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व्यंग्य- योग से होगा, दान से होगा

मैंने अपने दोस्त को कुछ रुपये सौंपे और कहा कि बाहर जाकर दान कर दो। दान करने के बाद दोस्त वापस आया तो मिठाईयां और खाने पीने का सामान लेकर आया। दान देने की खुशी में पार्टी की गयी।

अगली दफ़ा मैंने फिर से कुछ रुपये अपने दोस्त को सौंपे और हिदायत दे दी कि जाओ गरीबों मजलूमों जरूरमंदों में दान कर देना। दोस्त गया और दान करके वापस आ गया। वापसी में एक किलो चिकेन और बोतल लेकर आया। दान देने की खुशी में पार्टी की गयी।

अब जब भी मुझे कुछ अच्छा खाने और पार्टी करने का मन होता है, मैं इसी तरह कुछ पैसे निकाल कर दान करने के लिये सौंप देता हूँ। दान देकर मैं एक जिम्मेदार नागरिक के कर्तव्यों का पालन करता हूँ। जब भी कोई गरीबी भुखमरी की बातें करता है चिंता व्यक्त करता है तो मैं मुंह उठा के पक्क से कह देता हूँ कि क्या अपने कभी दान किया ?

क्योंकि मेरा मानना है कि मेरा दोस्त एक ईमानदार और देशभक्त व्यक्ति है इसलिये मैं कभी उससे पैसों वैसों का हिसाब नहीं मांगता मसलन..उसने ये डेढ़ लाख का Maybach का चश्मा कहाँ से लिया। या ये कि वो गरीब है तो Mont Blanc का पेन क्यूँ रखता है। कपड़ों की कीमत और चमकती त्वचा के लिये खाने में 16000 रुपये किलो वाले मशरूम के बारे में तो मैं सोचता भी नहीं।

आप भी दान कीजिये। गरीबी और मजदूरों की दिक्कतों के बारे में लिखे लिख के थोड़ी होगा कुछ।

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