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लोकतंत्र के गढ़ अमेरिका में काले लोगों के साथ क्यों होता है भेदभाव?

Black Lives Matter

दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका आज दोहरी मार झेल रहा है। एक तरफ अमेरिका में जहां कोरोना वायरस के कारण एक लाख से अधिक मौतें हो चुकी हैं, वहीं दूसरी ओर वहां बहुत सारे शहरों में भारी हिंसक विरोध प्रदर्शन, लूट और आगजनी हो रही है। इन हिंसक प्रदर्शनों के पीछे का कारण यह है कि हाल ही में जॉर्ज फ्लॉयड नाम के एक व्यक्ति जिनका रंग काला था, उनकी हत्या काले लोगों के प्रति पूर्वाग्रह की वजह से अमेरिकी पुलिस अधिकारियों द्वारा कर दी गई।

इसकी वजह से वहां के काले अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों में काफी असंतोष फैल गया है। उन्हें लगा कि वे अपने ही देश में खुलकर सांस नहीं ले पा रहे हैं और इस विश्वव्यापी महामारी के दौरान भी बड़ी संख्या में लोगों ने प्रदर्शन किया। इसके चलते वहां चालीस से अधिक शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है जबकि सात हज़ार से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

अमेरिका में विरोध प्रदर्शन करते लोग (फोटो साभार: पिक्साबे)

क्या है पूरा मामला

जॉर्ज फ्लॉयड नाम का एक अफ्रीकी-अमेरिकी व्यक्ति जिनकी उम्र लगभग 46 वर्ष थी। वह मिनेसोटा राज्य के मिनियापोलिस शहर का निवासी थे। जॉर्ज फ्लॉयड एक दुकान पर सिगरेट खरीदने के लिए जाते हैं, वहां सिगरेट के लिए दुकानदार को 20 डॉलर देते हैं। 20 डॉलर के नोट को देखकर दुकानदार को लगता है कि यह नोट नकली है।

इस शक के आधार पर वह दुकानदार पुलिस को फोन करता है। पुलिस वहां पहुंचती है और जॉर्ज फ्लॉयड से बात-चीत करती है, उन्हें पुलिस स्टेशन आने को कहती है। जब पुलिस जॉर्ज फ्लॉयड को पुलिस स्टेशन ले जा रही होती है तब उनके साथ बहुत ज्यादा मार-पीट करती है। इसी बीच उन्हें एक जगह सड़क पर लेटाकर एक श्वेत पुलिस अधिकारी उनकी गर्दन को अपने घुटने के बल से काफी देर तक दबा देता है। जिसके चलते जॉर्ज फ्लॉयड की मौत हो जाती है।

जॉर्ज फ्लॉयड मरने से पहले लगातार पुलिस अधिकारी से बोल रहे होते हैं, “आई कांट ब्रीद”, यानी मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं। लेकिन श्वेत- श्रेष्ठता की मानसिकता से ग्रसित इस पुलिस अधिकारी ने जॉर्ज फ्लॉयड की गर्दन को तब तक दबाए रखा जब तक उन्होंने सांस लेना बंद नहीं कर दिया।

जॉर्ज फ्लॉयड

श्वेत-श्रेष्ठता वाली मानसिकता का इतिहास क्या है?

अमेरिका में काले लोगों के साथ भेदभाव कोई नई बात नहीं है। वहां पर अक्सर काले लोगों के साथ भेदभाव होता रहता है। वहां पर हमेशा से गोरे अपने आप को काले लोगों से श्रेष्ठ मानते आए हैं। अमेरिका में काले लोग अफ्रीका से आए हुए वे लोग हैं जिन्हें गुलाम बनाकर अमेरिका में लाया गया था और अंग्रेज कोलोनिस्ट को बेच दिया गया था।

इन गुलामों ने आगे चल कर अपनी मेहनत से अमेरिका को बनाया और हर प्रकार से कड़ी मेहनत की। नील, कपास, गन्ना सब तरह के फसलों की पैदावार की। सन् 1662 में वर्जिनिया कानून के तहत गुलामी को वंशानुगत कर दिया गया यानी कौन-सा बच्चा गुलाम होगा और कौन-सा बच्चा आज़ाद होगा यह उसकी माँ के स्टेटस से तय होगा।

इसके बाद सन् 1776  में अमेरिका को अंग्रेज़ों से आज़ादी मिली और अमेरिका का अपना एक संविधान बना। इसमें सब लोगों को समानता का दर्ज़ा दिया जाता है लेकिन इस समानता के दर्ज़े से गुलामों को बाहर रखा गया ताकि अमेरिका की सुंदरता और सम्पन्नता बरकरार रहे। ऐसा भेदभाव होते-होते 1865 आ जाता है। सन् 1865 में अमेरिका में 13 वां संविधान संशोधन होता है और गुलामी की प्रथा का खात्मा हो जाता है।

क्या हैं वर्तमान के हालात

ऐसा नहीं है कि बीते 155 सालों में अमेरिका में कुछ नहीं बदला है। वहां के अफ्रीकी-अमेरिकी लोगों को राजनितिक, सामजिक, आर्थिक अधिकार मिले हैं। इन लोगों को मुख्या धारा में आने का मौका मिला है और लोग आगे आए भी हैं। काले लोगों ने अमेरिका को विकसित देश बनाने में बहुत बड़ा योगदान भी दिया है।

बराक ओबामा जो कि एक काले व्यक्ति थे, वे अमेरिका के राष्ट्रपति भी रह चुके हैं। 13वें संविधान संशोधन के बाद अमेरिका के काले लोगों की स्थिति में बदलाव ज़रूर आया लेकिन ऐसा नहीं है कि इसमें सब लोग समान हो गए। अमेरिका में अभी भी अश्वेत लोगों के इलाके अलग होते हैं। स्कूल अलग होते हैं। बच्चे अलग होते हैं।

अमेरिका में हो रहे हैं विरोध प्रदर्शन

अमेरिकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा है श्वेत-श्रेष्ठता की मानसिकता से ग्रसित

आज भी अमेरिकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा श्वेत-श्रेष्ठता की मानसिकता से ग्रसित है। आज भी वहां काले लोगों के प्रति पूर्वाग्रह आम बात है। वहां के काले लोगों को आसानी से अपराधी समझ लिया जाता है। पूर्वाग्रह इस कदर प्रभावी है कि हाल ही में कुछ समय पहले मिनेसोटा में तालाबंदी को खत्म करने को लेकर कई लोग हाथ में मशीन गन लेकर स्टेट कैपिटल बिल्डिंग में घुस गए थे तब पुलिस ने उनके साथ कोई सख्ती नहीं की।

लेकिन कुछ समय बाद ही उसी जगह जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या को लेकर प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ काफी सख्ती बरती जा रही है। आंसू गैस के गोले और रबर की गोलियां चलाई जा रही हैं।

इससे पूर्व में 2014 में एरिक गार्नर नाम के एक व्यक्ति जो कि एक अफ्रीकी-अमेरिकी थे, उनकी हत्या भी  पुलिस अधिकारियों ने काले लोगों के खिलाफ पूर्वाग्रह की वजह से ही की थी। उस वक्त भी, जब पुलिस अधिकारियों ने एरिक गार्नर का गाला दबाया था तो वो बोल रहे थे मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं, “आई कांट ब्रीद” और देखते ही देखते उन्होंने भी दम तोड़ दिया था।

राष्ट्रपति ट्रंप का रवैय्या रहा है काफी निराशाजनक

उधर ‘अमेरिका फर्स्ट’, ‘अमेरिका फॉर अमेरिकन’ और ‘अमेरिका को फिर से महान बनाना है’ जैसे नस्लीय नारे देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का रवैया इस पूरे घटनाक्रम में काफी निराशाजनक रहा है। उनका मानना है कि ये प्रदर्शन किसी घटना की वजह से नहीं हो रहे हैं, बल्कि यह ट्रम्प सरकार के खिलाफ जालसाजी है ताकि उनकी छवि खराब की जा सके। ये सभी प्रदर्शन संगठित तरीके से उनके खिलाफ किए जा रहे हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप इस समस्या को शांतिपूर्वक सुलझाने की बजाय उल्टा प्रदर्शनकारियों को भड़काने का काम कर रहे हैं। वो उल्टे-सीधे बयान देकर आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। इसी चीज़ को मद्देनज़र रखते हुए ह्यूस्टन पुलिस चीफ ने बयान दिया कि राष्ट्रपति जी अगर कुछ रचनात्मक नहीं कर सकते, तो कृपया वो शांत रहें।

काले और श्ववेत लोग मिलकर कर रहे हैं विरोध

आखिर में पूरे प्रदर्शन में सबसे अच्छी चीज़ जो देखने को मिली वो यह कि इस प्रदर्शन में केवल काले लोग ही नहीं हैं, बल्कि श्वेत लोग भी काले लोगों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़े हैं।

ये सब लोग स्वतंत्रता, समानता, न्याय, बंधुता जैसे मूल्यों के साथ लोकतंत्र के पक्ष में मज़बूती से खड़े हैं। कई श्वेत समुदाय के लोगों ने काले समुदाय के लोगों के सामने घुटने टेककर नस्लीय दुर्व्यवहार के लिए उनसे माफी भी मांगी। शायद अमेरिका को इसी तहज़ीब, ऐसे ही संस्कारों और मूल्यों की वजह से महान कहा जाता है।

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