती जा रही हैँ, बच्चों को बस्ते के बोझ से बोझिल किया जा रहा हैँ जो की एक खतरनाक सत्य हैँ, वो बचपन के अधिकरों को और बच्चों के बिच बचपन की खुशी को बोझ में नहीं बल्कि मुस्कान और खुशी में तब्दील करना चाहती हैँ, जागो अबोध संस्थान के सपनों को वो बिहार के सुदूर गाँव में अनाथ और अबोध बच्चों को एक दिशा और एक धरा देना चाहती हैँ… वो कहती हैँ की बचपन को एक आसान और सरल तरीके से बच्चों को खेल खेल में जिया जाये ना की बोझिल बन के……..

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