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‘ईब अले ऊ’ का मतलब डिक्शनरी में नहीं, इस फिल्म में मिलेगा

फिल्म ‘ईब आले ऊ’ एक तरह से हमारे समाज का आईना है। इसके डायरेक्टर हैं प्रतीक वत्स और कहानी शुभम ने लिखी है। फिल्म में बहुत ही साधारण तरीके से निम्न वर्गीय श्रमिक समाज की समस्याओं को पर्दे पर उतारा गया है।

यह फिल्म उन सभी लोगों की कहानी है जो अपने कंधों पर सपने लादकर छोटी-छोटी जगहों से बड़े शहरों में आते हैं। कई बार इनके सपने नाउम्मीदी में दम भी तोड़ देते हैं। ऐसे में, वे आर्थिक, मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान हो जाते हैं।

दरअसल यह कहानी ‘सर्वाइवल’ की एक दास्तां कहती है कि कैसे कोई व्यक्ति हर संभव तरीके से पैसे कमाने को लाचार और मज़बूर हो जाता है। कैसे यह मज़बूरी उन्हें गुस्सा, निराशा, कुंठा और हार की ओर झोंक देती है।

क्या है ‘ईब आले ऊ’?

ज़्यादा सोचिए मत और ना ही दिमाग को इधर-उधर दौड़ाइए, यह कोई फ्रेंच, स्पेनिश, जर्मन या लैटिन शब्द नहीं है। गूगल पर भी ढूंढने की कोशिश मत कीजिए मतलब नहीं मिलेगा। तो फिर कैसे पता चलेगा इसका मतलब?

इसका जवाब आपको मिलेगा फिल्म में या फिर किसी बंदर भगाने वालों के पास। यह वही शब्द है जो बंदर भगाने वाले लोग, बंदरों को डरा कर भगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। ईब का मतलब है लंगूर, ओ का मतलब बंदर और अले यानी कि इंसान, बस यहीं से फिल्म का नाम ‘ईब आले ऊ’ पड़ गया।

क्या कहती है फिल्म की कहानी?

डरिए नहीं, स्पॉइलर बिल्कुल नहीं देंगे। यह कहानी है अंजनी नाम के आदमी की, जो दिल्ली अपने दीदी और जीजा जी के पास आता है। वह भी अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है। दीदी पेट से हैं और जीजा, सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं। जीजा की सिफारिश पर अंजनी को बंदर भगाने की सरकारी-कम-कांट्रैक्चुअल नौकरी मिल जाती है।

बस यहीं से अंजनी के जीवन में सभी समस्याओं की शुरूआत होती है। नौकरी के दौरान उसकी मुलाकात महिन्दर से होती है जो उसका मेंटर और दोस्त बनता है। वही अंजनी को तरह-तरह से आवाज़ें निकालकर बंदर भगाना सिखाता है। इस कहानी में अंजनी हर उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व कर रहा है जो छोटे शहरों से बड़े शहरों में आकर भीड़ में कहीं खो जाते हैं और यहां इनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं होता है।

ईब आले ऊ फिल्म का पोस्टर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

सामाजिक बुराइयों पर भी बात करती है फिल्म

फिल्म में कोई बहुत बड़ा क्लाइमेक्स या सस्पेंस तलाशने की ज़रूरत नहीं है, मिलेगा भी नहीं। फिर क्या है फिल्म में? फिल्म में सच्चाई मिलेगी, समस्याओं के पर्वत मिलेंगें। इन्हें फतह करने की कोशिश में लगे लोग मिलेंगें।

निम्नवर्गीय समाज के दुख को बयां करती यह कहानी बताती है कि यहां लोग अपनी इज़्ज़त, मूल्यों, डरों और सेहत को एक तरफ रखकर पैसा कमाकर जीवनयापन करने को मज़बूर हैं।

इस कहानी के माध्यम से रचनाकारों ने समाज में फैली बुराइयों को भी पर्दे पर लाने की एक सफल कोशिश की है। कैसे समाज में किसी भी मुद्दे को आस्था व धर्म के पल्लू से बांध कर बड़ा कर दिया जाए? वो भी इतना बड़ा कि लोगों के जीवन का भी इसके आगे कोई मायना ना रह जाए।

इस तरह कहानी भीड़, हत्या, राष्ट्रवाद, कट्टरता के मसले पर भी मूक चुटकी लेती है। फिल्म बताती है कि किसी भी समाज में इंसान की जान से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है और ना होना चाहिए। वह समाज बर्बर और असभ्य है जहां आस्था और धर्म के नाम पर किसी इंसान का जीवन खत्म कर दिया जाता है।

बड़े शहरों की दुनिया का सच दिखाने की कोशिश

“किस नरक में लाकर छोड़ दिए गए हैं।” यही कहता है हर वह व्यक्ति जो इन बड़े शहरों में लाचार है। उसे सुख-सुविधा से परिपूर्ण यह शहर पैसों के अभाव में नरक ही लगता है। इस फिल्म की कहानी में यह दिखाई देता है कि कैसे हर जगह, हर शहर में अलग-अलग वर्गों के लोगों के लिए दो अलग-अलग ज़िंदगियां होती हैं।

इसकी कहानी को दिल्ली के निम्न श्रमिक वर्ग की नज़रों से पेश किया गया है। उनकी ज़िंदगी में ना बड़ी-बडी सड़कें हैं, ना ही बड़ी-बड़ी इमारतें हैं और ना ही तो कोई चकाचौंध है। संकरी गलियों में बना दस बाई दस का छोटा-सा कमरा है जिसमें तीन लोग रह रहे हैं। बहुत सारे बंदर हैं जो सर दर्द हैं, श्रमिक वर्ग का खून चूसते कुछ मालिक हैं और ढे़र सारी निराशा है।

फिल्म समारोह ‘वी आर वन’ का हिस्सा रही है फिल्म

कलाकारी की बात की जाए, तो इस कहानी के डायरेक्टर प्रतीक वत्स हैं। कमाल की बात यह है कि यह उनकी पहली फ़िल्म है। इससे भी अधिक कमाल की बात यह है कि यह फिल्म अभी हाल ही में यूट्यूब पर आयोजित हुए दस दिवसीय (29 मई से 7 जून)  डिजिटल वैश्विक फिल्म समारोह ‘वी आर वन’ का हिस्सा रही है।

‘वी आर वन’ में भारत की ओर से शामिल की गई चार फिल्मों में से एक फिल्म ‘ईब आले ऊ’ थी। इसमें अंजनी का किरदार शार्दुल भारद्वाज ने निभाया है। बाकी बंदरों ने भी कमाल की ऐक्टिंग की है।

इसके अलावा यह फिल्म लाॅकडाउन और महामारी के समय अधिक ध्यान आकर्षित इसलिए भी करती है, क्योंकि देश में श्रमिक व निम्न वर्ग की हालत बद से बदतर हो रही है। लोग हर दिन भूख से, दर्द से, सड़कों पर, घरों में, अव्यवस्था के कारण मर रहे हैं।

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