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कविता: जब ये हलचल खत्म हो जाएगी

जब ये हलचल खत्म हो जाएगी
हम फिर उसी दौड़ में शामिल हो जाएंगे
जिसके थमने का हम इंतज़ार करते थे।

जब ये हलचल खत्म हो जाएगी
दुनिया फिर ढक जाएगी हमारे धुएं के दबाव से,
पहाड़ फिर खुले नज़ारों को याद करेंगे
जब ये हलचल ख़त्म हो जाएगी।

इमारतें फिर अपनी जगह बनाएंगी
पेड़ फिर अपनी जानों को तरसेंगे
जब ये हलचल खत्म हो जाएगी।

आसमान फिर रंग जाएगा हमारे जीवन के कालेपन से
चिड़ियां फिर अपने आकाश को ढूंढेंगी
जब ये हलचल खत्म हो जाएगी।

रास्ते फिर व्यस्त हो जाएंगे, हमारी दौड़ती ज़िंदगी के साथ चलने में
बंदर फिर अपने खुले स्थानों को ढूंढेंगे
जब ये हलचल खत्म हो जाएगी।

पानी फिर बदल जाएगा हमारी मटमैली ख्वाहिशों को नहलाते हुए
मछलियां फिर सांस लेने के लिए तड़पेंगी
जब ये हलचल ख़त्म हो जाएगी।

कुछ जीव फिर कैद हो जाएंगे
कुछ दानव फिर राज करेंगे।

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