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भारत में 80% दैनिक और 60% वेतनभोगी श्रमिक हुए बेरोज़गार: सर्वेक्षण

MIGRANT WORKERS WALK HOME DUE TO NO PROPER TRANSPORTATION.

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इम्पैक्ट एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IMPRI), दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा 7 मई से 17 मई, 2020 तक किए गए अपने सर्वेक्षण में देश के 50 से अधिक शहरों के 3,121 घरों का टेलीफोनिक साक्षात्कार करके पाया कि दस में से आठ लोग दैनिक वेतन भोगी हैं।

दस वेतनभोगी श्रमिकों में से छह मज़दूरों ने व्यवसाय और निर्माण गतिविधियों को बंद कर देने और अपने कार्यस्थलों पर जाने में असमर्थता के कारण लॉकडाउन के दौरान बेरोज़गार होने की सूचना दी है।

सर्वेक्षण के परिणामों पर 27 मई, 2020 को एक वेबिनार में चर्चा की गई जिसमें 500 से अधिक लोगों भाग लिया जिनमें प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के विद्वान भी शामिल थे।

50 प्रतिशत से अधिक लोग आजीविका खोने को लेकर हैं चिंतित

अध्ययन में पाया गया कि 10 उत्तरदाताओं में से छह ने कहा कि वे इस बात से अनभिज्ञ थे कि लॉकडाउन और महामारी के दौरान स्वच्छता आदि को सुनिश्चित करने में भीड़ एक प्रमुख बाधा थी। 50% से अधिक उत्तरदाता आजीविका कमाने और काम खोने के बारे में चिंतित थे। साथ ही वे इस बारे में भी चिंतित थे कि वे अपने परिवार और खुद को कैसे खिलाएंगे?

अध्ययन में पता चला कि 10 में से छह उत्तरदाताओं ने लॉकडाउन समाप्त होने के बाद मुफ्त राशन की मांग की। जबकि वर्तमान में हुई इस आजीविका नुकसान को एक अस्थायी घटना बताते हुए 10 में से आठ उत्तरदाताओं ने कहा कि वे लॉकडाउन समाप्त होने के बाद काम फिर से शुरू करेंगे। लेकिन वे इस बात पर सहमत थे कि बहुत हद तक इस पर निर्भर करेगा कि सरकार, व्यापार और लोग इस पर कैसी प्रतिक्रिया देंगे।

काम करते मज़दूर

योजनाएं नहीं पहुंच रही हैं ज़रूरतमंदो तक

अधिकांश उत्तरदाताओं ने कहा कि विभिन्न सरकारी योजनाओं की पहुंच सार्वभौमिक ना होने से उनसे दूर थी। इसमें जागरूकता और योग्यता की कमी दो प्रमुख बाधाएं थीं। कई उत्तरदाताओं ने बताया कि वे सरकार द्वारा शुरू किए गए कार्यक्रमों के लिए पात्र ही नहीं थे।

अध्ययन ने सुझाव दिया कि मुख्य नीति निर्धारण में महामारी संबंधी तैयारियों और प्रतिक्रिया के लिए स्थानीय आवधिक डेटा की आवश्यकता है। गतिशील शहरी नियोजन प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करने और शहर की सरकारों को सशक्त बनाने के लिए एक नया शहरी एजेंडा हो।

यह भी सुझाव दिया गया कि बढ़ते आर्थिक संकट को दूर करने के लिए एक दीर्घकालिक नीति विकल्प के रूप में एक शहरी नौकरी आश्वासन कार्यक्रम की ज़रूरत है और अंतरालों को जोड़ने और सिटी मेकर्स के अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सार्वजनिक सहायता कार्यक्रमों का विस्तार करने की ज़रूरत हैं।

स्वास्थ्य बीमा, बुनियादी सुविधाओं और स्थानीय सरकारों के बीच हो समन्वय

इस अवसर पर बोलते हुए, वेंडी ऑलसेन (मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, यूके) ने कहा कि हमें सिटीमेकर्स की ज़रूरतों के लिए एक अत्यंत स्थानीय समाधान की आवश्यकता है, जिसमें 140 मिलियन से अधिक नागरिक शामिल हो। उनके अनुसार लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए मुफ्त राशन, अग्रिम मज़दूरी और प्रत्येक के लिए सुनिश्चित खाद्य आपूर्ति आवश्यक थी।

एक सच्ची राजनीतिक इच्छा पर जोर देते हुए उन्होंने स्वास्थ्य बीमा, बुनियादी सुविधाओं और स्थानीय सरकारों के बीच समन्वय पर जोर दिया। जहां जोड़ने के क्रम में शहरी स्थानीय निकायों को आवश्यक धन और स्थानीय क्षमता के साथ मजबूत किया जाना चाहिए।

संदीप चाचर (एक्शन एड) ने कहा कि अनौपचारिक श्रमिकों के लंबे बकाया कॉल को तुरंत समाधान प्रदान करते समय, सभ्य मज़दूरी और खासकर श्रमिकों के अधिकारों को कम नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि ये अधिकार श्रम संघर्ष के वर्षों के बाद प्राप्त किए गए थे। उन्होंने कहा कि श्रम कानूनों का निलंबन नहीं किया जा सकता है और ना ही सामाजिक सुरक्षा और संरक्षण को कम करना चाहिए।

प्रो. रूथ स्टीनर (फ्लोरिडा विश्वविद्यालय, यूएसए) ने कहा, “भारतीय आबादी का एक बड़ा वर्ग आमतौर पर नीतिगत चुनौतियों से नजरअंदाज किया जाता है। जब एक राष्ट्र बंद हुआ है तो ज़रूरत है कि हम कैसे उनकी बुनियादी सुविधाओं को पूरा करने के तरीके पर ध्यान देते हैं। हमें वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंचने के लिए सार्वजनिक परिवहन के महत्व को समझने की ज़रूरत है। इसे भविष्य के लिए सबक के रूप में लेना चाहिए।”

गरीब मज़दूर

लॉकडाउन से शहरी अनौपचारिक श्रमिकों की आजीविका हुई है बुरी तरह प्रभावित

IMPRI के वरिष्ठ संकाय डॉ. अर्जुन कुमार ने कहा, ”प्रधानमंत्री ग्रामीण कल्याण योजना जैसे सरकारी कार्यक्रमों से गरीबों को रुक-रुक कर राहत पहुंचाई जा रही है। हालांकि मौद्रिक सहायता का प्रति व्यक्ति आवंटन बहुत कम है और इसे सफल होने के लिए ‘थैलिनोमिक्स’ यानी संतुलित आहार सुनिश्चित करने जैसी योजनाओं के लिए प्रति व्यक्ति लगभग 2,000 रुपये की सुनिश्चित सहायता की आवश्यकता है। सरकार से यह अपेक्षा की जाती है कि वह संरक्षक के रूप में कार्य करे और यह सुनिश्चित करे कि कल्याणकारी योजनाएं सभी के लिए सुलभ हों।”

IMPRI के विद्वान डॉ. बलवंत सिंह मेहता और अध्ययन समन्वयक डॉ. सिमी मेहता ने कहा, “अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि शहरी अनौपचारिक कार्यकर्ता मुख्य रूप से कम वेतन वाले दैनिक मज़दूरी कार्य और सड़क विक्रेताओं जैसे स्वरोज़गार गतिविधियों में लगे हुए थे।जहां केवल कुछ वेतनभोगी ही नौकरियों में शामिल थे। इसलिए लॉकडाउन का उनकी आजीविका पर बहुत प्रभाव पड़ता है क्योंकि 10 श्रमिकों में से लगभग छह ने अपनी आजीविका खो दी है।”

हालांकि सबसे दिलचस्प हिस्सा उनमें से तीन-चौथाई से अधिक ने बताया कि लॉकडाउन हटा दिए जाने के बाद वे काम फिर से शुरू करेंगे। यह अध्ययन स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि लंबे समय तक तालाबंदी ने शहरी अनौपचारिक श्रमिकों की आजीविका को बुरी तरह प्रभावित किया है। इसलिए भविष्य में ऐसी किसी भी प्रतिकूलता के मामले में पर्याप्त उपाय किए जाने की आवश्यकता है।”

मौजूदा वक्त को ध्यान में रखते हुए युद्ध स्तर पर उपलब्ध हो राहत के उपाय

दो शोधकर्ताओं सहायक समन्वयक और वरिष्ठ शोधकर्ता, अंशुला मेहता और रितिका गुप्ता ने कहा, “राहत के उपाय मौजूदा वक्त की वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए युद्ध स्तर पर उपलब्ध कराए जाने चाहिए और यह समझना चाहिए कि सभी के लिए स्थिति कितनी तनावपूर्ण हो जाती है। विशेष रूप से सिटीमेकर्स का जीवन और आजीविका बुरी तरह प्रभावित होता है।”

IMPRI ने टिप्पणी की कि यह अध्ययन स्पष्ट रूप से कोविड-19 और लॉकडाउन के दौरान सिटी मेकर्स की अभूतपूर्व पीड़ाओं, चिंताओं और धारणाओं को दर्शाता है। यह ज़मीनी स्तर की कहानियों और वास्तविकताओं को दर्शाता है। यह अध्ययन लघु और दीर्घकालिक दोनों रूपो में साक्ष्य-आधारित शासन के माध्यम से सुधारात्मक उपाय करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश प्रस्तुत करता है।

वेबिनार के अन्य प्रमुख प्रतिभागियों में प्रोफेसर क्रिस सिल्वर और डॉ. अभिनव अलक्षेंद्रम (फ्लोरिडा विश्वविद्यालय, यूएसए), IMPRI संकाय डॉ. सौम्यदीप चट्टोपाध्याय और विश्व भारती जैसे प्रसिद्ध विद्वान शामिल थे।


हिन्दी अनुवाद- पूजा कुमारी, (IMPRI)

अंग्रेज़ी में इस लेख को यहां पढ़ें: https://www.counterview.net/2020/05/citymakers-locked-out-indias-80-casual.html

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