मै पुष्पा ठाकुर, मुझे इतना ही याद है जब मैं छोटी थी तब मम्मी के बिना अकेले नहीं सो पाती थी | फिर मुझे पीरियड होने लगे तो मां ने मुझे अलग से सोने के लिए व्यवस्था की सबसे दूर कमरे के एक कोने में| मैं वह 3 दिन बहुत रोती थी इस तरह अकेले रोना मुझे बहुत और खुद का अलग रहना गंदा लगता था| मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मेरे साथ यह क्या हो रहा है दिन भर खुद को अकेला महसूस करती जब मैं स्कूल जाती तो पढ़ाई लिखाई को छोड़कर हमेशा अपने कपड़ों का ध्यान देती| ऐसा लगता कि एक दाग कहीं मेरी हंसी का कारण न बन जाए| अभी वर्तमान में लॉक डाउन के कारण परिवार के सभी सदस्य घर में रहते हैं और हमारे समाज के अनुसार महिलाएं पुरुषों के सामने माहवारी का नाम तक नहीं लेती| ऐसे में सबसे बड़ा डर कि सारे लोगों के बीच अपने आप को ऐसे संभाल करके रखना, किसी को पता ना चले की मुझे माहवारी है, बहुत मुश्किल काम होता है मुझे नहीं पता कि सारे लोग महावारी को इतना गंदा क्यों मानते हैं| शुरू में मां ने जब मुझे बताया कि इन दौरान मुझे सबसे अलग रहना है, दूर रहना है, किचन में नहीं जाना है, घर की कुछ चीजों को नहीं छूना है, मुझे ऐसा लगता कि शायद में कहीं किसी पाप का कारण न बन जाऊं| बहुत समय तक ऐसे ही डर डर के रहने लगी, मुझे हमारे स्कूल में बालिका शिक्षा कार्यक्रम से जुड़ने के बाद धीरे-धीरे इन सारी धारणाओ वाली चीजों से दूर होने का मौका मिला| मैं यह समझ पाई यह सारी लोगों की धारणा है जिनका वास्तविकता से कोई मतलब नहीं| सारे समाज के लोग दोगला व्यवहार करते है हमारे साथ, इसे समाप्त होना चाहिए| मै धन्यवाद देती हूँ रूम टू रीड को कि मुझे यह समझ मिली।