पूरा विश्व एक तरफ वैश्विक महामारी की चपेट में है लेकिन भारत में हर मुद्दे पर भारी है चुनाव और राजनीतिक लाभ। देशभर में तमाम राज्यों में कोरोना संकट अपने चरम पर पहुंच रहा है। बिहार भी उनमें से एक है।
हाल ही में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बिहार में वर्चुअल रैली को संबोधित किया। गौरतलब है कि इसे बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है। जिसके बाद से बिहार के राजनीतिक गलियारे में हलचल शुरू हो गई है।
प्रवासी मज़दूरों पर चुप्पी लेकिन रैली में पानी की तरह बहा पैसा
बिहार में इस वक्त कोरोना संक्रमण के 5583 मामले सामने आ चुके हैं। अन्य राज्यों से करीब 17 लाख प्रवासी मज़दूर अपने गृह राज्य बिहार पहुंचे हैं। इसके बाद से संक्रमण की दर में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अप्रैल में कोरोना संकट के शुरूआती दौर में केंद्र सरकार ने बिहार सरकार को 147 करोड़ रुपये की सहायता राशि दी थी लेकिन बीते दिनों हुई वर्चुअल रैली के लिए 72 हजार एलईडी लगवाने में ही लगभग 144 करोड़ रुपए खर्च करने का अनुमान लगाया जा रहा है।
बिहार में फिर से एनडीए गठबंधन का चेहरा होंगे नीतीश कुमार
अपनी वर्चुअल रैली में अमित शाह ने एक बार फिर नीतीश कुमार पर भरोसा जताया है। केंद्रीय गृह मंत्री ने बिहार में एनडीए गठबंधन की सरकार की तारीफों के पुल बांधें।
उन्होंने कहा कि एनडीए ने बिहार को जंगल राज से जनता राज तक पहुंचाया है। एनडीए अगला चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में दो तिहाई बहुमत के साथ जीतेगा।
विपक्ष द्वारा रैली का विरोध करने पर उन्होंने तंज किया और रैली के राजनीतिक होने से इन्कार किया। 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा चुनाव में इसी साल होने हैं। कोरोना संक्रमण के दौर में चुनाव कैसे संपन्न होंगे ये भी एक बड़ी चुनौती है।
सबसे बड़ा प्रश्न रैली की ज़रूरत क्या थी?
अमित शाह इस वर्चुअल रैली के राजनीतिक होने को लेकर चाहे जितना बचाव करें, मगर एक सवाल अभी भी बना हुआ है कि आखिर इस रैली की ज़रूरत क्या थी?
बिहार में क्वारंटाइन सेंटरों की स्थिति बदत्तर है। देश भर में कोरोना संक्रमण के मामले में ढाई लाख से अधिक हो चुके हैं। ऐसे में करोड़ों रुपये खर्च करके वर्चुअल रैली करना कितना उचित है? यदि इसके पीछे राजनीतिक कारण नहीं है, तो क्या कारण है?