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लॉकडाउन से MSMEs सबसे ज्यादा क्यों प्रभावित हुए हैं?

लॉकडाउन से MSMEs सबसे ज़्यादा क्यों प्रभावित हुए हैं?

 

भारत की अर्थव्यवस्था पहले से ही पतली थी। अब कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के बाद स्थिति और खराब हो चुकी है।  FITCH समूह की कंपनी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड-रा) ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर को 2020-21 के लिए 1.9 प्रतिशत कर दिया है। खास बात यह है कि 1991-92 में भारत की विकास दर 1.1 प्रतिशत दर्ज किए जाने के बाद यह सबसे कम है। 

 

भारत में लॉकडाउन ने MSMEs को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया

 

कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर अपना प्रभाव छोड़ दिया है लेकिन भारत के MSMEs (मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यम) को सबसे ज़्यादा चोट पहुंची है। देश भर में सैकड़ों प्रवासी कामगारों के रूप में उपलब्ध सभी उपाख्यान प्रमाणों से पता चलता है कि MSMEs ही लॉकडाउन नाम की सबसे बड़ी दूर्घटना का शिकार हुआ है।  

MSMEs की निवेश करने का दायरा। फोटो साभार-गूगल

भारत के पास कितने MSMEs हैं?

 

MSME विभाग की नवीनतम उपलब्ध (2018-19) वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार देश में 6.34 करोड़ MSMEs हैं। इनमें से लगभग 51% ग्रामीण भारत में स्थित हैं। साथ ही वह 11 करोड़ से अधिक लोगों को रोज़गार देते हैं लेकिन 55% रोज़गार शहरी MSMEs में होते है। यह संख्या बताती हैं कि औसतन प्रति MSME में दो से कम लोग कार्यरत हैं।

 

MSMEs का 99.5% सूक्ष्म श्रेणी में आता है

 

जबकि सूक्ष्म उद्यमों को समान रूप से ग्रामीण और शहरी भारत में वितरित किया जाता है लेकिन छोटे और मध्यम लोग मुख्य रूप से शहरी भारत में हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सूक्ष्म उद्यम अनिवार्य रूप से पुरुष या एक महिला को अपने घर से काम करने के लिए संदर्भित करते हैं।

 

मध्यम और छोटे उद्यम – अर्थात, सभी MSME के ​​शेष 0.5% – शेष 5 करोड़ कर्मचारियों को रोजगार देते हैं।

 

राजस्व(revenue) में गिरावट और क्षमता उपयोग (utilisation capacity) के मामले में MSMEs पहले से ही संघर्ष कर रहे थे। संपूर्ण लॉकडाउन ने मुख्य रूप से कई लोगों की रोज़ी रोटी पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। क्योंकि यह ऐसी कंपनियां हैं जिनके पास संकट से निपटने के लिए बहुत अधिक नकदी नहीं हैं।

 

श्रमिकों की उपलब्धता बड़ी बाधा होगी

 

हाल ही में “छोटी और मध्यम” फर्मों के लिए सर्वेक्षण हुआ। उस सर्वेक्षण के अनुसार केवल 7% ने कहा कि यदि उनका व्यवसाय बंद रहता है तो वह अपनी नकदी के साथ तीन महीने से अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाएंगे। अब पुनः आरंभ करने के लिए एक बड़ी बाधा श्रमिकों (labour) की उपलब्धता में कमी है।

 

मूडीज़ ने भारत की सॉवरेन रेटिंग “Baa2” से घटा कर “Baa3” कर दी है। उनका मानना है कि 2022 से पहले इकनॉमी में रिकवरी नहीं होगी। 

 

अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट एजेंसी मूडीज़ इनवेस्टर सर्विसेज़ के इस कदम ने भारत की सॉवरेन रेटिंग घटा कर झटका दिया है।  साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर इसका निगेटिव आउटलुक बरकरार है। मूडीज़ ने कहा है कि कोविड-19 से उबरने के लिए अर्थव्यवस्था को जो पैकेज दिया गया है उसमें नकद प्रोत्साहन कोई खास नहीं है इसलिए मांग में बढ़ोतरी नहीं होगी। हालात ऐसे ही रहे तो 2022 से पहले इकनॉमी में कोई रिकवरी की संभावना नहीं है।

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