किसी जानवर से खेल नहीं किया तुमने
एक माँ की हत्या कर दी तुमने,
राक्षश बन गए हो तुम सब
आज फिर एक बार कसाइयों
इंसानियत शर्मशार कर दी तुमने।
तुम से तो कुछ नहीं मांगा था ना उसने
फिर क्यों झुलसा दिया उसे, क्यों जला दिया उसे?
क्यों एक निष्पाप की सांसें
तिल-तिलकर छीन ली तुमने?
एक भूखी माँ को भोजन का लालच देकर
यूं ही बस, बेवजह, बेमतलब
उसके प्राणों की गत्त पुरा दी तुमने।
वो भूखी प्यासी थी, चाहती तो
कुचल सकती थी तुम्हें मगर
वो तड़पती रही, झल्लाती रही
फिर भी तुम्हारा अहित नहीं किया उसने।
पटाखों की खूनी चिंगारियों में
सुलगती रही, तपतपाती रही
दर्द से कराहती हुई पानी में खड़ी की खड़ी ही रह गई
प्यारी सी अम्बा मौत की आगोश में सो गई।
वैसे तो खुद को बड़ा इंसान कहते हो
फिर क्यों करूणा नहीं दिखाई तुमने?
एक बेज़ुबान माँ को तिलमिलाते देख
उसके अजन्मे शिशु को मारते वक्त
ज़रा दया नहीं आई तुम्हें, लाज नहीं आई तुम्हें?
तुम्हारा बोझ ढोती थी वो
मरकर भी तुम्हारे काम आती है वो
इतना दोहन करने के बावजूद
धत्त भरी नहीं तुम्हारी, शर्म आई नहीं तुम्हें?
क्यों, आखिर क्यों एक मासूम को
मौत के घाट उतारा तुमने?