दिल्ली के अस्पताल केवल दिल्ली वालों के लिए नहीं हैं। इनमें दिल्ली के बाहर रहने वाले लोग भी इलाज करवा सकते हैं। दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने केजरीवाल सरकार के फैसले को पलट दिया है। केजरीवाल सरकार ने तय किया था कि कोरोना संकट में दिल्ली के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली वालों का ही इलाज होगा।
इलाज में ना हो किसी तरह का कोई भेदभाव: अनिल बैजल
उपराज्यपाल ने दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) के चेयरमैन होने की हैसियत से संबंधित विभागों और प्रशासन को निर्देश दिया है कि बाहरी राज्य के किसी भी व्यक्ति को इलाज से मना ना किया जाए। उपराज्यपाल के इस फैसले से दिल्ली के बाहर के उन कोरोना मरीज़ों और उनके परिवारों को राहत मिलेगी, जो महामारी के दौरान इलाज की मांग कर रहे हैं।
अनिल बैजल ने अपने पहले आदेश में स्पष्ट किया कि उच्चतम न्यायालय ने कई फैसलों में कहा है कि स्वास्थ्य का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन के अधिकार का एक अभिन्न अंग है। उपराज्यपाल ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थित सभी सरकारी और निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम और क्लीनिकों को दिल्ली के निवासी या गैर-निवासी के बीच किसी तरह के भेदभाव के बिना सभी कोरोना संक्रमित रोगियों का इलाज करना है।
उन्होंने अपने दूसरे आदेश में केवल लक्षण वाले रोगियों के लिए कोरोना वायरस की जांच के आप सरकार के आदेश को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि आईसीएमआर द्वारा निर्धारित सभी नौ श्रेणियों के लोगों की राष्ट्रीय राजधानी में जांच की जानी चाहिए।
केजरीवाल ने जताई चिंता
अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल के फैसले पर चिंता जताते हुए कहा कि देशभर से आने वाले लोगों के लिए करोना महामारी के दौरान इलाज करना एक बड़ी चुनौती जैसा है।
केजरीवाल ने ट्वीट किया, “LG साहब के आदेश ने दिल्ली के लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या और चुनौती पैदा कर दी है। देशभर से आने वाले लोगों के लिए करोना महामारी के दौरान इलाज का इंतज़ाम करना बड़ी चुनौती है। शायद भगवान की मर्ज़ी है कि हम पूरे देश के लोगों की सेवा करें। हम सबके इलाज का इंतज़ाम करने की कोशिश करेंगे।”
LG साहिब के आदेश ने दिल्ली के लोगों के लिए बहुत बड़ी समस्या और चुनौती पैदा कर दी है
देशभर से आने वाले लोगों के लिए करोना महामारी के दौरान इलाज का इंतज़ाम करना बड़ी चुनौती है।शायद भगवान की मर्ज़ी है कि हम पूरे देश के लोगों की सेवा करें।हम सबके इलाज का इंतज़ाम करने की कोशिश करेंगे
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) June 8, 2020
वहीं आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाते हुए कहा कि उपराज्यपाल अनिल बैजल ने यह फैसला बीजेपी के दबाव में लिया है।
दिल्ली सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले की दिल्ली के सांसद गौतम गंभीर और कुमार विश्वास ने कड़ी आलोचना की। उधर कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी ट्वीट कर केजरीवाल के फैसले की कानूनी वैधता पर सवाल उठाए।
क्या था दिल्ली सरकार का आदेश
बीते रविवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया था कि दिल्ली के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में केवल दिल्ली के निवासियों का ही इलाज होगा। जबकि दिल्ली में स्थित केंद्र सरकार के अस्पतालों में सभी का इलाज होगा। कोरोना के बढ़ते मामलों के मद्देनजर दिल्ली कैबिनेट ने यह फैसला लिया था।
मुख्यमंत्री का कहना था कि दिल्ली में जून के अंत तक 15 हजार कोरोना के मरीज़ों के लिए बेड की ज़रूरत होगी। विशेषज्ञों की समिति की एक रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने यह फैसला लिया था कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली के लोगों का ही इलाज होगा।
कौन-से गैर-दिल्लीवासी भी करवा सकते थे इलाज
सरकार के आदेश अनुसार, ऑन्कोलॉजी, प्रत्यारोपण, न्यूरो-सर्जरी से संबंधित उपचार गैर-दिल्लीवासियों के मान्य था। इसके अलावा, सड़क दुर्घटना से ग्रस्त कोई भी मरीज़ और दिल्ली एनसीआर में होने वाले एसिड-अटैक के सभी रोगियों के लिए अस्पताल खुले रहतें। भले ही वें दिल्ली निवासी हो या ना हो।
इस फैसले पर दिल्ली सरकार ने लोगों से अपनी प्रतिक्रिया मांगी थी। केजरीवाल ने बताया, “लगभग 2 लाख लोगों ने हमें प्रतिक्रिया दी थी कि दिल्ली के सरकारी अस्पतालों को दिल्ली के लोगों के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए, जबकि केंद्र के अस्पताल हर किसी के लिए खुले रहें।”
क्या दिल्ली सरकार का यह फैसला वैधानिक था?
दिल्ली सरकार के फैसले के पीछे की वैधता पर कई सवाल उठाए गए। यह आदेश ‘महामारी रोग अधिनियम’ के तहत जारी किया गया था, जो सरकार को अपने राज्य में काम करने की शक्ति देता है। यह फैसला सरकार के अनुसार, इस महामारी के दौर में फिट बैठता है इसलिए इस फैसले को गैर-कानूनी नहीं बताया जा सकता है।
हालांकि उपराज्यपाल अनिल बैजल संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ही इस दिल्ली सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक बताया था।
कोरोना में क्या है दिल्ली का हाल
सराकारी आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में सोमवार को कोरोना वायरस के 1,007 नए मरीज़ सामने आए। इसके बाद राष्ट्रीय राजधानी में संक्रमितों की संख्या करीब 30 हजार तक पहुंच गई, जबकि संक्रमण ने अब तक 874 लोगों की जान ले ली है।
एक विशेषज्ञ समिति के अनुसार दिल्ली में जून महीने के अंत तक करीब 15,000 बेडों की आवश्यकता होगी क्योंकि तब तक कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़कर एक लाख तक पहुंचने की आशंका है। दिल्ली सरकार को सौंपी अपनी एक रिपोर्ट में एक विशेषज्ञ समिति ने यह आशंका जताई है।
इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के कुलपति महेश वर्मा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समिति का गठन दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने किया था और इसने शनिवार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी।