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राख से होली, नगाड़े की धुन: जानिए छत्तीसगढ़ के इस गाँव की होली मनाने की अनोखी प्रथाएँ

भारत में होली त्यौहार सदियों से मनाते आ रहे है और यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। भारत देश को त्योहारों का देश कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि इस देश में हर धर्म और जाति के लोग अपने-अपने त्योहारों को बहुत ही हर्ष- उल्हास के साथ मनाते हैं। भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन, पारसी- सब के अलग अलग त्योहार होते है, जो धूम-धाम से मनाए जाते है। ऐसा हाई हिंदू धर्म का त्योहार है होली।

होली के त्यौहार को रंगो, गुलालों का त्यौहार भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन रंगों का बड़ी मात्रा में त्योहार मनाने के लिए उपयोग किया जाता है। पूरे देश में रंगों की होली खेली जाती है। गाँव में भी होली के त्यौहार को बहुत ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

जो लोग गाना गाते हैं उन्हें होलार कहते हैं।

शहरों की तुलना में छत्तीसगढ़ के हमारे गाँव की होली कुछ अलग ही होती है। जहाँ शहरों में DJ लाकर रोड पर लोग नाचते है और बड़े बड़े उद्यानों को बुक करके होली मनाते है, वही गाँव में नगाड़ा, ढोल, मृदंग, मांदर, झुमका बजाके दहकी (होली) गीत गाकर और नाचकर यह त्योहार मनाते है और एक दूसरे के साथ ख़ुशियाँ बाँटते हैं। घर-घर जाकर लोग अनेक प्रकार के भजन भी गाते हैं, जिससे उनको कुछ दान में पैसे और चावल भी मिलते है। घर में सब लोग एक दूसरे को गुलाल लगते है। 

पुराने दिनों में होली के रंग के लिए कोई बाहर से रंग नहीं ख़रीदता था, बल्कि घर पे ही पलाश के फूल से रंग निकालकर होली खेलते थे। आज कल तो रंग दुकानों में मिल जाते हैं।

गाँव में होलिका दहन

होलीका दहन होली के त्योहार का एक महत्वपूर्ण भाग है। यह दहन करने के लिए लोग हफ्ते- 15 दिन पहले से ही तैयारी करना शुरू कर देते हैं। होलिका दहन करने के लिए गाँव के लोग लकड़ी चुराते हैं, क्योंकि यह हमारे गाँव और समाज का रिवाज है। यह परम्परा है की सिर्फ़ चोरी की हुई लकड़ी ही होलिका दहन में उपयोग की जाती है।बड़े बुजुर्ग हैं होलिका दहन की जगह जाकर रात में झूमते-गाते हुए वहाँ वाद्य यंत्र बजाते हैं। 

होलीका दहन

बच्चे और युवा लकड़ी चुराने के लिए जाते हैं और गाँव में लकड़ी एक जगह इकट्ठा की जाती है। होलिका दहन के समय फिर गाँव के बैगा को बुलाकर उनके द्वारा नारियल, सुपारी, अगरबत्ती, अंडे, चढ़ाए जाते है और  होलिका की पूजा की जाती है। सुबह 4:00 बजते ही होलिका दहन की प्रक्रिया की जाती है और आग लगा दी जाती है।

 लकड़ी की राख से खेलते है होली 

होलिका दहन के दिन जब लकड़ियाँ जलती है, तो उसकी राख को लोग चंदन के रूप में उपयोग करते हैं और एक दूसरे को गालों पर और माथे पर लगाते हैं। गाँव का यही रिवाज है की होली के रंग के साथ खेलने से पहले जली हुए होलिका की राख से खेलते हैं। इसके पीछे मान्यता है की यह रख अनेक प्रकार के रोग शरीर से दूर भगाती हैं और शरीर में किसी प्रकार की बीमारी नहीं होती। उस दिन शरीर को आंकने (जलाने) की भी परंपरा रहती है, जिससे कई प्रकार की बीमारियाँ दूर होती है, ऐसे लोग मानते है। 

गाँव में कई प्रकार के बाजे-गाजे का उपयोग किया जाता है, जैसे ढोल,  मृदंग, तंबूरा, मंजीरा, ढोलक, तबला और नगाड़ा, जिसके बिना होली मनाई ही नहीं जा सकती। नगाड़ा होली का सबसे अहम बाजा है।

गाँव में उस दिन मिलने वाला बकरा या मुर्गी-मुर्गा हो, वह हर घर में पकाते है। होली के त्यौहार को गाँव के लोग फूहड़ त्यौहार भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन गंदी-गंदी गाली देने का भी रिवाज रहता है। गाँव की महिलाएँ इस प्रथा से दूरी बनाकर रहती है और अपने आसपास की महिलाओं को सिर्फ रंग लगाती हैं।

आपके यहाँ होली कैसे मनाते है?

 

ह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।

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