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जब भूख से हो रही थी देश में मौतें तो गोदामों में सड़ रहे थे 65 लाख टन अनाज

यह वो समय है जिसमें सबसे ज़्यादा ग़रीब तबका अपनी ज़िंदगी के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे हैं। प्रकृति उनके विलोम में है ही दुनिया भी उनके विरोध में आ गई है।

कोरोना संक्रमण के बीच जारी लॉकडाउन के दौरान गरीबों और भूखों को खिलाने के लिए अपने अनाज भंडार का उपयोग करने के बजाय, भारत सरकार इस भोजन को अपने गोदामों में सड़ने दे रही है। इतनी बड़ी मात्रा में अतिरिक्त अनाज स्टॉक करने के लिए सरकार के पास उचित भंडारण की सुविधा नहीं है।

चूंकि इस अनाज में से अधिकांश को अनुकूल परिस्थितियों में लंबे समय तक संग्रहित किया गया है, इसलिए इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है।

आंकड़े बताते हैं कि स्टॉक में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई है

1 जनवरी से 1 मई के बीच केवल चार महीनों में चावल और गेहूं का स्टॉक जो आसानी से जारी करने योग्य नहीं था, जिनमें आंशिक रूप से खराब होने के साथ-साथ क्षतिग्रस्त अनाज भी शामिल थे। वह अब 7.2 लाख टन से बढ़कर 71.8 लाख टन हो गया।

यह अप्रैल और मई में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के माध्यम से वितरित अनाज की मात्रा से अधिक है, जो कोविड-19 द्वारा बनाई गई आजीविका और खाद्य असुरक्षा के संकट से निपटने के लिए तैयार की गई थी।

पिछले तीन वर्षों में फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया खाद्यान्न के बड़े पैमाने पर अतिरिक्त स्टॉक पर है। ऐसे में समझना बेहद ज़रूरी है कि मौजूदा आर्थिक संकट से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए सरकार इन शेयरों का उपयोग करने में कैसे विफल रही है।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की खाद्य नीतियों की राजनीतिक अर्थव्यवस्था को समझने के लिए इस पर चर्चा करना आवश्यक है कि सरकार इतनी बड़ी मात्रा में अनाज का वितरण किस प्रकार कर रही है? क्योंकि अनाज मंडियों में सड़ता जा रहा है।

खाद्य निगम की अनाज भंडारण में भूमिका

खाद्य निगम द्वारा रखे गए स्टॉक में सरकारी कार्यक्रमों की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक अनाज जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ-साथ अनाज को उत्पादन या खरीद में होने वाली किसी भी कमी को पूरा करने के लिए रणनीति के तहत रखा जाता है।

सरकार के स्टॉकिंग मानदंडों में अनाज की मात्रा निर्दिष्ट है जिसे खाद्य निगम को एक वर्ष में विभिन्न बिंदुओं पर रखना चाहिए। हालांकि, पिछले तीन वर्षों में खाद्य निगम ने मानदंडों के अनुसार आवश्यकता से अधिक स्टॉक जमा किए हैं।

खाद्य निगम द्वारा रखे गए अधिशेष स्टॉक की मात्रा में अक्टूबर 2018 के बाद लगातार वृद्धि हुई है और 1 मई 2020 तक सरकार के पास 878 लाख टन अनाज (अनमील्ड धान सहित) हैं, जो कि पहले 668 लाख टन था। यह स्टॉकिंग मानदंडों की अधिकतम सीमा को पार कर चुके हैं।

कोरोना संकट के दौरान अतिरिक्त सार्वजनिक शेयरों का रणनीतिक उपयोग

संकट को कम करने और खाद्य असुरक्षा को रोकने के लिए तालाबंदी के दौरान अनाज का इस्तेमाल रणनीतिक रूप से किया जा सकता था। जबकि सरकार अनाज के इतने बड़े भंडार की जमाखोरी कर रही थी।

यह सरकार के लिए एक विशेष रूप से आकर्षक विकल्प होना चाहिए, क्योंकि राजकोषीय बोझ बढ़ाने के बजाय, इस अनाज का मुफ्त वितरण या भोजन के लिए संचालित कार्यक्रमों में किया जाना चाहिए था। राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना ने बड़े शेयरों को बनाए रखने के राजकोषीय बोझ को कम कर दिया है, यह एक सुनिश्चित तथ्य है।

हालांकि, गरीबों में वितरण के लिए अनाज को जारी करने में सरकार बेहद दयनीय रही है। 26 मार्च को वित्त मंत्री ने घोषणा की कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना या पीएमजीकेवाई के तहत 80 करोड़ व्यक्ति (यानी कि भारत की आबादी का लगभग दो-तिहाई) क तीन महीने में उनके वर्तमान अधिकारों का दोगुना अनाज प्रदान किया जाएगा और यह अतिरिक्त लागत से मुक्त होगा।

सरकार की नीतियां व्यवस्थित हो तो कोई गरीब भूखा ना सोए

यह स्पष्ट है कि अगर भारत की दो-तिहाई आबादी (जो कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत कवर की गई जनसंख्या है) के अधिकारों को दोगुना किया जाना चाहिए, तो सरकार को पीएमजीकेवाई के माध्यम से उतना ही अनाज वितरित करना चाहिए जितना कि राष्ट्रीय खाद्य के तहत होता है।

जिससे किसी भी गरीब का पेट ख़ाली नहीं रहता। उसको इतना तो मिलता कि वह उसी जगह पर रह कर अपने 2 से ढ़ाई महीने गुज़ार लेता, मगर सरकार को अनाज भंडार भरने थे निर्यात करने के लिए। चाहे अपने देश के गरीब लोग भूखे तड़प तड़पकर मर ही क्यों ना जाएं।

उपरोक्त आंकड़े दर्शाते हैं कि महामारी से निपटने के लिए सरकार की तैयारी काफी सुस्त बुनियाद की इमारत पर खड़ी है। एक ओर जहां मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास को खाने से सम्बंधित अधिक परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ रहा है। वहीं, दूसरी ओर उद्योगपतियों और राजनीतिक क्षेत्र के लोगों को यह लॉकडाउन किसी भी नकारात्मक दृष्टि से प्रभावित नहीं करता है।

इस लॉकडाउन में सिर्फ गरीब आदमी ही पिस रहा है

इसमें पिसने वाले लोग या तो मज़दूर हैं या गरीब किसान। उनके पैर के छाले और पेट की सूखी आंतें इस बात की गवाही देती जा रही हैं कि कोई तो है, जो इस अत्याचार को देख रहा है। भूख की कमी से उनके शरीर का सारा पानी सूख चुका है।

इंसान हर स्थिति में खुद को ढालने की क्षमता रखता है मगर खाली पेट ना तो उसका दिमाग उसको सही रास्ता दिखाएगा और ना ही शरीर।

पलायन के वक्त लोगो के ज़हन में यही बात रही होगी कि हम अपना पेट कैसे पालेंगे? और निकल पड़े अपने-अपने गाँवों की ओर। किसी ने मौत का चेहरा देखा तो किसी ने चिलचिलाती गर्मी में अपनी माँ की अर्थी, जो ट्रेन में दम घुंटने और भूखे पेट के कारण हुई।


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