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क्या आपको पता है अधिकांश युवाओं को पीरियड्स की पहली जानकारी कैसे मिलती है?

Menstrual Hygiene Day

Menstrual Hygiene Day

Youth Ki Awaaz और WSSCC (Water Supply and Sanitation Collaborative Council) द्वारा ‘मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे’ के मौके पर 28 मई को माहवारी से संबंधित एक रिपोर्ट जारी की गई।

रिपोर्ट के मुताबिक, 49 प्रतिशत युवाओं का मानना है कि स्कूलों में पीरियड्स के बारे में और बेहतर तरीके से बताया जाना चाहिए था। वहीं, 90.1 प्रतिशत युवा मानते हैं कि पीरियड्स के दौरान कुछ चीज़ों पर पाबंदियां होनी चाहिए।

सर्वे में एक बात यह भी निकलकर सामने आई कि 90 प्रतिशत लड़कियां माहवारी के दौरान किसी ना किसी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं का सामना करती हैं।

जबकि 43.36 प्रतिशत युवाओं ने कहा कि पीरियड्स के बारे में उन्हें पहली जानकारी माँ से मिली है। बहरहाल, सर्वे के माध्यम से सामने आए तथ्यों पर फेसबुक लाइव के ज़रिये सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट्स के साथ चर्चा की गई।

माहवारी के संबंध में 54 प्रतिशत ही पुरुष फैमिली से बात करते हैं

काबूम सोशल इम्पैक्ट की निर्देशिका निर्मला नायर, मायना महिला फाउंडेशन से सुहानी जलोटा, Youth Ki Awaaz की हेड ऑफ प्रोग्राम्स किरत सचदेवा, Youth Ki Awaaz एक्शन नेटवर्क फेलो शालिनी झा और प्रोजेक्ट खेल की एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर अंगना प्रसाद।

फेसबुक लाइव को होस्ट रही थीं Youth Ki Awaaz की हेड ऑफ प्रोग्राम्स किरत सचदेवा। उनके साथ पैनल में मौजूद थीं प्रोजेक्ट खेल की एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर अंगना प्रसाद, काबूम सोशल इम्पैक्ट की निर्देशिका निर्मला नायर, Youth Ki Awaaz एक्शन नेटवर्क फेलो शालिनी झा और मायना महिला फाउंडेशन से सुहानी जलोटा।

चर्चा की शुरुआत करते हुए किरत सचदेवा ने Youth Ki Awaaz और WSSCC द्वारा मेंस्ट्रुअल हाइजीन मैनेजमेंट पर किए गए सर्वे के आंकड़ों को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि सर्वे में तमाम आंकड़ों के साथ-साथ यह बात भी सामने आई है कि अधिकांश पुरुष, इंटरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिये पीरियड्स से संबंधित जानकारी प्राप्त करते हैं। जबकि 54 प्रतिशत ही पुरुष इस बारे में फैमिली से बात करते हैं।

पीरियड्स के मसले को नॉर्मलाइज़ कैसे किया जाए?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

पीरियड्स के मसले को कैसे नॉर्मलाइज़ किया जाए, इस बारे में उन्होंने पैनल में मोजूद निर्मला नायर और अंगना प्रसाद से उनकी राय ली। इस पर निर्मला ने कहा, “स्कूलों और लड़कियों के बीच माहवारी को लेकर काफी बातें होती हैं लेकिन सोशल स्टिगमा का बोलबाला रहता ही है। बेहद ज़रूरी है कि इस बारे में माओं और समाज के लोगों से बात की जाए।”

अंगना ने इस पर कहा, “लड़कियों को पीरियड्स के बारे में मिसइनफॉर्मेशन और हाफ इनफॉर्मेशन मिलती है।मिसइनफॉर्मेशन में कहा जाता है कि पेट में अंडा फूटता है इसलिए पीरियड्स होता है। उनसे इस बारे में पूछे जाने पर वे कहती हैं कि मम्मी ने बताया है या हमने सुना है।”

अंगना कहती हैं, “लड़कियों का शरीर कोई नाला नहीं है कि गंदा खून निकलता है। मिसइनफॉर्मेशन को सबसे पहले तो फैक्ट्स के साथ काउंटर करने की ज़रूरत है। महिलाएं यह भी कहती हैं कि पीरियड इज़ माय सुपरपावर। जबकि यह कोई सुपरपावर नहीं, बल्कि एक नॉर्मल प्रक्रिया है।”

कैसे फैलता है मिसइनफॉर्मेशन?

प्रतीकात्मक तस्वीर।

इसी संदर्भ में बात करते हुए शालिनी कहती हैं, “मिसइनफॉर्मेशन माओं से ही फैलता है। वहीं, डिसक्रिमिनेशन और सोशल टैबूज़ का भी बड़ा कारण सायलेंस है।”

मिसइनफॉर्मेशन ना फैले इसके लिए पॉलिसी लेवल पर क्या किया जाए और इसे रोकने के लिए स्कूलों की भूमिका क्या हो? इस बारे में अंगना कहती हैं, “पीरियड्स के बारे में हम जब भी कोई वर्कशॉप करते हैं तो चुनौती यह आती है कि लोग बात नहीं करना चाहते हैं, जिस पर काम करने की ज़रूरत है।”

वो आगे कहती हैं, “स्कूल में इसे लेकर बात करने की ज़रूरत है। खासकर स्कूलों मे टिचर्स माहवारी के बारे में बात ही नहीं करते हैं। अगर हमें बार-बार बताया जा रहा है कि पीरियड्स का खून गंदा है तो हमें लगेगा कि हमारे साथ भेदभाव हो रहा है। सिर्फ फैक्चुअली करेक्ट होने से नहीं होगा। हमें हर स्तर पर टैबूज़ और मिसइनफॉर्मेशन का काउंटर करना होगा। कई लोग आस्था के नाम पर डराते हैं तो हमें उनसे उसी तरह बात करने की ज़रूरत है।”

निर्मला कहती हैं, “हम कई बार लड़कियों से पीरियड्स के बारे में जब बात करते हैं, तो वे कहती हैं कि हमें सब पता है लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि खून आता कहां से है? एज़ अ गर्ल जब हमको यह पता ही नहीं है, तो सशक्तिकरण कैसे होगा?”

सुहानी कहती हैं कि स्लम्स और स्कूल्स में पहले पीरियड के बारे में लड़कियों को जानकारी ही नहीं होती है। इसलिए ज़रूरी है कि पहले पीरियड से पहले ही उन्हें इस बारे में जानकारी मिलनी चाहिए।

मेंस्ट्रुअल हाइजीन की चर्चा के बीच महिला स्वास्थ्य का मुद्दा कहीं गुम हो जाता है

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

सुहानी कहती हैं, “मेंस्ट्रुअल हाइजीन मैनेजमेंट के संदर्भ में हाइजीन पर तो बात होती है मगर महिला स्वास्थ्य के बारे में कोई बात नहीं होती है। हम जब मेंस्ट्रुअल हाइजीन की बात करते हैं, तो पैडमैन का ज़िक्र होता है, जो नैपकिन बेचने को प्रमोट करता है। लोगों को लगता है कि प्रॉब्लम सॉल्व हो गई है। हमें समझना होगा कि यह सिर्फ एक्ससे टू नैपकिन है मगर समस्याएं कई हैं, हेल्थ इशूज़ को लगातार इग्नोर किया जाता है। महिलाएं पीरियड्स के दौरान जिन समस्याओं का सामना करती हैं, उन्हें गुप्त रखने के लिए कहा जाता है।”

इस दौरान दर्शकों में से निधी राहुल गौतम पूछती हैं, भारत में मज़बूत धार्मिक मान्यताओं के बीच बगैर लोगों की धार्मिक भागवनाओं को आहत किए कैसे उन्हें एजुकेट करें?” इस सवाल का जवाब देते हुए सुहानी कहती हैं, “मुस्लिम समुदाय के लोग कहते हैं कि पीरियड्स के दौरान कुरान नहीं पढ़ना चाहए। ऐसे में ज़रूरी है कि हम उन्हीं के धर्मगुरुओं के ज़रिये इसकी सच्चाई उन्हें बताएं।”

वहीं अमित झा पूछते हैं, “ग्रामीण इलाकों में माहवारी के संदर्भ में जो धार्मिक मान्यताएं हैं, उन्हें कैसे खत्म करें?” इस सवाल का जवाब देते हुए शालिनी कहती हैं, “ग्रामीण इलाकों में धर्म के नाम पर बहुत सारे सोशल प्रैक्टिसेज़ होते हैं। ऐसे में बेहद ज़रूरी है कि वे जिस धर्म के आधार पर रुढ़िवादी मान्यताओं को बढ़ावा देते हैं, उसी धर्म के जानकार लोगों के ज़रिये धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी सच्चाई लोगों के सामने लाई जाए।”

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