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भयंकर बॉडी के साथ,सिगरेट पीता अभिनेता सलमान खान भी,मुझे मानसिक रूप से बीमार नजर आता है।

#SushantSinghRajput

#mentalPatient

भयंकर बॉडी के साथ, सिगरेट पीता अभिनेता सलमान खान भी, मुझे मानसिक रूप से बीमार नजर आता है।

पिछले कुछ सैकड़ों वर्षों की तुलना में, आज के भारतीय लोगों का मेंटल-हैल्थ लेवल
बहुत नीचे चला गया है।

और आज उसी कमजोर मेंटल-हेल्थ के चलते, मशहूर अभिनेता @shushantसिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली।

निजी रूप से
किसी भी व्यक्ति की आत्महत्या के पीछे की वजहों, पर तो मुझे सहानभूति होती है, पर आत्महत्या करने वाले व्यक्ति के प्रति मुझे कोई सहानभूति नहीं होती।

इसलिए मुझे, सुशांत सिंह राजपूत की, मौत पर भी कोई सहानभूति नहीं है।

मुझे भूख-कर्ज से आत्महत्या करते किसानों की, परिस्थिति के प्रति सहानभूति होती है, पर, उस आत्महत्या करने वाले किसान के प्रति कोई सहानभूति नहीं रहती है।

पर हां मुझे मंदसौर के उस किसान के प्रति इज्जत और सहानभूति होती है, जो भयंकर कर्ज में डूबा हुआ होकर भी।
अपने कर्ज को चुकाने की कोशिश में, अपने खेत की लगभग तीन फीट मिट्टी बेच देता है।
वो डर कर आत्महत्या नहीं करता है।
बल्कि बो दुनिया के सभी किसानों को, आत्मविश्वास का नया पाठ पढ़ाता है।

आप नीचे दी लिंक पर thelallantop.com नामक वेबसाइट द्वारा की गए ख़बर से, उस किसान के बारे में जान सकते है।?
https://t.co/lNe3gR7Xp1

आत्म-हत्या करने वाले किसी व्यक्ति की मौत को, इस तरह इज्जत और सहानभूति के साथ सम्मान देना

उन लोगों को भविष्य में आत्म-हत्या करने लिए, मोटिवेट करना है
जो वर्तमान में किसी, विपरीत परिस्थिति, से जूझ रहे है।

इसलिए, कभी भी किसी भी आत्महत्या किए हुए व्यक्ति की, मौत को इतनी इज्जत और सम्मान के साथ मनाने से अच्छा है,कि उसे उसके इस असामान्य कृत्य के, लिए जमकर
कोसा जाए।

जिससे आज आत्महत्या के लिए, प्लान कर रहे कायर और असामान्य लोगों को
धक्का लगे।

आत्महत्या एक ऐसा, अमानवीय कृत्य है, जिसे किसी भी, कितने भी बड़े, नुकसान के बदले में, जस्टिफाई नहीं किया जा सकता।

किसी का युद्ध के मैदान को छोड़कर, भाग जाना, ज्यादा बड़ी कायरता नहीं होता है।

वो अपनी जान को, बचाने के लिए ऐसा करता है।
जो कि एक मानवीय स्वभाव है।

जबकि किसी परिस्थिति, से घबराकर आत्महत्या कर लेना
बड़ी कायरता के साथ, गहरी मानसिक अस्वस्थता है।
क्योंकि इसमें व्यक्ति, जान बचाने के लिए, नहीं जान गवाने के लिए ऐसा करता है।

जो कि किसी भी रूप से, सामान्य मानवीय स्वभाव नहीं है।

भारत में ये मानसिक-अस्वस्थता, लगातार नजरअंदाज किए जाने के कारण,अपनी जड़े गहरी करती जा रही है।

किसी व्यक्ति का शारीरिक स्वस्थ (physically-healthy) और शारीरिक मजबूत (physically-strong) होना, किसी रोग या बीमारी से बचा होना, उसका पल्स, ब्लड-प्रेशर , और प्लेटलेट्स नॉर्मल होना ही, पूर्ण स्वस्थ (complete-healthy)

पूर्ण स्वस्थ होना नहीं है।

मैंने नर्सिंग के दौरान पढ़ा है कि।

किसी व्यक्ति का, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ होना , पूर्ण स्वस्थ होना होता है।
न कि किसी बीमारी या रोग से बचा होना।

(Health is a complete state of physical, mental, social, spiritual well being and not merely the absence of any disease or deformities.)

इसी डेफिनेशन के आधार पर,मुझे इस समाज में, बहुत सारे शो-कॉल्ड नॉर्मल कृत्य भी, मानसिक अस्वस्थता से मोटिवेटेड दिखाई पड़ते है।

मुझे, भयंकर बॉडी के साथ, सिगरेट पीता अभिनेता सलमान खान भी
मानसिक रूप से अस्वस्थ नजर आता है।

मुझे, शो-कॉल्ड 56 इंची सीने के साथ,CAA के द्वारा अपनी कम्युनल सोच को एक्सप्रेस करने वाले, प्रधानमंत्री मानसिक रूप से अस्वस्थ नजर आते है।

मुझे, किसी आग के सहारे बैठकर , अपने शरीर को नुकसान पहुंचाकर, तपस्या करने वाला साधु मानसिक रूप से अस्वस्थ नजर आता है।

अपने शरीर को कष्ट देकर, हाथ पर टैटू करवाने वाले लोग, मुझ मानसिक रूप से अस्वस्थ नजर आते हैं।

भयंकर गरीबी के कारण, अपने घर में अंधेरा रख, मंदिर में दीपक जलाने वाले लोग, मुझे मानसिक रूप से अस्वस्थ नजर आते हैं।

मुझे रोजे और सावन के नाम पर, लगातार 30 दिन, हर रोज बारह घंटे, अपने आपको भूखा रख, निर्बल शरीर को भी,जरूरी पोषक तत्वों से, दूर रखने वाला आदमी भी,मुझे मानसिक और आध्यात्मिक रूप से, अस्वस्थ नजर आता है।

आज कोचिंग संस्थानों के नाम, पर बच्चो को मानसिक तनाव में डाला जा रहा है।
उन कोचिंग संस्थानों में, सिर्फ जिस विषय से संबधित बच्चे पढ़ाई कर रहे है,उसी विषय या प्रोजेक्ट को, जिंदगी एकमात्र आधार बताया जाता है।

उन कोचिंग संस्थानों में, अध्यनरत विषय में, फेल होने को, जिंदगी में फेल होना बताकर, मानसिक तनाव में डाला जा रहा है।

किसी विशेष विषय पर फोकस रखकर, बच्चों को नैरो-माइंड व पेशंस-लैस बनाया जा रहा है।

जिसके चलत आज, काफी बच्चे,99.99% मार्क्स लाकर भी,इसलिए आत्महत्या, कर लेते है, क्योंकि उन्होंने, तैयारी 100% के लिए की थी।
इतना असंतुष्ट (unsatisfactory) बनाया जा रहा है।
ये कैसा एजुकेशन सिस्टम है?

जरूरी बात ये है कि, भारत में मेंटल हैल्थ का ग्राफ बहुत नीचे जा रहा है।

इस को मैनस्ट्रीम में रखकर, इस पर बहुत काम होना है।

Shukriya

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