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“समाज की नज़र में एक कमज़ोर पिता ही बेटी के लिए बेस्ट पापा होते हैं”

पिता शब्द सामने आते ही मन में बड़ी ही प्यारी छवि उभरती है। पिता, जिन्हें बच्चों की खुशियों और ज़रूरतों को पूरा करने वाला बताया गया है। अत: एक पिता हर संभव प्रयास करता है कि वो अपने बच्चे को खुश रख सके।

हालांकि यह हर मामले में नहीं होता है, क्योंकि हर किसी के अनुभव अलग होते हैं। सबका अपना-अपना परसेप्शन का तरीका होता है।

पिता एक पुरुष जिनके सर पर ज़िम्मेदारियों का आसमान

एक पुरुष जब पिता है, तब उसके सर पर ज़िम्मेदारियों का आसमान होता है। उसके लिए बच्चे की खुशियां प्रायॉरिटी में शामिल हो जाती हैं मगर कभी-कभी इन्हीं ज़िम्मेदारियों के कारण पिता अपने ही बच्चों से दूर होते चले जाते हैं। यानी आपसी बातचीत का अभाव होने लगता है।

एक बेटी के लिए उसके पिता सबसे बेस्ट पिता हो सकते हैं मगर वही पिता किसी अन्य बच्ची के लिए गलत भी हो सकते हैं। एक बेटी चाहती है कि उसके पिता अपनी बेटी के लिए लड़ें और समाज की बंदिशों को तोड़कर बेटी के लिए आवाज़ उठाएं।

मेरी नज़र में पिता की छवि

सौम्या ज्योत्स्ना।

मेरे लिए एक पिता की छवि ऐसी होनी चाहिए, जहां उम्र के बंधनों को साइड में रखकर एक बेटी अपने पिता से खुलकर बात कर सके। पिता भी पुरुष होने से पहले एक पिता की तरह सोचें।

पिता के लिए ज़रूरी है कि वो अपनी बेटी से किए वादे समाज के झूठे आवरण में तोड़ ना दें। मेरा मानना है कि समाज के लिए मिसाल कायम करते हुए अपनी बेटी के हक के लिए लड़ सकें।

एक बेटी भी अपने पिता की ज़िम्मेदारियों को बखूबी समझे और उन पर अमल करे। ज़रूरत पड़ने पर डांट भी लगाए और अच्छा करने पर प्रोत्साहित भी करे।

जब एक पिता समाज के दिखावे के फेर में पड़कर अपनी बेटी की खुशियों को रौंद डालते हैं, उस वक्त पिता द्वारा बचपन में किए गए सारे वादे बेमानी लगने लगते हैं, क्योंकि प्रहार सीधा भरोसे पर होता है। वही भरोसा, जो एक बेटी अपने पिता पर कर लेती है मगर इन्हीं पिता को समाज प्रेरणास्त्रोत बना देता है, क्योंकि उन्होंने समाज की बातों को सर्वोपरि रखा है।

बेटी की नज़र में अच्छे पिता समाज की नज़र में कमज़ोर

दूसरी ओर एक पिता अपनी बेटी की खुशियों को ज़्यादा अहमियत देते हैं। उस वक्त वो अपनी बेटी की नज़र में अच्छे पिता की छवि महसूस करते हैं लेकिन समाज के लिए वो कमज़ोर माने जाते हैं। 

दरअसल, यह केवल दो सोच में उपजी भिन्नता है मगर यह रिश्ते को प्रभावित करती है। चाहे वह सामाजिक रिश्ता हो या पारिवारिक।

ऐसे में रिश्तों की अहमियत करना और एक-दूसरे की खुशियों को तव्जजो देना ज़रूरी होता है। हर पिता को सभी हालातों को सामने रखकर अपने बच्चों की खुशियों के लिए निर्णय लेना चाहिए।

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