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क्या किसानों का मानसिक स्वास्थ्य हमारे लिए मायने रखता है?

मुज़फ्फरनगर के सिसौली के किसान ओमपाल बृहस्पतिवार को खेत की तरफ निकले थे लेकिन काफी देर तक वो घर नहीं लौटे। बाद में उनका शव खेत के एक पेड़ में लटका मिला।

कथित तौर पर यह बात निकलकर आई कि उन्होंने गन्ने की पर्ची ना मिलने से सूख रहे गन्ने के कारण निराश होकर आत्महत्या कर ली। यद्यपि बाद में प्रशासन ने सफाई दी कि किसान ने पारिवारिक वजहों से ऐसा कदम उठाया।

महेंद्र सिंह टिकैत की कर्म भूमि है सिसौली

आपको बता दें कि सिसौली उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर ज़िले के फुगाना थाना क्षेत्र में आने वाला कस्बा है। सिसौली वो जगह है, जो अनेक किसान आंदोलनों का केंद्र रहा है।

यह दिवंगत किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की जन्म और कर्म भूमि रही है। किसानों के हितों के लिए लड़ने वाले संगठन भारतीय किसान यूनियन का मुख्यालय भी सिसौली में ही है। इस कस्बे को किसानों की राजधानी भी कहते हैं।

समस्याओं की लंबी फेहरिस्त

यह घटना किसानों की दृष्टि से अत्यंत प्रासंगिक जगह की है। अब सोचिए देश के अन्य हिस्सों में विभिन्न प्रकार की परेशानियों को झेल रहे किसानों के हालात क्या होंगे? उत्तरप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में हर वर्ष बड़े पैमाने पर गन्ने बोए जाते हैं। यहां एकादशी के बाद गन्ना काटने की शुरुआत की परम्परा चली आ रही है फिर धीरे-धीरे दिसम्बर-जनवरी तक गन्ने की कटाई चरम पर होती है।

इस दौरान मैंने देखा है किसानो को पर्चियों के लिए काफी दौड़ना पड़ता है। वास्तव में गन्ना के विक्रय के लिए सबसे कठिन कार्य पर्चियों का मिलना ही होता है। यद्यपि पहले की तुलना में स्थिति में अब सुधार आया है। साथ ही किसान आपसी सहयोग से भी गन्ना बेचने में एकज-दूसरे की मदद करते हैं फिर भी अभी समस्याएं बरकरार हैं।

फसल की बिक्री के बाद किसानों का मूल्य भुगतान भी एक समस्या है। सेंट्रल शुगरकेन ऑर्डर के अनुसार, मिलों द्वारा किसानों की खरीद के 14  दिन के अंदर मूल्य भुगतान ज़रूरी है। ऐसा ना होने पर 15 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज़ देने का भी प्रावधान है।

सरकार मिलों को घाटे से उबारने के लिए हर साल हज़ारों करोड़ रुपये मिलों को देती हैं फिर भी मूल्य भुगतान में लेटलतीफी की समस्या बनी हुई है।

गन्ने की फसल के अतिरिक्त अन्य फसलों जैसे धान, गेहूं, मटर आदि से भी किसान कभी-कभी सूखे, ओले, बाढ़ आदि के कारणों से हाथ धो बैठते हैं। इससे घर में बेटी की शादी, पढाई और कर्ज़ की समस्या बढ़ती जाती है। इन गंभीर समस्याओं के कारण किसान मानसिक रूप से कश्मकश में पड़े रहते हैं और कभी-कभी इसी मानसिक अवसाद के कारण वे आत्महत्या करने को विवश हो जाते हैं।

क्या कहती है रिपोर्ट?

एनसीआरबी के आंकड़ो के अनुसार, वर्ष 2018 में 10349 किसानों ने आत्महत्या कर ली। इनमें से उत्तर प्रदेश के 253 किसानों ने आत्महत्या की है। यद्यपि यह संख्या 2016 की तुलना में कम है लेकिन हमें इस संख्या को शून्य पर लाने के प्रयास करने होंगे।

कृषि, भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मूल आधार है। इस कोरोना के संकट काल में हुए लॉकडाउन के दौरान भी इसने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है।

यह ग्रामीणों की जीविका का मुख्य आधार बनी हुई है। ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि किसानों की स्थिति में सुधार लाने के प्रयास होने चाहिए। भारत सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर चल रही है।

किसानों के मानसिक स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता

ऐसे में बेहद ज़रूरी है कि किसानों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। सुशांत सिंह राजपूत की दुःखद आत्महत्या के कारण इस समय चारों तरफ मानसिक स्वास्थ्य पर बहस छिड़ी हुई है।

अनेक सामजिक और आर्थिक समस्याओं के कारण किसान विभिन्न चिंताओं से ग्रसित रहते हैं, जो धीरे-धीरे बड़े मानसिक अवसाद का कारण बन जाता है।

किसानों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं। जैसे- हर महीने जनपदों के ब्लॉकों में किसानों के कैम्प के आयोजन के विषय में विचार किया जा सकता है।

इन कैम्पों में किसानों को विभिन्न तरीके से प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि वे मानसिक अवसाद से मुक्त रहकर सकारात्मक ढंग से आगे बढ़ सकें। ध्यान रखना होगा ये किसान ही हमारे अन्नदाता हैं।


संदर्भ- अमर उजाला, इकोनॉमिक टाइम्स

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