एक कहावत है “जर, जोरू और ज़मीन” के पीछे नहीं भागना चाहिए। इस कहावत को शूजित सरकार ने सीरियस ले लिया और वास्तविकता में लाकर पटक दिया।
दरअसल, बात हालिया रिलीज़ “गुलाब-सिताबो” फिल्म की हो रही है। जिसकी कहानी नवाबों के शहर लखनऊ से शुरू होती है।
कहानी की बात
फिल्म में एक हवेली का ज़िक्र है जिसका नाम फातिमा महल है। उस हवेली में मिर्ज़ा यानी (अमिताभ बच्चन) और उनकी बीवी बेगम और कुछ किरायsदार रहते हैं। फातिमा के महल में एक किरायेदार बांके भी हैं। यानी (आयुष्मान) जो अपने परिवार के साथ रहते हैं।
मिर्ज़ा एक बहुत ही कंजूस मकान मालिक हैं, जो हमेशा अपने किरायेदारों से पैसे बढ़ाने को कहते हैं। किरायेदार हैं कि मिर्ज़ा को सीरियसली ही नहीं लेते हैं। मिर्ज़ा को सबसे ज़्यादा तकलीफ बांके से ही है। मिर्ज़ा को हमेशा लगता है कि बांके कहीं महल पर कब्ज़ा ना कर ले।
बांके की एक आटा पीसने की दुकान है, जिससे वह अपने पूरे परिवार का खर्चा चलाता है। किरायेदारों के किराया ना देने पर मिर्ज़ा कभी बल्ब खोल लेते हैं, तो कभी बिजली ही काट देते हैं।
लालच बुरी बला है
लालच तो बुरी बला है ही लेकिन दूसरे के धन पर लालच करना घोर अपराध है। जिस महल पर मिर्ज़ा उछलते-कूदते हैं, असल में वह महल तो बेगम का है। मिर्ज़ा, बेगम के दूसरे पति हैं।
मिर्ज़ा ने उस महल को कब्ज़ा करने का सोच रखा था। इसलिए मिर्ज़ा ने 17 साल बड़ी लड़की से शादी की थी। रही बात बेगम की, तो उनको भी ऐसा पति चाहिए था जो घर जमाई बनकर रह सके।
मिर्ज़ा अपने किरायेदारों को निकालने के लिए कोर्ट कचहरी करने लगते हैं। यहां तक कि वो हर रोज़ बेगम के मरने की दुआ करते हैं। कहानी हज़रतगंज और अलीगंज होते हुए आगे बढ़ती है। किरायेदारों को निकलवाने के चक्कर में और महल को लेने के लिए आर्कियोलॉजिस्ट, वकील और बिल्डर सब पहुंच जाते हैं।
शूजित सरकार जिस चीज़ के लिए जाने जाते हैं फिर आगे वही होता है। अचानक पता चलता है कि बेगम तो भाग गई हैं। बेगम अपने पहले पति अब्दुल रहमान के पास भाग जाती हैं। हवेली की मल्कियत का सपना मिर्ज़ा का टूट जाता है। महल तो उसे मिला नहीं, बस महल की एक कुर्सी उसके हाथ आती है।
बेगम के भागने से एक बात पता चलती है कि औरत किसी भी उम्र में भाग सकती है। यानी किसी भी उम्र में नई ज़िंदगी की शुरुआत की जा सकती है। मन का साथी जिस उम्र में मिले, भाग लो।
फिल्म थोड़ी स्लो है लेकिन कहानी बहुत मज़बूत है
स्लो होने के बावजूद फिल्म की कहानी बेहद शानदार तरीके से लिखी गई है। साथ ही लखनऊ को बहुत प्यारे ढंग से शूट किया गया है। एक्टिंग को आयुष्मान और अमिताभ ने बहुत खूबसूरती के साथ निभाया है।
मिर्ज़ा की एक्टिंग और आवाज़ शायद ही अमिताभ बच्चन से ज़्यादा बेहतर कोई कर सकता था। बेगम ज़्यादा पर्दे पर आई नहीं लेकिन सबसे चतुर बेगम ही निकलीं।
कम समय में ही बेगम ने कमाल करके दिखाया है। आर्कियोलॉजिस्ट, वकील और आयुष्मान की तीनों बहनों ने भी बहुत अच्छा काम किया है।