Site icon Youth Ki Awaaz

मुश्किल वक्त में बात करने की सलाह देने वाले क्या वाकई ऐसा कर पाते हैं?

जब से लोगों को पता चला है कि सुशांत सिंह राजपूत ने डिप्रेशन के कारण अपनी जान दे दी, तब से लोग अपने करीबियों को फोन या मैसेज करके उनसे उनके हालात पूछ रहे हैं। मेरी एक दोस्त ने इस बार में अपने वॉट्सएप स्टेट्स पर बहुत सही बात लिखी थी। उसने लिखा,

“जिन लोगों को आप आज मैसेज कर रहे हैं, आपको क्या लगता है वो आपके इस एक मैसेज से ही आपको सब कुछ बता देंगे या फिर ये कह देंगे कि अब आपका मैसेज आ गया ना तो देखना अब सब ठीक हो जाएगा।”

नहीं, ऐसा नहीं होने वाला क्योंकि आपने उन्हें सिर्फ आज मैसेज किया है। महीनों से या शायद सालों से आपने उनकी कोई सुध ही नहीं ली। पहले कभी यूं ही उनका हाल-चाल जानने के लिए भी आपने फोन नहीं किया, तो आज क्यों कर रहे हैं? अगर आप उन्हें अपना समझते या आपको उनकी फिक्र सच में होती तो आप उन्हें पहले ऐसे ही अकले नहीं छोड़ते।

अपने सोशल मीडिया चैट्स कभी चेक कीजिएगा और देखिएगा कि उसमें कितने ग्रुप्स हैं। उनमें से कितने प्रोफेशनल ग्रुप्स हैं और कितने फ्रेंड्स ग्रुप हैं। उन फ्रेंड्स ग्रूप में कितने लोग हैं और उन ग्रुप्स में आपने आखिरी बार कब मैसेज करके अपने दोस्तों से बात की थी।

आपने आखिरी बार कब अपने दोस्तों से यूं ही बेवजह की बातों के लिए उन्हें अपना समय दिया था। आपके उस ग्रुप में अगर आपके किसी दोस्त ने मैसेज किया था तो क्या आपने उसका रिप्लाई दिया था? यह तो ग्रुप की बात है। चलिए मान लेते हैं ग्रुप पर मैसेज देखकर आपके पास रिप्लाई करने का समय नहीं होगा लेकिन क्या उन्हें फोन करने का भी वक्त नहीं है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

महीने में या साल में कितनी बार आप उनके साथ किसी ट्रिप पर या कॉफी पर गए हैं? चलिए इसे भी छोड़िए क्या आपने कभी उसके स्टेट्स देखकर या उसकी डीपी देखकर उसकी मानसिक हालात का अंदाज़ा लगाने की कोशिश की है? नहीं की होगी और अगर आपको शक हुआ भी होगा तो आपके पास वक्त ही नहीं होगा कि आप उससे इस बारे में बात कर सकें।

ऐसे में आचानक अब क्यों सबको ये सब याद आ रहा है? सिर्फ इसलिए क्योंकि आपने सुशांत की खबर सुनी है। मेरे ना जाने कितने ही दोस्तों के ग्रुप हैं लेकिन उनमें कभी एक भी मैसेज नहीं आता अगर कोई करे, तो लोग सिर्फ सीन करके छोड़ देते हैं, रिप्लाई तक नहीं देते हैं।

बहुत से लोग शिकायत करते रह गए कि ग्रुप बात करने के लिए है, तो बात करो लेकिन जैसे चिकने घड़े पर पानी नहीं रुकता वैसे ही उन पर भी इस बात का कोई असर नहीं पड़ा। चलिए मान लिया कि पहले सब व्यस्त थे लेकिन इस लॉकडाउन में भी किसी ने बात नहीं की।

पूरे लॉकडाउन में अगर हिसाब लगाऊं तो हफ्ते भर में एक आदा बार हो जाती होंगी हमारी बातें और आज उस ग्रुप में लोग डिप्रेशन पर इतनी बातें करते हैं कि 400-500 मैसेज से ग्रुप भर जाता है। सब एक-दूसरे से आचानक पूछने लगते हैं कि तुम सब ठीक हो ना?

आज ऐसे मत पूछिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। कोई ठीक नहीं होने वाला है। रिश्ते ऐसे बनाईए की हाल-चाल पूछने की कभी ज़रूरत ही ना पड़े। बिना कहे भी आपको सामने वाले की परेशानी और खुशी समझ आने लगे। असल में इन्हें ही कहते हैं रिश्ते। अपनों के लिए वक्त निकालना नहीं पड़ता हमारा सारा वक्त ही अपनों के लिए होना चाहिए।

आराम से बैठकर सोचिएगा और मंथन कीजिएगा कि आपकी ज़िंदगी में ऐसे कितने लोग हैं जिनके सिर्फ बात करने के लहजे़ से आप जान लेते हैं कि उसके साथ सब ठीक नहीं है। ऐसा कौन है जिससे रोज बात किए बगैर आप रह ही नहीं सकते है। क्या कोई ऐसा शख्स है आपकी ज़िंदगी में जो अपनी हर मुसीबत में आपको फोन करता हो या आप किसी को फोन करते हों?

इतने सारे दोस्तों में कोई वो एक शख्स है क्या जो आपसे सच में दोस्ती निभा रहा हो ना कि सिर्फ वक्त काट रहा हो।

Exit mobile version