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आइन्स्टीन, चीन, सीमा विवाद और एक्यूप्रेशर

आइन्स्टीन की वो प्रसिद्ध लाइन,” मुझे नहीं पता कि तीसरे विश्वयुद्ध में कौन सा हथियार उपयोग होगा पर चौथा विश्वयुद्ध लाठी-पत्थर से लड़ा जायेगा।”

ब्रिटेन के एक अख़बार की मानें तो आइन्स्टीन गलत हो गया, तीसरे विश्वयुद्ध की ही शुरुआत लाठी-पत्थर से हुयी! ट्विटर को देख कर इतिहास लिखा जायेगा तो अलबर्ट आइन्स्टीन गलत हो जायेगें। वैसे ये कोई पहली बार नहीं है कि इस तरह ट्विटर पर तीसरे विश्वयुद्ध की सुगबुगाहट शुरू हुयी, अमेरिका और ईरान के बीच हुए तनाव को भी ट्विटर ने यही नाम दिया था.।

Rahul Roushan

@rahulroushan

 

England ke newspaper ne toh World War 3 hi declare kar diya hai.. 5 Chinese soldiers killed reportedly by Indian Army

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दरअसल चीन की साम्राज्यवादी मानसिकता ने उसे हमेशा युद्ध में उलझा कर रखा है। औपनिवेशिक काल के पहले जिस प्रकार एक राजा दूसरे पर हमला कर राज्य पर कब्ज़ा करते थे, चीन वैसा ही बाद में भी करता रहा।

इस सब में चीन के युद्ध की परिभाषा बांकी के देशों से अलग हो गयी है। भारत, अमेरिका या दूसरे देशों के लिए युद्ध का मतलब तोप, गोला, बारूद होता है तो चीन युद्ध में लाठी-डंडा-पत्थर और मुद्रा का उपयोग करता है।

चीन युद्ध में हारना या जीतना नहीं चाहता बस वो हावी रहना चाहता है फिर उसके लिए उसे कोई कीमत चुकानी पड़े। दूसरे देशों पर व्यापार घाटा थोपना, जमीन को लीज लेना हो या समुद्र में जाती छोटे देशों के सैनिक जहाज को टक्कर मारना, ये सब चीन की युद्ध नीति के हिस्से हैं।

एक नज़र से देखा जाए तो कांग्रेस ने चीन को सदैव बढ़ावा दिया है

दुर्भाग्य से भारत यह अबतक ना समझ सका। जब आपके पास राहुल गाँधी जैसा नेता और कोंग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टी हो तो सबकुछ समझ कर भी कुछ नहीं किया जा सकता है।

चीन के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को कोंग्रेस ने इस तरह भंजाया है कि शेर भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे वाली सोच मालूम होती है। एक तरफ कोंग्रेस भारत में सत्ता में रही तो दूसरी तरफ चीन भारत पर व्यापार घाटा भी थोपता रहा और जब तब भारत के जमीन पर कब्ज़ा करता रहा.

कांग्रेस का चीनी कम्युनिस्ट से समझौता संदेह उत्पन्न करता है

मजे की बात तो ये है कि पहले यह सब जहां पर्दे के पीछे चलता था वहीं 2008 के बाद कोंग्रेस ने चीनी कम्म्युनिस्ट पार्टी के साथ अधिकारिक समझौता भी कर लिया।

दो देशों के बीच द्विपक्षीय समझौते तो होते हैं पर गठबंधन की राजनीति में माहिर हो चुकी कांग्रेस ने चीन-और-भारत के बीच समझौते करने के बजाय भारत के तत्कालीन सत्ताधारी पार्टी जिस पर एक ही परिवार का कब्जा है और चीन की सत्ताधारी पार्टी के साथ गटबंधन किया।

चीन के विरुद्ध बोलने पर की जाती है कार्यवाई

इसी गटबंधन का नतीजा है कि कांग्रेस पार्टी में रहते हुए कोई देश के खिलाफ बोल सकता है पर चीन के खिलाफ बोलने पर कार्यवाई की जाती है। ऐसा लगता है चीन ना हुआ राहुल गांधी हो गया। संजय झा को इसलिए पार्टी प्रवक्ता पद से हटा दिया गया।

ऐसा लगता है कि कोंग्रेस और मिडिया दिवालिया हो चुकी है, जो सरकार से उचित सवाल नहीं पूछ पाती।

गलवां की धारा रोकने में क़ामयाब चीन, हमारी विफलता है

यह सरकार, खुफिया एजेंसियों की नाकामी ही है कि बिना किसी शोर-शराबे के चीन गलवान नदी की धारा रोकने में कामयाब रहा. इस बात के सार्वजनिक हो जाने के बाद भी, ना मीडिया और ना विपक्ष, इस बात पर सवाल कर रहा है।

कांग्रेस और उसका ‘इको सिस्टम’ उस बल्लेबाज की तरह है जो गेंद आने से पहले ही बल्ला चला देता है। हालांकि जलधारा रोकने में कोई देश एक दूसरे को रोक नहीं पाता है जबकि इसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर हुआ रहता है।

लेकिन जब कभी संधि का उल्लंघन होता है तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शोर-शराबा होता है पर चीन ने इसबार भारत को चकमा दिया और बिना किसी शोर-शराबे के अपने मंसूबे को पूरा करने में कामयाब रहा।

एक्यूप्रेशर तकनीकी का प्रयोग कर रहा है चीन

कोरोना वायरस प्रकरण के बाद चीन पूरी तरह घिर चुका है और इस दर्द को कम करने लिए वह ‘एक्यूप्रेशर तकनीकि’ का इस्तेमाल कर रहा है।

आमतौर पर जब कभी शरीर के किसी हिस्से में दर्द होता है तो एक्यूप्रेशर विशेषज्ञ उस हिस्से को छोड़ कर कोई दूसरा हिस्सा जोर से दबाता है। जिससे हमारा ध्यान उस दूसरे हिस्से पर चला जाता है और हम पहले हिस्से पर हो रहे दर्द को भूल जाते हैं।

चीन यही कर रहा है। वह दूसरे देशों के जमीनी सीमा सहित समुद्री सीमाओं पर तनाव उत्त्पन्न कर रहा है जिससे विश्व का ध्यान इस महामारी से हट जाए।

चीन और पाकिस्तान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं

दरअसल चीन और पाकिस्तान एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। जिस तरह पाकिस्तान की फ़ौज युद्ध करने के अलावा हर वो काम करती है जो उसे नहीं करना चाहिए, मसलन फ़िल्में बनाना, शोपिंग मॉल चलाना, उद्योग चलाना आदि उसी तरह चीन में भी आर्मी के लोगों का ही फैक्ट्रीयों पर कब्ज़ा रहता है।

चीन की सेना अपनी जनता को सदैव भ्रमित करती है

जिस तरह पाकिस्तान के फौजी अफ़सर विदेशों में संपत्ति अर्जित करते हैं उसी तरह चीन के फौजी अफसर भी। अपने-अपने देश में एक छत्र राज कायम रखने लिए एक ओर जहां पाकिस्तान आर्मी वहां की जनता को कश्मीर की घुट्टी पिलाती है उसी तरह चीन की आर्मी, कभी तिब्बत, कभी अक्साई चीन, कभी अरुणाचल प्रदेश तो कभी किसी समुद्री सीमा की घुट्टी पिलाता रहता है।

दोनों इसमें सफल भी हैं और चीन तो उनमें से कुछ घुट्टियों को सच भी कर चुका है। मसलन भारत की जमीन को कब्ज़ा करने की बात हो तो अवैध रूप से ही सही पर चीन कामयाब तो है।

चीन से लड़ने के लिए रणनीति में परिवर्तन लाये जाने की सख्त जरूरत है

चीन से निपटने के लिए भारत को अपनी पुरानी रणनीति बदल कर वही रवैया अपनाना चाहिए जो भारत अब पाकिस्तान के साथ अपना रहा है।

चीन से पाकिस्तान जैसा रवैया अपनाने में भारत को चौतरफा लाभ है, व्यापार रुकने से एक तरफ व्यापार घाटा कम होगा और घरेलू उद्योगों को फायदा होगा, वहीं दूसरी तरफ सीमा पर निपटने के लिए पुरानी ‘बगैर हथियार’ वाली संधि को तोड़ने से चीनी आर्मी की अच्छी मरम्मत भी की जा सकेगी।

चीन की आर्मी भी आतंकवादी के समकक्ष है

एक बात में चीन की दाद देनी होगी कि जहां पाकिस्तान अपनी आर्मी को लड़ने के बजाय आतंकवादियों को लड़ने भेजती है, वही चीन अपनी आर्मी भेजता है।

परन्तु यह बात भी गौर करने लायक है कि चीन की आर्मी भी पाकिस्तानी आतंकवादियों से कम नहीं क्योंकि चीन अपने यहां जबरदस्ती लोगों को आर्मी में भर्ती करवाता है और उसके बाद चीन के वो जवान हस्तमैथुन करते पाए जाते हैं।

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