ट्रिगर वॉर्निंग- इस लेख में आत्महत्या का ज़िक्र है।
14 जून 2020 बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने ज़िन्दगी की अंतिम सांसें लीं। जब भी कोई इंसान यूं अपनी ज़िंदगी से हारकर खुद को मौत के हवाले करता है, तब हम एक समाज के तौर पर बुरी तरह फेल साबित हिते हैं।
अत: जब भी एक इंसान के दिलो-दिमाग में पहली बार आत्महत्या का ख्याल आता है, तो उस एक पल में हम एक समाज के रूप में असफल साबित होते हैं।
जिस देश में मेंटल हेल्थ को लेकर स्थितिया इतनी बुरी हों, वहां यह कहना गलत नहीं होगा कि हर पल कहीं ना कहीं कोई डिप्रेशन के खिलाफ जंग हार रहा होगा।
जब भी एक इंसान यूं आत्महत्या करता है तो वह अकेला नहीं मरता है, उसके साथ उससे जुड़ा हर रिश्ता, हर वो करीबी इंसान कभी ना मिटने वाले गमों के साथ हर पल मरता रहता है।
मैंने आपको तब भी फेल होते देखा जब मैं खुद डिप्रेशन से जूझ रही थी
आप इसे पढ़ते वक्त शायद यह सोच रहे हों कि मैं इतनी बातें क्यों कर रही हूं? चलिए इसको और थोड़ा हल्का कर दें, तो ये लड़की “शम्पा” इतना ज्ञान क्यों बघार रही है? अगर ऊपर लिखे मेरे शब्द चुभे हों आपको तो मुझे फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि एक समाज के तौर पर मैंने आपको तब भी फेल होते देखा है, जब मैं खुद डिप्रेशन से जूझ रही थी। मैं उस वक्त जान पाई कि यह समाज कितना असंवेदनशील है।
हमारा समाज इससे भी बुरे एवं असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल करता है। खासकर तब जब कोई इंसान यह कह दे कि वो मानसिक तौर पर परेशान है। वजह चाहे कुछ भी हो, कोई भी बिना सोचे-समझे पलटकर कह देता है ‘गेट ओवर इट’ या ‘गेट रिड ऑफ इट’ या फिर ‘जाओ मेडिटेशन करो।’
जो ज़रा सा भी सेंसिटिव होते हैं या सेंसिटिव होने का दिखावा भर करते हैं, वे कहते हैं, “अरे! चलो डॉक्टर के पास चलते हैं, यू नीड काउंसलर।”
हर मानसिक रूप से परेशान इंसान डिप्रेशन का शिकार नहीं होता
एक बात मेरी तरफ से अगर हो सके तो दिमाग में अपने बिठा लीजिए, “हर मानसिक रूप से परेशान इंसान डिप्रेशन का शिकार नहीं होता।” किसी को भी बिना सोचे समझे पलटकर डॉक्टर के पास चलने की बेफज़ूल सलाह ना दें।
ऐसा करके आप उस इंसान की मदद नहीं कर रहे होते हैं, बल्कि उसे ‘Self Doubt’ में डाल रहे होते हैं। आइए इसे वर्तमान परिदृश्य से समझते हैं।
मान लीजिए कि यदि कोई आपसे कहे, “मुझे डर लग रहा है कि मुझे कोरोना हो गया है।” तो आप उसे क्या कहेंगे? जाओ टेस्ट करवा लो। तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है, ऐसा लगने के पीछे वजह क्या है वगैरह वगैरह। अब आप खुद तय कीजिए कि वो किस मांसिक श्रेणी में है।
अचानक नहीं होता डिप्रेशन
डिप्रेशन किसी को अचानक से नहीं होता है। इसका प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता है, जो एक इंसान को अंदर तक खा जाता है। वह भी इस हद तक कि कई बार इंसान खुद नहीं जान पाता कि उसके साथ क्या हो रहा है।
कई बार अपनी हालत समझकर भी किसी से कुछ शेयर नहीं करना चाहता है। यह सोचकर कि कोई नहीं समझेगा या फिर लोग क्या कहेंगे?
डिप्रेशन एक दलदल की तरह है
इसमें कोई शक नहीं है कि डिप्रेशन दलदल की तरह है। इंसान जितना छटपटाता है, उतना ही उसमें धंसता चला जाता है। एक डिप्रेस्ड इंसान को साथ से लेकर एश्योरेंस की ज़रूरत होती है। कहने का मतलब यह है कि कोई है उसके साथ हो, जो उसे बिना जज किए समझता हो और जिसके पास उसके लिए वक्त है।
शायद वह एक ही बात 1000 बार कहे मगर आप में धैर्य और संवेदनशीलता होनी चाहिए कि आप उसकी बात उतनी ही बार सुनें ताकि उसका हौसला बन सकें। शायद आपके पास अपने काम हों, अपना करियर हो, इतना वक्त ना हो, इतना संयम ना हो मगर आपको यह करना होगा अपने उस अजीज़ के लिए।
क्योंकि अगर आपने आज उसे प्राथमिकता नहीं दी, तो उसके जाने के बाद आपका यह किमती वक्त सिर्फ अफसोस में गुज़रेगा, सिर्फ अफसोस में!
खुदकुशी करने वाला इंसान कायर नहीं होता
दरअसल, आत्महत्या करने वाले कायर नहीं होते हैं। कायर तो हम और आप जैसे लोग होते हैं, क्योंकि हम उन लोगों को अपना पाने में नाकाम हो जाते हैं। अत: कुछ खास बातें जो हमें एक समाज के रूप में ना सही, कम-से-कम एक इंसान के रूप में समझनी ज़रूरी हैं।
- डिप्रेशन की ज़द में हम में से कोई भी आ सकता है।
- डिप्रेशन उम्र देखकर नहीं होता है।
- डिप्रेशन अमीरों को नहीं होता, यह गरीबों को भी होती है। वरना यूं गरीब आत्महत्या नहीं कर रहे होते।
- यह कोई छूत की बीमारी नहीं है, जो किसी से आपको लग जाएगी।
- डिप्रेशन में भिन्न-भिन्न फेज़ होते हैं और हर फेज़ के हिसाब से अलग इलाज की ज़रूरत होती है।
- डिप्रेशन को समझिए, पढ़िए और प्रभावित लोगों की मदद कीजिए ताकि कोई और सुशांत सिंह राजपूत की तरह ज़िन्दगी से हार ना रहा हो।