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महामारी के बीच मनरेगा का पुनरुत्थान

हम अभूतपूर्व समय में मन में भारी अनिश्चितता लिए जी रहे हैं। कोविड -19 के रूप में महामारी के प्रकोप से जीवन लगभग एक ठहराव पर आ गया है। इस महामारी ने स्वास्थ्य और आर्थिक आपातकाल को एक साथ ला खडा कर दिया है। पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी इस बीमारी ने हजारों लोगों की जान ले ली है और कई हजार संक्रमित हैं। हालाँकि, इस बीमारी के फैलने का सबसे बुरा प्रभाव निस्संदेह गरीबों, खासकर प्रवासी मजदूरों और ग्रामीण आबादी पर पड़ा है। देशव्यापी तालाबंदी को महामारी से बचने के लिए लागू किया गया जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियों पर अस्तिरथा पैदा हुई, जिस कारण  नौकरियों और विभिन्न छोटे और मध्यम स्तर के व्यवसाय बंद हो गए हैं जहां ये प्रवासी मजदूर कार्यरत थे; खपत में कमी, सापेक्ष गरीबी में वृद्धि, महिलाओं की स्वायत्तता और लिंग संबंधों पर प्रभाव की एक भयानक स्थिति सामने आई है।

डेक्कन हेराल्ड में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, लगभग 50 करोड़ फंसे हुए प्रवासी मजदूर विभिन्न राज्यों में लौट रहे हैं, हालाँकि, यह और भी अधिक हो सकता है। उनमें से कुछ निकट भविष्य में क्रोध, भयानक अनुभव और अस्पष्टता की स्थिति के कारण वापस जाना पसंद नहीं कर सकते हैं। अब प्रवासी मजदूरों की वापसी के साथ उन्हें नौकरी या आजीविका प्रदान करने की कठिन समस्या सरकारों के सामने उभर आई है। किसी भी सरकार के लिए इन बड़ी संख्या में मजदूरों को रोजगार प्रदान करना एक बड़ी चिंता है, खासकर जब देश पहले से ही उच्च बेरोजगारी दर और कम विकास का सामना कर रहा है।

इन सब के बीच, मनरेगा इस विकट समय में एक बचाव के रूप में सामने आया है। वर्ष 2005 में, भारत सरकार  ने सार्थक ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देने और 100 दिनों की आय प्रदान करने के लिए मनरेगा का शुभारंभ किया था । यह कार्यक्रम समाज के कमजोर और गरीब तबके पर केंद्रित है तथा सार्वजनिक टिकाऊ संपत्ति बनाना, मृदा संरक्षण, भूमि उत्पादकता में सुधार और बाढ़ प्रबंधन इसका मुख्य उद्देश्य है ।

दुनिया के यह सबसे बड़े सार्वजनिक कार्य कार्यक्रम की अक्सर दोषपूर्ण कार्यान्वयन और अप्रभावी परिणाम की आलोचना होती आई है. हालाँकि, कई शोधों से पता चलता है कि परिवारों की आय में वृद्धि के लिए मनरेगा महत्वपूर्ण है। इसने यह भी पाया कि खाद्यान्नों को खरीदने के लिए परिवारों की क्रय शक्ति में वृद्धि हुई है और साथ ही मनरेगा कार्यों में लगी महिलाओं का सामाजिक सशक्तीकरण हुआ है। मनरेगा से संबंधित कार्य में महिलाओं की भागीदारी बाल देखभाल, प्राथमिक चिकित्सा के साथ-साथ कम पारंपरिक लिंग वेतन भेदभाव और सम्मानजनक कार्य वातावरण जैसी सुविधाओं के कारण अधिक है। कई अध्ययनों से पता चला है कि मनरेगा ने व्यथित प्रवास को प्रतिबंधित करने में मदद की है।इस प्रकार, यह योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था की संरचनात्मक कमजोरी को दूर कर सकती है और महामारी के बाद के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकती है।

केंद्र सरकार ने भी इस कठिन समय में योजना की प्रासंगिकता को समझा है। ‘आत्म्निर्भर भारत अभियान’ की श्रंखला में मनरेगा के कामकाज के लिए अतिरिक्त 40,000 करोड़ का कोष आवंटित किया गया है, इस आवंटन से 300 करोड़ मानव दिवस काम मिल सकेगा. पहले बजट में इसके लिए 61 हज़ार करोड़ रुपए आबंटित किए गए थे. मनरेगा को एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की अब तक की सर्वाधिक राशि आवंटित की गई है । वित्त मंत्री ने यह भी बताया कि कोरोनोवायरस के बाद मनरेगा के तहत काम की मांग 50% तक बढ़ गई है। कई राज्य सरकारें भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और लौटे मजदूरों को काम देने के लिए मनेरगा का उपयोग कर रही हैं. हाल ही में झारखंड सरकार ने रोजगार को बढ़ावा देने के लिए और आने वाले प्रवासियों की आजीविका चिंता को संबोधित करते हुए मनरेगा के दायरे में मानव-दिनों को बढ़ाने और योजना के अधिक केंद्रित और प्रभावी कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए तीन स्थानीय योजनाएं शुरू की हैं- ‘बिरसा हरित ग्राम्योजन’, ‘नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना’, और ‘वीर शहीद पोटो हो खेल विकास योजना’ । इन योजनाओं से 25 करोड़ मानव दिवस जुटाने की उम्मीद है। छत्तीसगढ़ सरकार ने महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी योजना में पूरे देश में सबसे अधिक मज़दूरों को काम देने का दावा किया है. मनरेगा के तहत छत्तीसगढ़ में 30 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया जा चुका है। जो कि पूरे देश का 25 फीसदी है। वर्तमान में यहां के गांवों में जल संरक्षण और आजीविका संवर्धन के कार्य प्राथमिकता से स्वीकृत किए जा रहे हैं। मनरेगा के तहत जरूरतमंद परिवारों को 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में छत्तीसगढ़ पूरे देश में दूसरे पायदान पर है। बिहार में भी मनरेगा का काम चल रहा है, लॉकडाउन के दौरान रोजी-रोटी के लिहाज से कामों में तेजी आ गई है। प्रखंड के सभी पंचायतों में मनरेगा के कार्य शुरू हो गए हैं। बाहरी प्रदेशों से आए मजदूरों को काम देने और जॉब कार्ड बनाने का काम भी तेजी से चल रहा है। मनरेगा के तहत ग्राम पंचायतों में तालाब खुदाई, गहरीकरण समेत जल संरक्षण के काम कराए जा रहे हैं। मनरेगा के प्रभावी कार्यान्वयन में बिहार एक पिछड़ा हुआ राज्य रहा है। उत्तर प्रदेश में भी लॉकडाउन के कारण बाहरी राज्यों से रोजगार गवां कर घर वापस आ रहे लाखों प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोज़गार मिल रहा है। गांवों में लौटे ऐसे 40 फीसदी प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के माध्यम से रोजगार से जोड़ दिया गया है। एक अप्रैल से 15 मई के बीच राज्य में 4 लाख से अधिक मनरेगा के नए जाब कार्ड बनाए गए हैं। राजस्थान मनरेगा के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक आदर्श राज्य है और सबसे महत्वपूर्ण है कमजोर और सीमांत वर्गों विशेषकर एससी और एसटी की भागीदारी। मनरेगा ने राज्य से काफी हद तक पलायन में कमी लाई है। राजथान इस योजना के तहत श्रमिक जुड़ाव में सबसे ऊपर है। लॉकडाउन के बाद, काम की मांग और नए जॉब कार्ड के आवेदन में वृद्धि हुई है। देश के अन्य राज्य भी योजना में प्रवासियों को बड़े पैमाने पर रोजगार दे रहे हैं।

यह ग्रामीण रोजगार योजना आगामी मानसून के मौसम में भी योग्य साबित हो सकती है जब जल संचयन संरचनाओं की आवश्यकता होती है। देशभर में मनरेगा के तहत जो 264 काम होते हैं, उनमें से 162 कृषि से जुड़े हैं और ये सभी बारिश में चलाए जा सकते हैं। जलसंरक्षण मंत्रालय द्वारा राज्यों को गाइडलाइन भेजी गई है, जिसके मुताबिक मई और जून महीने में जलसंरक्षण से जुड़े कार्य करवाए जा सकते हैं।मनरेगा का ऐसा आकर्षण शायद पहले कभी नहीं देखा होगा। महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए इसे एक सहारा के रूप में हाथों हाथ लिया गया है। हालाँकि इस योजना से जुड़ी कुछ प्रमुख समस्याएं हैं जिन्हें सरकार को देखने की आवश्यकता है। यह योजना कौशल विकास और रोजगार सृजन के अन्य व्यवस्थित प्रयासों का विकल्प नहीं हो सकती है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में महामारी की मार को दूर करने के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। 

 

(लेखक (connect.adityaraj@gmail.com) रूरल मैनेजमेंट प्रोफेशनल है और ज़ेवियर इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल सर्विस  (XISS)रांची, झारखण्ड में असिस्टेंट प्रोजेक्ट ऑफ़िसर  के तौर पर कार्यरत है।)

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