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नेपोटिज्म, मूकदर्शक, अंधविश्वास।

भारत में फिल्म इंडस्ट्री की मौत हो चुकी है और उसकी कब्र पर नेपोटिज्म (भाई-भतीजावाद) के महल खड़े हो चुके है।

उन महलों में रहने वाले अभिनेताओं के बच्चे और उनके रिश्तेदार अब फिल्मों में अभिनय करते है।

ये बात सही है कि नेपोटिज्म कोई जुर्म नहीं है राजनीति में भी नेपोटिज्म है। हर कोई चाहता है कि उनके बच्चे का भविष्य सुरक्षित हो।

परंतु Starkids जब कोई फिल्म लॉन्च करते हैं तब सिनेमाघर भर जाते है कोई ये सोचकर खुद को नहीं रोकता की इस फिल्म में काम करने वाले starkids है, लोगों के फिल्म देखने के कारणों में ये वाला कारण बिल्कुल भी नहीं है। पर आज वही लोग नेपोटिज्म का बहिष्कार कर रहे हैं।

Starkids जब फिल्में लॉन्च करते है तब जो लोग सिनेमा हॉल फुल कर देते है आज वो नेपॉटिज्म पर चिल्ला रहे हैं मतलब आप क्या चाहते हैं की Starkids खुद से अपने आप को बेरोजगार कर लें।।।।

बहिष्कार करने का एक अलग कारण है। परंतु नेपोटिज्म के चलते फिल्मों की गुणवत्ता शून्य हो गई है। आजकल फिल्मों में अच्छी कहानी देखने को नहीं मिलती। ऐसी कहानी जो दिल और दिमाग पर असर करे, या समाज में कोई संदेश दे। ये कोई भी रोमांचक कहानी या वो प्रेम कहानी भी हो सकती है देशभक्ति भी, विज्ञान परिकल्पना भी हो सकती है।

परंतु हमें जो मिलता है वो वही घिसा पिटा तरीका, जिसमें लड़का, लड़की और विलेन होता है। साथ में 1 आईटम सॉन्ग होता है, आईटम सोंग में 1 लड़की होती है जिसे आइटम कहा जाता है।

फिल्मों के 2 प्रकार है अच्छे गानों वाली और बुरे गानों वाली। बुरे गानो की बात करते हैं।
ज्यादातर इन गानों के बोल में एक लड़की को वस्तु की तरह प्रस्तुत किया जाता है जैसे मैं तंदूरी मुर्गी हूं , तू चीज बड़ी है मस्त, लैला तेरी ले लेगी, पल्लू के नीचे छुपा के रखा है उठा दू तो हंगामा हो आदि। चोली के पीछे क्या है पुराना हो चुका है, और चोली का मतलब होता है वो वस्त्र जिससे स्तन ढकते है अंग्रेज़ी में कहें तो ब्रा।
वो लड़की कितना भी कठिन नृत्य करे पर उस गाने का प्रभाव लोगों पर नृत्य के कारण नहीं होता क्योंकि उसका निर्देशन इस तरह से किया ही नहीं जाता वो सिर्फ फिल्म में हर हाल में दर्शकों को लुभाने के लिए है।

अब कुछ फिल्मों में बहुत अच्छे गाने भी होते है या फिर यूं कहे कि उनमें सिर्फ गाने ही होते हैं जिनसे सम्मोहित होकर लोग फिल्में लॉन्च होते ही लोग टूट पड़ते है, लेकिन फिर पता चलता है कहानी तो है ही नहीं और फिर वो फ्लॉप हो जाती हैं। उदाहरण- शानदार, दिलवाले, हाफ गर्लफ्रेंड।
बहुत सी फिल्मों से गानों को निकाल दिया जाए अच्छे या बुरे तो कुछ बचेगा ही नहीं।

अब बात करते हैं एडल्ट सींस की, अधिकतर एडल्ट सींस में नए चेहरे दिखते है या फिर वो जिनका सरनेम फिल्म इंडस्ट्री में कम प्रसिद्ध हो।

उदाहरण: 1. हस्थमैथुन का दृश्य जो वीरे दी वेडिंग फिल्म में है।

2. मर्डर 2 फिल्म में कई दृश्य है, जैसे गाने में *दिल संभलजा जरा फिर मोहब्बत करने चला है तू*। समय है 2:27।
3. आशिक बनाया आपने(2005)।
4. मर्डर(2004)।
5. बैंड बाजा बारात(2010)।
6. अक्सर(2006)।
7. हेट स्टोरी 2(2014)।
8. बी ए पास(2012)।
9. जिस्म(2003)।

अब वेब सीरीज की बात करते हैं, भारत में बहुत ज्यादा वेब सीरीज बन रही है ये अच्छी बात है कि नए लोगो को इसमें काम मिलता है। सभी अच्छी हो ऐसा जरुरी नहीं कुछ में समाज का असली चेहरा और हो रही घटनाओं को सही तरीके से दिखाया जाता है किन्तु कुछ में सिर्फ नंगापन और कामुक्ता परोसी जाती है। इनमे कहानी के नाम पर कुछ भी नहीं होता है बस दर्शकों को लुभाने के लिए सिर्फ़ एडल्ट दृश्य भरे होते है।

जैसे पहले सीआईडी नाम का शो आता था फिर आने लगे क्राइम पेट्रोल और आजकल इस क्राइम पेट्रोल की तरह ढेर सारे शो आपको यु ट्यूब और दूसरे प्लेटफॉर्म पर मिल जाएंगे।
इन नए आने वाले shows के बाद क्राइम में कोई गिरावट नहीं आई है ना ही घरेलू हिंसा में कोई कमी आई हैं। ये एक तरीके का सॉफ्ट पोर्न है।

जैसे कि हाल ही में लोगो ने एकता कपूर के शो का विरोध किया था जिसमें एक महिला दूसरे आदमी के द्वारा अपने पति के सेना वाले कपड़े पहनने पर मजबूर की जाती है फिर एडल्ट दृश्य फिल्माया जाता है जबकि उसका पति सेना में अपनी ड्यूटी पर होता है। सीरीज का नाम है XXX 2 uncensored।
अब ये सींस हटा दिए गए हैं साथ में एकता कपूर ने माफी भी मांगी हैं।

वेब सीरीज पर सेंसर बोर्ड काम नहीं करता जहां फिल्म को सर्टिफिकेट दी जाती है जिन पर U/A (अ/व) या A या U लिखा होता है।
वेब सीरीज के कुछ मुख्य प्लेटफॉर्म है नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम, वूट, उल्लू, अल्ट बालाजी, mx प्लयेर इत्यादि।

फ़िल्म इंडस्ट्री एक व्यापार की तरह होता है जहां फिल्मों की कमाई बहुत मायने रखती हैं।
कमाई करने के दो तरीके है एक ये कि बहुत अच्छी फिल्म बनाओ जिसमें अच्छी कहानी हो ऐसी फिल्म बनाने में मेहनत लगती है जहां स्क्रिप्ट और निर्देशन में बहुत समय बिताया हो, मानलो 200 करोड़ में फिल्म बनी 400 करोड़ कमा गई तो 200 करोड़ फायदा हुआ। परन्तु इसमें मेहनत भी बहुत लगती है। फ्लॉप होने पर ज्यादा नुकसान होगा।

दूसरा तरीका ये है की एक साल में बहुत सारी फिल्में बनाओ जिसमें स्क्रिप्ट आपको पुरानी किसी भी फिल्म से मिलती जुलती मिल जाएंगी ज्यादातर में वही हीरो हीरोइन और विलेन या रीमेक, सीक्वल आदि।  साथ में आइटम सॉन्ग्स परोस दो और लोगो की कामोत्तेजना का जितना हो सके उतना दुरुपयोग करो।
वही जिसमें विलेन आता है हीरोइन को अगवा कर लेता है फिर हीरो उसे बचाता है।

मानलो 50 करोड़ में फिल्म बनी 100 करोड़ कमा गई और साल में 5 फिल्में बनाई तो 250 करोड़ का फायदा हुआ। और मेहनत भी कम करनी पड़ी। फ्लॉप होने पर भी मुनाफा ही है।

इसी कारण से साइंस फिक्शन फिल्में नहीं बनती क्योंकि उनका बजट बड़ा होता है उसके लिए ज्यादा मेहनत चाहिए जब वही पैसा आइटम सोंग जैसे डांस डालके कमाया जा सकता है तो क्यों इतनी मेहनत करे। इसलिए भारतीय फिल्मों में प्यार, मोहब्बत, लड़ाई और एडल्ट सींस जैसी चीजें ज्यादा होती हैं।
भोजपुरी गानों और हरयाणवी गानों में भी भद्दे बोलो कि कोई कमी नहीं है।

इन सब वजहों से आजकल फिल्मों की ज़िन्दगी एक दिन की होती है लोग हॉल से निकलकर भूल जाते हैं उन्होंने क्या देखा।
अंतरास्ट्रीय स्तर पर हमें अवॉर्ड्स भी कम ही मिलते है।
ये वो फिल्में हैं जो पिछले 12 साल में सबसे ज्यादा ऑस्कर अवॉर्ड्स जीती हैं।

2020 – “Parasite- साऊथ कोरिया।
2019 – “Green Book” -यूनाइटेड स्टेट्स।
2018 – “The Shape of Water”- यूनाइटेड स्टेट्स।
2017 – “Moonlight”– यूनाइटेड स्टेट्स।
2016 – “Spotlight”–  यूनाइटेड स्टेट्स।
2015 – “Birdman”–  यूनाइटेड स्टेट्स।
2014 – “12 Years a Slave”- यूनाइटेड स्टेट्स।
2013 – “Argo”– यूनाइटेड स्टेट्स।
2012 – “The Artist”– फ्रांस।
2011 – “The King’s Speech”– यूनाइटेड स्टेट्स।
2010 – “The Hurt Locker”– यूनाइटेड स्टेट्स।
2009- “Slumdog millionaire”- ब्रिटेन।

सब भारत से बाहर की है, स्लमडॉग मिलिनेयर के गाने “जय हो” को ऑस्कर मिला हुआ है ये भारतीय लेखक “गुलज़ार” ने लिखा और भारतीय संगीतकार “ए आर रहमान” ने संगीत दिया है। हालांकि ये फिल्म ब्रिटेन में बनी थी।

भारतीय फिल्मों ने भारत के दर्शकों को मूकदर्शक बना दिया है। लोग वही देखते हैं जो उन्हें दिखाया जाता है।

उदाहरण1. जैसे लस्ट स्टोरीज में कियारा आडवाणी जब हस्थमैथुन करती है तब ट्रॉल करने वालो की बाढ़ आ जाती है जब वो ही कबीर सिंह में प्रीति बनती है तब लोगों को उनसे प्यार हो जाता है।
2. जब पिंक फिल्म में “नों means नो” डायलॉग आया तब सबको पसंद आया जो कि आना भी चाहिए परंतु फिर कबीर सिंह में जब प्रीति को थप्पड़ मारा तब वो भी सबको पसंद आया, कबीर सिंह में और भी ऐसे दृश्य है जैसे ग्लास टूटने पर नौकरानी के पीछे भागना ये सब भी पसंद आए।
3. ये फिल्म से अलग हकीकत है जब धारा 377 असविधानिक हुई तब लोगों ने स्वागत किया, परंतु कैरी मिनाती जब “छक्का” बोलता है तब हमें बुरा नहीं लगता, या फिर “हगते हो तो इन्द्रधनुष निकलता है तब भी”।।

एक अंधविश्वास भी देश में इतना ज्यादा है तो साइंस से जुड़ी फिल्मों में भी भगवान को डाला जाता है। उदाहरण के तौर पर मिशन मंगल फिल्म में ये लग रहा था कि वो मिशन सिर्फ भगवान की वजह से संभव हुआ वरना वैज्ञानिक तो हार मान चुके थे।
पूरी तलने की टेक्नोलॉजी से मंगलयान पहुंचा।
एक बार संपर्क टूटने के बाद स्विच बंद करके चालू किया और वो जुड़ गया,  और बिल्कुल आसानी से बोल दिया गया “There is a power beyond science”।

क्या इन सबसे वैज्ञानिकों की मेहनत का अपमान नहीं होता।
एक जीनियस नाम की मूवी है जिसमें IIT के स्टूडेंट्स होते है और फिल्म में सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, हैकिंग, साइबर अटैकिंग के दृश्य है जब भी कुछ गड़बड़ होती है तो राधे राधे बोलके सब ठीक कर लिया जाता है और विज्ञान का अपमान किया जाता है।

रोज ऐसी खबरें आती हैं जब कोरोना माई की पूजा की जाती है। छत्तीसगढ़ के भिलाई में और केरल में कारोना की पूजा हुई।
https://www.india.com/hindi-news/others/man-conducts-daily-pujas-for-corona-devi-in-kerala-amid-the-growing-cases-of-coronavirus-in-country-4057653/

https://www.bhaskar.com/local/chhattisgarh/news/corona-worship-in-baikunthadham-of-bhilai-corona-worship-in-chhattisgarh-127377414.html

एक बड़ी माता हुआ करती थी जिसे small pox कहते है परन्तु विज्ञान ने इस माता की हत्या करदी फिर भी लोग इनकी पूजा करते है। हत्या का मतलब है ये बीमारी eradicate हो चुकी है।  इनके अलावा छोटी माता, शीतला माता और भी बहुत सारी माताएं है आज भी जिनकी पूजा की जाती है।

भारत के अधिकतर लोगों ने भारतीय फिल्मों का ये चेहरा स्वीकार कर लिया है क्योंकि ज्यादातर लोग भारत में नौकरी करने वाले लोग है जो काम से थक जाते है इसलिए जब वो थियेटर जाते है तो ये सब चीजे थकान उतारने में काफी सहायक होती है।
कुछ कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के लड़कियां है जिन्हें भी यही सब पसंद है।
कुछ प्रेमी जोड़े होते है जिन्हें यही नहीं पता होता कोनसी फिल्म चल रही है उन्हें सस्ते में एक अंधेरी जगह चाहिए होती है जो उन्हें आसानी से मिल जाती है।

अब इतनी जनसंख्या भी फिल्म देखने चले जाए तो कैसी भी फिल्म हो इतने में ही उनका मुनाफा हो जाता है।

भारत में धर्म और अंधविश्वास ने विज्ञान को पछाड़ दिया है। इसको समझने के लिए आप एक टिक टोक नाम की एप्प के 1000 वीडियो अपने देश के और 1000 वीडियो दूसरे देश के randomly उठाओ और उनका निरीक्षण करो।

आप पाएंगे की दूसरे देश के लोग ज्यादातर

1 कोई टैलेंट प्रदर्शन कर रहे है।

2 कोई वैज्ञानिक एक्सपेरिमेंट कर रहे है।

3 कोई खरबूजे काटने की नई विधि बता रहे है।

4 कोई लाइफ हेक्स बता रहे है।

5 कोई मैथ या सामान्य ज्ञान की ट्रिक्स बता रहे है।

6 कपड़े इस्त्री करना, खाना बनाना, फसल काटने के अलग तरीके दिखा रहे है।

7 कुछ ही मिनटों में अपने आप को ऑफिस के लिए कैसे तैयार करे।

8 कुछ लोग नाच रहे है या गाना गा रहे है।

भारत:

1 लड़कियां टीशर्ट उठा के नाच रही है।

2 लड़के उनकी टीशर्ट में घुसके नाच रहे है।

3 ऐसी वीडियो भी बन रही है जिसमें लड़की अपने उतरे हुए कपड़े को पहनती दिखती है और लड़के अपनी कमीज़ के बटन बंद कर रहे होते हैं ऐसे एक नहीं हजारों वीडियो ट्रेंडिंग में बनते है जो रेप कल्चर को बढ़ावा देते हैं।

4 लड़का लड़की को प्रपोज करता है वो मना कर देती है वो गाड़ी निकालता है वो हां कर देती है।

5 लोगों ने आंखे लाल कर ली है और रो रहे है हर किसी को प्यार में धोखा मिला है, और फिर हाथ काट कर रहे है इससे तो यही सीखेंगे की प्यार के धोखा मिलते ही हाथ काट लो और ऐसी घटना रोज होती है।

6 चुटकले सुनाते है किसी में डबल मीनिंग है, किसी में बस लड़कियों की बेजती है कि वो पैसे की लोभी है इन्हे सेक्सिस्ट जोक्स कहते है।

7 कुछ लोग जानवरों को परेशान कर रहे है पूंछ में आग लगा रहे हैं उनके उपर रंग फेंक रहे है फिर हंस रहे है।

8 कुछ लोग शराब पीकर इंगलिश बोल रहे है।

9 घरेलू हिंसा को भी मजाक की तरह पेश किया जा रहा है।

10 Prank कर रहे है उसमें भी दिमाग नहीं बस लड़कियों कि चोटी काट रहे है। पानी की बाल्टी उड़ेल रहे है।

11 पुरुष घर के काम करके मजाक उड़ा रहे हैं कि लॉकडॉउन है इसलिए करना पड़ रहा है तो क्या घर के काम का ठेका सिर्फ महिलाओं ने उठा रखा है। और अगर इतना ही काम कर रहे हैं तो घरेलू हिंसा की शिकायते लोकडाउन में बढ़ क्यों गई?

आप सोचते है इनसे क्या फर्क पड़ता है ये लोगों के सोचने के तरीके को दर्शा रहा है!!!

हमें तर्कों से कोई मतलब नहीं जो तर्क देता है उल्टा उसी का मजाक बना दिया जाता है।

आप लोग क्या हर छोटी बात को observe करते हो, चलो अभी पता करते है।

1.एक विज्ञापन आता है टीवी पर क्लिनिक प्लस का, उसमे एक लड़की आती है और मम्मी से कहती है बस में boys ने तंग किया और मम्मी प्यार से समझाती है कि तुम स्ट्रॉन्ग हो और तुम्हारी चोटी भी strong है और नहीं हो तो ये लो क्लिनिक प्लस। ये कोनसा solution है वो boys तो अब भी तंग करेंगे। मतलब उनकी शिकायत नहीं करनी बस शैंपू लगाना है और सब ठीक हो जाएगा।
वैसे रोजाना 80-100 के बीच में रेप होते है अपने देश में।

2. जब भी कोई कोंडम का विज्ञापन आता है तब उसमे दिखता है दिन से लेकर रात तक, सुबह से लेकर शाम तक, ऑफिस जाने से पहले, ऑफिस से आते ही सेक्स करो परंतु कोंडोम का मुख्य उपयोग है गर्भधारण से बचाना, यौन संबंध से फैलने वाली बीमारियों से बचाना।

3. रिन साबुन का विज्ञापन आता है जिसमें एक इंसान कहता है क्या मुझे अंग्रेजी बोलने वाले स्मार्ट मैनेजर मिलेंगे तब एक लड़की आती है और बोलती है एक्सक्यूज me sir “Don’t judge a book by it’s cover” मतलब ये तो साबित है कि स्मार्ट मतलब अंग्रेजी बोलने वाले, हिन्दी बोलने वाले स्मार्ट नहीं हो सकते।

4. माहवारी के दौरान खून को सोखने के लिए जो पैड इस्तेमाल किए जाते है उनके विज्ञापन से कभी साबित नहीं होता कि वो किस काम के लिए है।

5.क्लिनिक प्लस का एक और विज्ञापन है जिसमें वो कहती है सब मुझे छोटी छोटी बुलाते है फिर मां कहती है तुम कहां छोटी हो तुम तो इतनी लंबी हो तुम्हारे बाल भी तो स्ट्रॉन्ग है। ऐसा करने से ना तो वो लम्बी हुई और ना ही उसे ये बात समझ आती है कि छोटी होना कोई गुनाह नहीं है बहुत से सफल इंसान है जो छोटे है। साथ ही उसे योग करने और संतुलित भोजन करने के लिए प्रेरित भी कर सकती है।
डिप्रेशन एक रोग है जिसके बहुत से कारण हो सकते है उसे इस विज्ञापन से जोड़कर भी देखा जा सकता है। एक लड़की का आत्मसम्मान लंबी चोटी से तो कभी नहीं बढ़ सकता।

लॉकडाउन में टीवी पर महाभारत, रामायण में थोड़ा समय निकालकर ये सब चीजे भी दिखाई जा सकती थी जैसे।

1 Genius series

2 TVF Pitchers

3 Through the wormhole with Morgan freeman

4 Cosmos A spacetime oddisy

5 How the universe works

6 संविधान के ऊपर पूरी डॉक्यूमेंट्री बनी हुई है।

7 कोन बनेगा करोड़पति।

8 Start up के ऊपर बहुत सारी वेब सीरिज, मूवीज है ताकि लोगों को पता चले की फेसबुक पर हिंदू-मुस्लिम से जुड़ी भड़काऊ पोस्ट शेयर करना या इंस्टाग्राम पर ब्वॉयज लॉकर रूम बनाकर अनालगृत बातें करना भी साइबर क्राइम है। इन सब पर टाइम पास करने के पैसे मार्क जकरबर्ग की जेब में जाते है, तो हो सकता है हम भी आत्मनिर्भर बनने के बारे में सोचे जैसा हमारे प्रधानमंत्री जी चाहते है।
सॉफ्टवेयर की दुनिया में हमारी हिस्सेदारी विश्व में बहुत कम है।

9. सामान्य ज्ञान से जुड़े बहुत सारे शोज है।

10. Spell bee कॉम्पिटिशन।

11. Worst case scenario ये इसलिए जरुरी है कि कहीं आग लग जाए तो लोग वीडियो बनाने की बजाय कुछ और भी कर सकते है, गुजरात के सूरत के कोचिंग सेंटर की घटना तो याद होगी।

12. सबसे जरूरी है हैल्थ एजुकेशन जो कि टीवी पर आसानी से दिखाए जा सकते हैं। चाहे वो सेक्स एजुकेशन हो, मेंटल हेल्थ, या साधारण जानकारी जैसे सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन, pap smear, CPR, ORS बनाने की विधि। क्या आप यकीन करेंगे कि आज भी साधारण से डायरिया से हजारों बच्चे मर जाते हैं जो सिर्फ साधारण से ORS से बचाए भी जा सकते हैं।
जैसे बवासीर का इलाज संभव है पर लोग इस बीमारी को छुपाते रहते हैं और गलत इलाज लेते रहते है, एक बार किसी नीम हकीम ने चाकू से नसे काट दी और मरीज की मौत हो गई।
जैसे मेंस्ट्रुअल हाइजीन ना रखने से पेल्विक इन्फ्लेमेटरी डिजीज हो सकता है और उसे बांझपन हो सकता है और इन सबसे डिप्रेशन हो सकता है।

अभी हाल ही में अभिनेता शुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कि इसलिए हम मेंटल हेल्थ पर बात कर रहे है, परंतु कुछ दिन दिन में हम सब भूल जाएंगे, फिर ऐसी घटना होगी हम फिर से बात करने लगेंगे।

मुझे लगता है ये सब करके समाज में ज्यादा सुधार हो सकता है ना कि केवल ट्विटर पर ट्रेंड कराने से।
क्या अभी आपको एहसास हो रहा कि हम मूकदर्शक बन रहे है या नहीं, अगर नहीं हो रहा तब खुशी की बात है।

ये बहुत ही कम लिखा है मुझे उम्मीद है आप समझ गए होंगे।
Note: ये सब बाते सभी पर लागू नहीं है, अपवाद हर जगह है। कुछ चीजें गलत नहीं है वो बस आपको समझाने के लिए है।

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