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बॉयकॉट या बाय बाय चाईना एक छलावा

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भारत-चीन सीमा पर करीब 45 साल बाद हमारे किसी सैनिक की जान गई है। साल 1975 में एलएसी पर चीन ने घात लगाकर हमला किया था, जिसमें हमारे चार सैनिक शहीद हुए थे। तब से दोनों देशों में झड़प तो कई बार हुई, लेकिन जान किसी की कभी नहीं गई। क्योंकि भारत और चीन ने आपस में तय किया था कि मतभेद कितने ही हों, लेकिन सीमा पर इसका असर नहीं होना चाहिए। सहमति बनी कि सीमा पर तैनात सैनिकों के पास हथियार नहीं होंगे अगर रैंक के अनुसार जिन अधिकारियों के पास बंदूक होंगी भी तो उनका मुंह जमीन की तरफ होगा और इसी वजह से आए दिन सैनिक बिना हथियारों के ही अपने इलाके से चीनी सैनिकों को खदेड़ते हैं। इसके लिए जवानों को खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि किसी भी सूरत में हथियार का इस्तेमाल न हो।

बीते एक महीने से लद्दाख में कई मौकों पर भारत और चीन की सीमाएं आमने-सामने हुईं। दोनों के बीच हिंसक झड़प हुईं और दोनों ओर से सैनिक घायल भी हुए। मगर इस दौरान एक भी गोली नहीं चली। 

1993 में जब नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने मेनटेनेंस ऑफ पीस ऐंड ट्रैंक्विलिटी समझौते पर दस्तख़त किया, उसके बाद 1996 में कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स पर समझौता हुआ। इसके बाद 2003, 2005 में भी समझौते हुए। 2013 में बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट हुआ जो सबसे ताज़ा समझौता है। इन्ही समझौतों की वजह से LAC पर कभी भी भारत चीन के सैनिक हथियारों का प्रयोग नही करते है।

1975 में आख़िरी बार भारत और चीन के सैनिकों के बीच गोली चली थी। इसमें कोई नुकसान नहीं हुआ था मगर इसके बाद से अब तक ऐसी घटना नहीं दोहराई गई थी लेकिन 45 साल यानी 1975 के बाद भारत-चीन सीमा पर ऐसे हालात बने हैं, जब भारत के हमारे 20 सैनिकों गलवान वैली, लद्दाख में चीनी मुठभेड़ में जवानों की शहादत हुई है।

भारत सरकार की ओर आफिसियल स्टेटमेंट में कहा गया है कि सीमा पर गोली नही चली है तो अब सवाल यह है कि चीनी सेना ने हमारे सैनिकों को कैसे मारा? फिर कैसे शहीद हुये हमारे शूरवीर? क्या शूरवीरों की निर्मम हत्या हुई है?

इसी दौरान नेपाल ने भी भारत के ऊपर अपनी जमीन कब्जा करने का आरोप लगा रहा है और भारत के हिस्से को अपना बताते हुये अपने संसद में नया नक्सा पास कर देता है और अपने कड़े तेवर दिखाते हुये सीमा पर गोलीबारी भी शुरू कर देता है जिसमे हमारे 5 नागरिकों को गोली लग जाती है  और उसमे से एक नागरिक की मौत भी हो गयी थी और पाकिस्तान ने हमारे दो राजनयिकों को गिरफ्तार कर लिया था। अब सवाल है देश के विदेशमंत्री और तमाम डिप्लोमेट क्या कर रहे है हमारी विदेशनीति और कुटनीति इतने बड़े स्तर पर फेल क्यों हो रही है?

भारत में पिछले 6 सालों से विदेशनीति और कुटनीति का अबतक का सबसे बुरा दौर चल रहा है क्योंकि पिछले 6 सालों में चीन ने हमें चारों तरफ से आर्थिक मुद्दे से लेकर अपनी विदेशनीति और कुटनीति से घेरता रहा और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे।

जब चीन बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान में इन्वेस्टमेंट करके आर्थिक रूप से अपनी भागीदारी बढ़ा कर अपनी विदेशनीति और कुटनीति को स्थापित कर रहा था तब हमारे विदेशमंत्री और तमाम डिप्लोमेट क्या कर रहे थे और हमारी विदेशनीति और कुटनीति किस दिशा में कम कर रही थी?

अब सरकार को भारत-चीन सीमा पर वास्तविक स्थिति क्या है और भारत-चीन के साथ अन्य समझौते और रिश्तों पर बात क्या हो रही है सरकार को भारत की जनता को पूरी बात बताना चाहिये।

कबतक अपने चेहरे और सरकार को बचाने के लिए देश से झूठ बोलकर देश को गुमराह करोंगे और देश के वीर सपूत शहीद करोंगे?

कहाँ गये वो न्यूज़ चैनल्स, ऐंकर और बीजेपी के नेता जो पिछले हफ्ते चीन से सरेंडर करवा चुके थे और कह रहे थे चीन डर के वापस भाग गया है? सत्ताधारी नेताओं का बड़बोलेपन और मीडिया TRP के चक्कर में देश की जनता वास्तविक सच्चाई से कोषों दूर रहती है।

अगर हम और आप अपने वीर सैनिकों की चीनी सैनिकों के हाथों हुई वीरगति का मुद्दा उठाएंगे तो अंधभक्त आपको और हमकों चीनपरस्त बताएंगे और उपदेश देंगे कि चीन का सामना तो भारत की सेना कर लेगी, लेकिन आप चीनी सामान खरीदना बंद कर दो। इन अंधभक्तों को भारत सरकार द्वारा चीनी कंपनियों को दिए जा रहे लगातार ठेके और चीन के साथ व्यापार बृद्धि की कोशिशें नही दिख रहीं।

सीमा पर चीन हमारे सैनिकों को मार रहा है और हम दिल्ली में चीनी कम्पनी को अरबों का ठेका दे रहे हैं और लगातार चीनी कम्पनियों की भारत में हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है।

चीनी कंपनियों ने भारत मे जड़ 2014 के बाद से स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया के द्वारा जमा रही थी तब हम सबको तथाकथित देशभक्तों और सरकार के द्वारा स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और आत्मनिर्भरता के सपने दिखाकर चीनी झालर, पटाखे और खिलौनों का बॉयकॉट बॉयकॉट करवा रहे थे तब पर्दे के पीछे स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और आत्मनिर्भर भारत को मेड इन चाइना बनाने का अभि‍यान सरकार के द्वारा चल रहा था और उसी समय से चीन की सभी बड़ी कंपनियों ने हमारे पूरे भविष्य (डिजिटल दुनिया) मे पैर जमा रही थी और अब तो भारतीय भविष्य की योजनाओं में चीन गहराई तक बैठ गया है।

हकीकत ये है कि हम चीन की समान का बहिष्कार भी कर दे तो उसको अपने पूरे विदेशी व्यापार में केवल 3 फीसदी घाटा होगा। लेकिन हमारे यहाँ सामानों का अभाव और अफरातफरी मच जायेगी इसलिए पहले हमे चीन से आने वाली सामानों को अपने यहाँ तैयार करना पड़ेगा और तब जाकर हम चीन से व्यापारिक लड़ाई लड़ सकते है।

डिजिटल इंडिया के शुभंकर कंपनियों में चीन की 4 सबसे बड़ी कंपनियों का भर भर के इन्वेस्टमेंट हुआ है या कहे कि डिजिटल इंडिया पर अप्रत्यक्ष रूप से चीन के साये में चल रहा है या कहे कि बीते पांच साल में डिजिटल इंडिया के प्रत्येक शुभंकर के कीर्ति की कथा चीन की पूंजी से बनी हुयी है।

चीन ने भारत मे प्रत्यक्ष रूप से बहुत कम इन्वेस्टमेंट किया है लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से हाँगकाँग और सिंगापुर के जरिये भारत के भविष्य यानी डिजिटल मार्केट में बहुत बड़ा इन्वेस्टमेंट कर चुका है जो दिखायी तो नही देगा लेकिन वो सब चीन का होगा जैसे हंगामा, पेटीयम, ड्रीम इलेवन, ओला, गाना, स्विगी, सिटी मॉल, ओयो इत्यादि।

भारत मे स्टार्टअप को फण्ड देने के लिये बहुत कम कंपनियां है क्योंकि स्टार्टअप में शुरूआत में घाटा होता है इसलिए भारतीय कंपनियोंने रिस्क नही लिया और इसका फायदा चीन ने उठा लिया इसलिये स्टार्टअप इंडिया में इतनी चीनी कंपनियों (अलीबाबा, टेनसेंट, बाइटडांस) ने इन्वेस्टमेंट कर दिया है कि वो “स्टार्टअप इंडिया इन्वेस्टमेंट फॉर चीन” बन चुका है।

बीते कुछ वर्षों में भारत की मैन्युफैक्चरिंग चीन पर निर्भर हो गई और मेक इन इंडिया’, में केवल चीन में बनी समान का असेम्बल करके “मेक इन चाइना असेंबल इन इंडिया” बन के रह गया है। ठीक उसी प्रकार सरकार के रवैये की वजह से ‘आत्मनिर्भर भारत’ भी “आत्मनिर्भर भारत मेड इन चाइना” बन के रह जायेगा।

आज भी भारत मे मोबाइल क्षेत्र में चीन की शियोमी सबसे बड़ी कंपनी है, टेलीकॉम क्षेत्र में चीन की हुवाई सबसे बड़ी दूरसंचार उपकरण सप्लायर कंपनी है, ऑनलाइन क्षेत्र में चीन की अल्लीबाबा टेनसेंट, शनवेई कैपिटल (शियोमी), बाइटडांस और चीन की अन्य कंपनियों के जड़ जमा चुकी है और ये भारतीय बाजार में सबसे बड़े निवेशक के रूप में है इनको टक्कर देने के लिये अभी तक एक भी भारतीय कंपनी तैयार नही है।

गूगल प्ले स्टोर और आइओएस के टॉप 50% एप्लिकेशन चीन के है या चीन का पैसा लगा हुआ है। एप्लिकेशन या कंपनी जिसमे चीन की कम्पनी का पैसा लगा हुआ है या हिस्सेदारी है या चीन की कंपनी है पेटीएम, बिग बास्केट, डेलीहंट, टिकटाक, विडूली, रैपिडो, जोमैटो, स्नैपडील,बायजूज, ओला, ड्रीम 11, गाना, माइगेट, स्विगी,सिटी मॉल, हंगामा डिजिटल, ओय रिक्शा, रैपिडो, शेयरचैट, जेस्टमनी, यूसी ब्राउजर,मैक्स प्लेयर, वीगो, शेयरइट, वोल्वो और एमजी हेक्टर इत्यादि।

हमारे जिंदगी के हर कदम पर चीन अप्रत्यक्ष रूप से पिछले 6 वर्षों में हावी हो चुका है और भविष्य में दशकों रहेगा।

हमें चीन को सबक सिखाने के लिये आर्थिक, विदेशनीति और सैन्यशक्ति को हमेशा तैयार रखना होगा क्योंकि चीन की पूंजी निकलते ही स्टार्ट अप क्रांति बैठ जाएगी, आत्मनिर्भर भविष्य के लिए स्टार्ट अप पूंजी के स्रोत तैयार करने होंगे जो नुक्सान के बावजूद आती रहे और ऐसी उत्पादन क्षमताएं बनानी होंगी जो चीन से सस्ता उत्पादन कर सकें।

बॉयकॉट चाईना को हकीकत की जमीन पर खड़ा करना होगा तो हमें अपने आप में एक शक्ति बनना होगा, क्योंकि अभी भारत के 30 यूनीकॉर्न स्टार्टअप में 18 में चीन का निवेश है और चीन की दो दर्जन तकनीकी कंपनियां भारत के 92 बड़े स्टार्ट अप में पूंजी डाल चुकी हैं बीते एक साल में ही भारतीय स्टार्ट अप में चीन ने 1.4 अरब डॉलर इन्वेस्टमेंट किया हैं और पिचले पांच वर्षों में भारतीय स्टार्ट अप कंपनियों में करीब 4 अरब डॉलर का चीनी निवेश हुआ है। सरकार तब क्या कर रही थी?

जब चीन बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान में इन्वेस्टमेंट करके आर्थिक रूप से अपनी भागीदारी बढ़ा रहा था और अपनी मजबूती बना रहा था तब भारत सरकार क्या कर रही थी?

हमने पिछले 6 सालों में चीन को हर तरह से छुट दे रखी थी आज उसी का नतीजा है कि चीन पहले बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान के साथ साथ भारत में इन्वेस्टमेंट करके आर्थिक रूप से अपनी भागीदारी बढ़ा कर अपने आप को स्थापित करता है फिर अपनी विदेशनीति और कुटनीति को स्थापित करता और फिर एक साथ सभी के भारत को घेरने की कोशिश करता है।

हमारी सरकार ने पिछले कुछ वर्षो में चीन को सबक सिखाने के लिए कोई कदम नही उठाया अन्यथा हमारी सरकार चाहती तो अमेरीका-चीन ट्रेड वॉर का लाभ उठा कर अपने आप को मनुफैचरिंग हब बना सकती थी लेकिन हमारी सरकार ने कभी ध्यान नही दिया और ना ही चीन की भारत में बढती भागीदारी पर ध्यान दिया और पिछले 6 वर्षो में चीन हमपर आर्थिक रूप से इस कदर हावी हुआ है कि उसने देश के डिजिटल भविष्य के साथ स्टार्टअप इण्डिया, मेक इन इण्डिया को भी घेर लिया है कि हम दशकों ना चाहते हुए भी चीन के साथ आर्थिक रूप से जुड़े रहेंगे।

बॉयकॉट चाईना या बाय बाय चाईना एक छलावा है क्योंकि बॉयकॉट चाईना या बाय बाय चाईना कहने से देश की हकीकत नही बदलेगी, हमारे देश के अर्थजगत में चाईना अपना पैर जमा चूका है इसलिये देश को बॉयकॉट चाईना या बाय बाय चाईना कहने से पहले हमे देश की हकीकत जो जानना पड़ेगा और देश को बताना पड़ेगा और फिर इसके बाद सरकार को एक मजबूत इरादे और नियत के साथ बॉयकॉट चाईना या बाय बाय चाईना करने के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी और हमे मनुफैचारिंग का हब बनना पड़ेगा, तब हम चीन का कुछ इलाज कर सकते है अन्यथा हर बार की तरह इसबार भी बॉयकॉट चाईना या बाय बाय चाईना एक छलावा के रूप में दिखेगा और हम केवल बॉयकॉट चाईना या बाय बाय चाईना के अभियान के रूप में ऐसे ही केवल प्रतीकात्मक सन्देश अपने देश को दे पायेंगे रहेगा और इससे ज्यादा कुछ नही और हम चीन पर निर्भर ही रहेंगे।

बॉयकॉट चाईना या बाय बाय चाईना की लड़ाई देशवासियों से पहले और आखिरी तक सरकार को लड़नी पड़ेगी तभी कुछ बदलेगा नही तो कुछ नही बदलेगा, क्योंकि देशवासियों तो हर साल बॉयकॉट चाईना या बाय बाय चाइना करके विरोध जताते रहते है लेकिन कुछ बदलाव नही होता है इसलिए सरकार को आगे आकर ये कदम उठाना पड़ेगा अगर चीन को सबक सिखाना है तो और सरकार को देशवासियों से आत्मनिर्भर बनने से कहने से पहले अपने आप को आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा और डिजिटल इण्डिया के साथ स्टार्टअप इण्डिया, मेक इन इण्डिया को चीन के साये से बहार करना पड़ेगा.

 

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