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हर एक की सेहत का ख्याल रखती आंगनवाडी कार्यकर्त्ता

सथाना की कार्यकर्त्ता भगवती वैष्णव

सथाना की कार्यकर्त्ता भगवती वैष्णव

आमतौर पर डॉक्टर, शिक्षक और पुलिस; इन त्रय को ही कोरोना यौद्धा के रूप में शाबासी और सम्मान मिल रहा है, किन्तु ग्रामीण राजस्थान में एक और कोरोना यौद्धा है, जो बिना किसी सम्मान या पहचान के चुपचाप अपना कार्य करती जा रही है. ये हैं हमारी आंगनवाडी केन्द्रों की कार्यकर्त्ता और आशा सहयोगिनियां.

सामान्यतः हम इन्हें आंगनवाडी केंद्र पर बच्चों को शाला पूर्व शिक्षा पढ़ाते और पोषण का ध्यान रखने वाले कार्यकर्त्ता के तौर पर ही जानते हैं किन्तु इस महामारी के समय में घर घर जाकर जिस तरह का काम आंगनवाडी कार्यकर्त्ता और आशाओं ने किया है, वो काबिल ए तारीफ़ है . स्वास्थ्य सर्वे, प्रवासियों की जानकारी एवं उनकी निगरानी, पोषण सामग्री वितरण, कोरोना से बचने सम्बन्धी उपायों का प्रचार, कुपोषित बच्चों को अस्पताल ले जाने समेत मास्क बनाकर बांटने जैसे कई काम करके आंगनवाडी कार्यकर्ताओं ने साबित किया है कि वे ग्राम स्तर की पहली यौद्धा है. राजसमन्द में जतन संस्थान, हिंदुस्तान जिंक और विभाग के साझे में चल रही ख़ुशी परियोजना से जुडी कई कार्यकर्ताओं की कई दिलचस्प कहानियां इन दिनों सामने आई है, जो अन्य लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है.

 

होटल स्टाफ की मदद से बच्चों के घर तक पहुंचाई शिक्षण सामग्री : देलवाड़ा कस्बे में संचालित केंद्र की कार्यकर्त्ता बिलकिस बानू की आंगनवाडी जब पूरे मई माह में बंद रही तो उन्हें समझ आ गया कि ऐसे तो बच्चे घर पर बोर हो जायेंगे. बिलकिस के केंद्र पर रोज़ 40 से ज्यादा बच्चे आते थे. ऐसे में उन्होंने ख़ुशी परियोजना टीम के साथ मिलकर एक स्थानीय हेरिटेज होटल के स्टाफ से सहायता मांगी. स्टाफ ने बच्चों के लिए ड्राइंग बुक, स्टेशनरी और कलर भेजे. बिलकिस ने सभी सामग्री बच्चों के घर तक भिजवाई. वह नियमित रूप से गृह भ्रमण करके बच्चों के अभिभावकों को सिखाती है कि बच्चों को कैसे पढाया जाए.

 

मंशा रोज़ सिलती है मास्क और उन्हें मुफ्त में वितरित करती है : काबरा द्वितीय (रेलमगरा) की आशा सहयोगिनी मंशा सोनी ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान फिल्ड में सेवा करते समय देखा कि अधिकांश  लोगों के पास मास्क नहीं है और वे ऐसे ही घूम रहे हैं तो मंशा ने ठाना कि उन्हें शुरुआत यहीं से करनी है. मंशा के पास खुद की सिलाई मशीन है और उन्हें थोड़ी बहुत सिलाई आती भी है. ख़ुशी की बस फिर क्या था, मंशा रात को परिवार को भोजन कराने के बाद मशीन पर बैठ जाती और मास्क बनाती. दिन में फिल्ड विजिट्स में जिन भी महिलाओं को बिना मास्क के देखती, उन्हें अपने बनाए मास्क उपलब्ध करवाती. मंशा के इस काम को स्थानीय पंचायत और अन्य लोगों ने भी सराहा.

ख़ुशी परियोजना के सहयोग से मंशा ने अपने क्षेत्र के कुपोषित बच्चों की सूची बनाने में आंगनवाडी कार्यकर्त्ता की मदद भी की और सूखा राशन और टेक होम राशन सामग्री बंटवाने, अपने गाँव के स्कूल में बने क्वारेंटाईन सेंटर में रोज़ प्रवासियों को दवाई लेने की याद दिलाने और उन्हें स्वच्छता के सामान्य नियम बताने में पूरी सहायता भी की.

 

दर्जनों परिवारों तक राशन पहुँचाया दुर्गा ने : दुर्गा सुखवाल दरीबा तृतीय (रेलमगरा) आंगनवाडी केंद्र की कार्यकर्त्ता है. मार्च के आखिरी हफ्ते में लॉकडाउन शुरू होते ही दुर्गा सुखवाल ने सबसे पहले अपने केंद्र से जुड़े बच्चों की सुध ली. वे परिवार, जहाँ रोज़ कुंआ खोदना और रोज़ पानी पीना वाली स्थिति है, वहां पता लगाना शुरू किया कि क्या कोई कमी तो नहीं है.

दुर्गा बताती है, शुरुआत में कुछ दिन तो ठीक ठाक चलता रहा पर फिर अचानक एक फोन से पता चला कि बहुत से परिवारों के पास खाने को अन्न नहीं है. बस तभी दुर्गा ने ऐसे परिवारों को राशन पहुँचाना शुरू कर दिया.

दुर्गा ने ख़ुशी परियोजना और स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग के सहयोग से अपने क्षेत्र के कुपोषित बच्चों की पहचान भी की और सर्वे के आधार पर उन्हें इलाज और पोषण सामग्री भी भिजवाई. स्वच्छता सम्बन्धी आदतें अपनाने को भी प्रेरित किया.

 

चनकारा की गीता संभाल रही 04 गांवों की जिम्मेदारी : आत्मा पंचायत के मार्बल खनन क्षेत्र में स्थित चनकारा मिनी आंगनवाडी के जिम्मे करीब चार छोटे गाँव आते हैं. यहाँ की कार्यकर्त्ता गीता नगारची अकेले माइनिंग क्षेत्र में बसे सभी आदिवासी परिवारों की नियमित स्वास्थ्य जांच कर रही है और अकेले ही सूखी राशन सामग्री बांटने भी जा रही है. गीता कहती है, पिछले दिनों शाम को राशन बांटकर लौटते वक़्त उसका सामना एक तेंदुए से हो गया, उसके बाद वह ख़ुशी परियोजना के समन्वयक नन्दकिशोर की सहायता ले रही हैं.

 

दिन में बच्चों का पोषण और शाम को क्वारेंटाईन सेंटर : भाटोली पंचायत के सथाना आंगनवाडी केंद्र की कार्यकर्त्ता भगवती वैष्णव दिन में बच्चों, गर्भवती और धात्री महिलाओं की स्वास्थ्य और पोषण का जायजा लेती है और शाम को स्थानीय स्कूल में बने क्वारेंटाईन सेंटर में अपनी ड्यूटी देती है. भगवती कहती है कि तेज़ गर्मी में दिन भर मास्क लगाकर सावधानी रखते हुए गाँव-फलों में घूमना मुश्किल भरा होता है किन्तु केंद्र बंद होने के कारण बच्चों के स्वास्थ्य की निगरानी का काम उसके जिम्मे है, जिसयून्हे निभाना ही है. वे हँसते हुए कहती है, कोरोना के दिन तो एक दिन चले जायेंगे किन्तु इस से गाँव वालों का जो विश्वास हमारे काम के प्रति बना है, वह सबसे बड़ी कमाई है.

 

व्हाट्सएप ग्रुप से पढ़ा रहे बच्चों को : ख़ुशी परियोजना क्षेत्र में करीब 450 आंगनवाडी केन्द्रों से जुड़े बच्चों के अभिभावकों के महिला एवं बाल विकास विभाग के सहयोग से ख़ुशी टीम ने  व्हाट्सएप ग्रुप बनाये हैं. लगातार एक महीने से ज्यादा समय से इन ग्रुप के ज़रिये आंगनवाडी कार्यकर्त्ता और ख़ुशी के कार्यकर्त्ता मिलकर बच्चों के लिए मनोरंजक शाला पूर्व शिक्षा सामग्री और स्वास्थ्य- पोषण से सम्बंधित रोचक वीडियो और ऑडियो सन्देश भेज रहे हैं. फिल्ड विजिट्स के कार्यकर्त्ता अभिभावकों से मिलकर फोलो अप भी ले रहे हैं. अब तक 4500 से अधिक अभिभावको को इन समूहों से जोड़ा जा चुका है.

 

इनका कहना है :

“ आंगनवाडी कार्यकर्ताओं का काम तारीफ़ के काबिल है. बिना किसी सम्मान या प्रशंसा के ये कार्यकर्त्ता चुपचाप ग्राम स्तर पर अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं. ख़ुशी परियोजना क्षेत्र में 500 से अधिक कार्यकर्त्ताओं के साथ साथ पूरे जिले की कार्यकर्त्ता इस समय पूरी मुस्तैदी के साथ अपना काम कर रही है.”

 

“लॉकडाउन के पहले चरण से ही योजना बनाकर ख़ुशी परियोजना टीम आंगनवाडी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर काम में जुट गयी. इसी का परिणाम रहा कि  कुपोषित बच्चों के साथ साथ केंद्र से जुड़े प्रत्येक बच्चे तक पोषण सामग्री भिजवाने, स्वास्थ्य जांच और शाला पूर्व शिक्षा के लिए व्हाट्सएप ग्रुप जैसे नवाचार संभव हो पाए.”

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