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“लड़कियों के कपड़े पहनने पर मुझे हिजड़ा और छक्का बुलाया जाता था”

“मैं जन्म के समय दुर्भाग्यवश एक लड़का थी मगर सिर्फ और सिर्फ शरीर से! अंतर्मन से सिर्फ एक लड़की। मुझे तो जन्म के समय का कोई होश नहीं है लेकिन जब मैं 7 साल की थी। यानी कि जब से मैंने होश संभाला तो मैंने कभी खुद को लड़का नहीं माना।

दरअसल मेरे घर में मेरी तीन बहनें हैं और चौथी मैं पैदा हुई। तीन लड़कियों के बाद जब मेरे पिताजी और दादी ने यह खबर सुनी कि वे एक लड़के के बाप बन गए ,तो पूरे चॉल में मोदक बंटे।

परिवार द्वारा बप्पा की बहुत बड़ी-पूजा अर्चना की गई। बस शरीर के एक अंग ने मेरे पेरेंट्स को इतना बदल दिया था कि वे एकदम हताश व्यवहार से तब प्रफुल्लित हो रहे थे।

क्या महज़ लिंग से बदलाव आ सकता है?

एक लिंग लोगों को दुःखी भी कर सकता है और खुश भी। यह कैसी विचारधारा है? मैं तो अब स्तब्ध हो जाती हूं यह सोच-सोचकर और देख-देखकर कि ब्रह्मांड के रचियता ने जो आपको नवाज़ा है. आप उसको सिर्फ एक नज़रिये से देखते हैं। आप लिंग के आधार पर निर्धारित करेंगे कि आपको खुश होना है या दुःखी, कमाल है।

मेरी आवाज़ बहुत बारीक थी, मैंने इस बात के लिए स्कूल से ही शोषण झेला। सच यही है कि मैंने एक लड़के के शारीरिक खोल में एक लड़की की आत्मा को जिया है।

मैंने अपने जननांगों को हमेशा चोट पहुंचाई है। हमेशा उसको प्रताड़ित किया, क्योंकि यही एक वजह थी जिसने मुझे लड़का और लड़की होने के लिंग में बांटा। यही हर होने वाली असमानता का आधार था।

मैंने आंखों में काजल लगाया तो मैं नचनिया बना दी गई। मैंने अपने पसंद के कपड़े पहने तो मुझे हिजड़ा और छक्का बनाया गया। खैर, मुझे इन शब्दों से कोई झिझक और नफरत नहीं है, क्योंकि मैं सिर्फ और सिर्फ एक लड़की हूं। मैंने घर छोड़ दिया है, जहां जेंडर डिस्क्रिमिनेशन हो, वहां मैं एक पल रुकना भी नहीं पसंद करूंगी। 

मेरे संघर्ष की कहानी

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

मैंने बहुत संघर्ष किया, स्टेशन पर बैठकर बच्चों के बाल काटे और पटरी पर पड़े हुए मल मूत्र को साफ किया। उसके बाद मुझे एक पत्तल पर दो पूड़ी और सब्ज़ी मिलती थी। पेट की पूजा तो दिन में हो जाती थी लेकिन रात में पुरुष मुझे परेशान करते थे। अकसर मेरा शारीरिक शोषण करने की कोशिश करते थे।

मैं अंदर से लड़की थी तो पुरुषों के लिए आकर्षण होना लाज़मी था लेकिन मैंने कभी शारीरिक सम्बंधों को अपनी मर्यादा के इतर नहीं समझा। मैंने सेक्स को कभी वरीयता नहीं दी।

लोगों की वजह से मैं घबराकर थाने चली जाती थी। वहां भी मुझे उस नज़रिये से देखा जाने लगा। आखिरकार मुझे पुल के नीचे एक टूटी हुई झुग्गी मिली, जो बारिश की वजह से ढह गई थी मगर सर पर छत मिल गई।

दरअसल, मैं उनके कर्कश रूखे होठों को लाल सुर्ख रंगों की लिपस्टिक से रंग देती थी। उनको अपने होठों को रंगवाना और फेस पर पाउडर लगाना ऐसा लगता था, मानो वह उस बस्ती की मलिका हो।

बहरहाल, मुझे एक परिवार मिल गया था। मैंने दूरस्थ शिक्षा से बारहवीं की और ग्रैजुएशन के लिए इग्नू में दाखिला लिया।

मैं राजीव से सोनाली बनकर मेकअप आर्टिस्ट बनने की राह पर

मैं अपनी कमाई खुद करती हूं। मुझे शुरू से ही मेकअप करने का शौक था। किसी भी चीज़ को सुंदर बनाना मुझे अच्छा लगता है। इसलिए मैंने मेकअप आर्टिस्ट बनने का फैसला किया और आज मैं एक नामी ब्रांड के साथ ट्रेनिंग पर हूं।

एक और बात सबके साथ साझा करना चाहती हूं। रापचीक मुंबईया भाषा में “ज़िन्दगी गुज़रेली है अपुन की, तो किस बात की टेंशन लूं?, कांदा और बैदा है ना खाने को फिर काये कू बनकस करेला हैं, मौज ले।”

बहरहाल, समाज में ऐसी बहुत सी सोनाली होंगी और राजीव होंगे, जिनका खुद के लिए संघर्ष जारी होगा। हमने इनकी मदद के लिए सामने आना होगा।

हमें समाज को समावेशी बनाना करना है। वे भी जान और जिस्म रखते हैं। एक तरफ आप कुत्ते और बिल्ली को अपनी सर आंखों पर बैठाकर रखते हैं और दूसरी तरफ आप होमोफोबिया को बढ़ावा भी देते हैं। यह अन्याय है, सरासर शोषण है। इस शोषण को खत्म करना ही होगा।

नोट: यह स्टोरी YKA यूज़र इमरान द्वारा सोनाली से बातचीत के आधार पर लिखी गई है।

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