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केरल में गर्भवती हथिनी की मौत हत्या थी या हादसा?

केरल के साइलेंट वेली फॉरेस्ट में एक गर्भवती हथिनी विस्फोटक से भरे अनानास को खा लेने के बाद तीन दिनों तक नदी में खड़ी रही। लगातार तीन दिनों तक पानी में रहने से उसके फेफड़ों में पानी भर गया जिससे उसकी मौत हो गई। यह ना केवल चकित करने वाली है, बल्कि क्रूरता की सारी हदें पार करने का सूचक भी है।

आ गई है हथिनी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट

शुरुआत में कई मीडिया संस्थानों से खबरें चली कि घटना मल्लपुरम की है जबकि बाद में स्थिति स्पष्ट हुई की यह घटना पलक्कड़ में घटी है। अभी तक यह माना जा रहा है कि हथिनी को मारने के लिए जानबूझकर अनानास के साथ विस्फोटक खिलाया गया। फिलहाल इसकी पूरी खोजबीन जारी है लेकिन हथिनी की प्रारंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि उसकी मौत फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण हुई।

वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक घायल होने के बाद, वह इतनी पीड़ा में थी कि तीन दिनों तक वेलियार नदी में ही खड़ी रही। उसने जलन को कम करने के उद्देश्य से अपने सूढ़ को पानी के भीतर ही डुबाए रखा। नदी में खड़े रहने के कारण उसके पास चिकित्सकीय मदद भी आसानी से नहीं पहुंचाई जा सकी।

विस्फोटक से भरा अनानास खाने से हुई हथिनी की मौत (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

मानवता को शर्मशार करती है यह घटना

इस तरह की घटना निश्चित ही मांस के लिए, संपत्ति के लिए और जीवन की सुरक्षा के लिए अनादि काल से मानव और जानवरों के बीच चले आ रहे संघर्ष में एक बार फिर यह मानवता की हार की सूचक बनी है। हथिनी की उम्र 14-15 साल होने का अनुमान लगाया जा रहा है। हथिनी के मुंह में जब विस्फोटक फटा होगा तो हथिनी को हुई अथाह वेदना का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।

विस्फोटक मुंह में फटने की वजह से हो रही जलन में राहत पाने के लिए वह नदी में खड़ी रही और बाद में फेफड़ों में पानी भर जाने के कारण उसकी मौत हो गई।

हथिनी के घायल होने की घटना उस समय लोगों की नज़र में आई जब रेपिड रेस्पॉन्स टीम के वन अधिकारी मोहन कृष्णन ने इसके बारे में फेसबुक पर एक भावुक पोस्ट लिखी। घायल हथिनी अपने दर्द से राहत पाने के उद्देश्य से नदी में लगातार पानी पीती रही। अंत में नदी में खड़े-खड़े ही उसने दम तोड़ दिया। बाद में पोस्टमार्टम से ज्ञात हुआ कि वह गर्भवती थी।

पहले भी होती रही हैं ऐसी घटनाएं

हथिनी की मौत के बाद मेनका गाँधी ने एक साक्षात्कार में कहा कि यह भारत के सबसे हिंसक ज़िलों में से एक है। लगभग 600 हाथियों को मंदिरों में टांगें तोड़कर, भूखा रखकर या निजी मालिकों द्वारा डुबाकर और जंग लगी कीलें खिलाकर मार दिए जाते हैं।

वहीं, 2019 में केरल हाईकोर्ट में पेश की गई अपनी एक रिपोर्ट के आधार पर केरल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डॉ. पीएस ईसा नें कहा कि यह गलत है। उन्होंने कहा कि 2007 से 2018 तक क्रूरता की वजह से कुल 14 हाथियों की ही मौत हुई है।

फिर भी कहा यही जाता है कि इस वन क्षेत्र में जानवरों और मनुष्यों के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है। केरल के स्थानीय निवासी अनानास या मीट में हल्के किस्म के विस्फोटकों का प्रयोग करके जानवरों को खेत में आने से रोकते हैं। इसे स्थानीय भाषा में ‘पन्नी पड़कम’ कहा जाता है। जिसका मतलब होता है ‘पिग क्रैकर’। यह अक्सर खेत में फसलों को नुकसान पंहुचाने वाले जंगली सुअरों को भगाने के लिए प्रयोग होता है।

जंगलों का विलुप्त होना कर रहा है जानवरों को मजबूर

इसके अलावा बढ़ती जनसंख्या के कारण बढ़ते दबाव से जंगल खत्म होते जा रहे हैं। जिससे जानवर रिहायशी इलाकों में भी आ जाते हैं। इससे अक्सर मनुष्यों और जानवरों के बीच टकराव होता रहता है।

हालांकि केरल के मुख्यमंत्री ने ट्वीट करके कहा कि इंसानों और जंगली जानवरों के बीच संघर्ष बढ़ा है। हम जलवायु परिवर्तन सहित इस संघर्ष के अन्य कारणों को जानकर उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे।

वहीं किसी भी व्यक्ति का नाम लिए बिना उन्होंने ट्वीट किया, “हमें इस बात का दुख है कि इस त्रासदी को भी कुछ लोगों ने नफरत भरे अभियान के तौर पर इस्तेमाल किया। बेवजह की झूठी बातें बनाई गईं और सच को दबाने के लिए अधूरी बातें फैलाई गईं। कुछ ने तो इसके ज़रिए कट्टरता को बढ़ाने की कोशिश की। यह ठीक नहीं है।”

प्रकृति के संतुलन को बनाए रखना है ज़रूरी

चाहे जो रहा हो लेकिन इस तरह की निर्मम हत्या किसी भी दशा में क्षम्य नहीं है। साथ ही हमें इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि किसी भी स्थिति में नफरत की भावना ना फैलने पाए। हम निरन्तर ही प्रकृति से खिलवाड़ करते आ रहे हैं। जानवरों, पेड़-पौधों, पक्षियों की कई प्रजातियां हमारी नाइंसाफी, क्रूरता और लालच का शिकार हो रही हैं। इसके परिणाम स्वरूप हम लगातार विभिन्न प्राकृतिक आपदाएं भी झेलते रहे हैं।

हमारे देश में भी इस प्राकृतिक छेड़छाड़ की वजह से आपदाओं के आने की आवृत्ति बढ़ी है। अंफन तूफान और निसर्ग इसके हालिया उदाहरण हैं। प्रकृति के संतुलन को बनाए रखना ज़रूरी है। हमें ऐसी नीति बनानी होगी ताकि जानवर भी सुरक्षित जगह पर रहें और मनुष्यों को भी जीवन-यापन के लिए सुरक्षित परिस्थितियां मिलें।

हथिनी की इस दर्दनाक मौत के मामले में मुकदमा दर्ज़ कर लिया गया है। जिस किसी ने भी ऐसा किया है उसे कड़ी-से-कड़ी सज़ा देनी ही चाहिए। अगर हम सज़ा नहीं दे पाते हैं, तो यह सिलसिला चलता रहेगा और प्रकृति हमें कभी माफ नहीं करेगी। वह कभी बाढ़, तो कभी तूफान आदि के रूप में हमें सज़ा देती रहेगी।

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