Site icon Youth Ki Awaaz

मुखर्जी नगर की दास्तान: “वह पढ़ना भी क्या पढ़ना था, जहां चिंतारहित भविष्य का इंतज़ार था”

वह पढ़ना भी क्या पढ़ना था
जहां चिंतारहित भविष्य का इंतज़ार था।

वह भटक भटककर पेंइग गेस्ट ढूंढना
फिर सहमी हुई निगाहों से अपने आप को उस प्रांगण में समेटना।
भरी भीड़ में अपने कोचिंग को उन बैनर और बोर्ड के बीच ढूंढना
और चमचमाती धूप में बिना परवाह किए उसी
चार-पहिये की सवारी करना।

वह पढ़ना भी क्या पढ़ना था
जहां चिंतारहित भविष्य का इंतज़ार था।

वह 3 घंटे की कोचिंग कर थककर बाहर आना,
फिर दोस्तों से मुलाकात और स्ट्रीट फूड के चटकारे लेना।
दिन में पढ़ने का आलस करना
और रातभर खुली दृष्टि से जगना।
रोज़-रोज़ टिफिन के खाने से अपना मूड बदलना
और बाहर जाकर अंत में वही चाय की चुस्कियां लेना।

वह पढ़ना भी क्या पढ़ना था
जहां चिंतारहित भविष्य का इंतज़ार था।

वह कभी-कभी दोस्तों सहित घूमने का विचार करना
पर खुद को उसी लैंप और टेबल पर मौजूद पाना।
रात को जन्मदिन की गुंजों से खुद को भरपूर आनंद में समर्पित करना
और अभी तो समय है ‘दोस्त’
यह कहकर ज़िन्दगी के सारे पल उस एक रात ही में जी लेना।

वह पढ़ना भी क्या पढ़ना था
जहां चिंतारहित भविष्य का इंतज़ार था।

वह धीरे-धीरे वर्ष बीतना
किसी की सफलता और असफलता से खुद को प्रेरणा देना।
एक दिन अवश्य होगी उस लक्ष्य की प्राप्ति
यह कहकर खुद को वापस उसी मूड में करना।
और खुली सोच से करंट अफेयर्स पर चर्चा कर
‘दा हिंदू’ को मात्र 20 मिनट में ही खत्म करना।

वह पढ़ना भी क्या पढ़ना था
जहां चिंतारहित भविष्य का इंतज़ार था।

वह इतना मोह उस जगह से
जिससे आकर्षित होकर कुछ सफल हुए कुछ असफल।
जहां कुछ गहरे रिश्ते बनें
और जहां कुछ गहरी सीख।
एक तरफ पढ़ने की चाह
और एक तरफ जॉब लगने की रीत।

वह पढ़ना भी क्या पढ़ना था
जहां चिंतारहित भविष्य का इंतज़ार था।


Exit mobile version